रतन मणि लाल क्या राजनीति के बिना समाज और लोगों के बिना राजनीति की कल्पना की जा सकती है? भले ही राजनीति की दिशा बंद कमरे में बैठ कर कुछ लोग तय करते हैं, लेकिन राजनीतिक व्यक्ति के लिए लोगों के सामने और बीच में जाना, उन्हें इकठ्ठा कर के …
Read More »जुबिली डिबेट
रियायतों की खुशी के साथ जिम्मेदारी का अहसास भी जरूरी
कृष्णमोहन झा देश में कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए गत 55 दिनों से जारी लाक डाउन को चौथी बार बढा दिया गया है और अब यह 31 मई तक जारी रहेगा| गौरतलब है कि लाक डाउन 3.0की समय सीमा 17 मई तय की गई थी जिसके समाप्त होने …
Read More »तू भूखा और नंगा है, पर देश में सब चंगा है
सुरेंद्र दुबे कोरोना काल में चल रही तबाही से दुखी व पीडि़त लोगों के मन को शांति प्रदान करने तथा सम्पूर्ण दुखों से मुक्ति प्रदान करने के लिए एक गाना लांच किया गया है जिसका शीर्षक है” जयतु जयतु भारतम “। इसके लेखक हैं-प्रसून जोशी। इस गाने को 200 गायकों …
Read More »जनमानस की अंतरात्मा जगायेगी राष्ट्रपति की पहल
केपी सिंह साधारण पृष्ठभूमि से असाधारण पद पर पहुंचे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पता है कि इतिहास किसी- किसी की जिंदगी में ऐसा कुछ करने का अवसर देता है जिससे वह वास्तव में महान लोगों की सूची में अपना नाम दर्ज करा सके। देश के प्रथम पुरूष ने महामारी से …
Read More »डंके की चोट पर : गरीब की याददाश्त बहुत तेज़ होती है सरकार
शबाहत हुसैन विजेता हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए. आज यह दीवार पर्दों की तरह हिलने लगी, शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए. हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर हर गाँव में, हाथ लहराते हुए हर लाश …
Read More »यहाँ तो घोड़े ने ही सवार की लगाम पकड़ ली है
उत्कर्ष सिन्हा अदम गोंड़वी की इन लाईनों को पहले याद कर लें – तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है उधर जम्हूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है। बीते करीब 15 …
Read More »जन आकांक्षाओं के अनुरूप हो लाकडाउन 4.0
कृष्णमोहन झा कोरोना वायरस के संक्रमण का फैलाव रोकने के लिए लागू किए गए लाक डाउन की अवधि तीसरी बार बढ़ाने की केंद्र सरकार की मंशा का पता तो देशवासियों को उसी दिन चल गया था, जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संदेश में 20 लाख …
Read More »झूठ को लोग गर्व से माथे पर सजाए घूम रहे हैं
दिनेश श्रीनेत मैं आज बहुत दिनों बाद घर से निकला और नेशनल हाइवे नौ पर चिलचिलाती धूप में सिर पर गृहस्थी लादे भटकते पुरुषों, बच्चों और औरतों को देखता रहा। मुझे याद नहीं आया कि मैंने इससे बुरा समय भी कभी देखा था। और जब मैं यह बात कह रहा …
Read More »आत्मनिर्भरता, लोकल और तपस्या
सुरेन्द्र दूबे पूरा भाषण बड़ी गंभीरता से सुना। हम उनका भाषण सुनते-सुनते समझ गये है कि वह जो कहते हैं उसे समझने के लिए सिर्फ दिमाग से काम लेना चाहिए। जैसे ही आपने दिल से समझने की कोशिश की समझ लीजिये उनके वाक जाल में फंस गए। वे हर समय …
Read More »इस लेख की हेडिंग आप बनाइये
उत्कर्ष सिन्हा सुबह सुबह घर के बाहर सकुचाया हुआ आदमी देखा, साईकिल की हैंडील पर पानी की एक बोतल टंगी थी और आगे एक नन्हा बच्चा बैठ था। धीरे से आवाज आई । कुछ खाने को मिल जाएगा ? ये आवाज उसके आँखों के सूनेपन से सिन्क्रॉनईज थी। खाने का …
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