Friday - 15 November 2024 - 12:03 PM

जुबिली डिबेट

मैं दैत्यों की सभा में (गुरु) शुक्राचार्य था…

राजशेखर त्रिपाठी अमर सिंह भी मर ही गए ! इसे किसी संवेदनहीन और रूखी टिप्पणी की तरह मत देखिए। धरती पर ‘अमर’ कोई नहीं है, नाम भले ही अमर हो। अब सौ टके का सवाल ये है कि भारतीय राजनीति के इतिहास में उनकी सीट ‘अमर’ रहेगी या नहीं ? …

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दोस्ती के सौदागर अमर सिंह ने फ्रेंडशिप डे में मौत से की दोस्ती

नवेद शिकोह अमर सिंह दोस्ती के लिए मशहूर थे, फ्रेंडशिप डे की पूर्व संध्या पर उन्होंने मौत से दोस्ती कर ली। कहते हैं कि दोस्ती जिन्दगी की तरह बेवफा होती है और कभी भी साथ छोड़ देती है। लेकिन मौत महबूबा होती है, इसकी आग़ोश में आने के बाद बेवफाई …

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दर्द भी होता रहे, होती रहे फरियाद भी… मर्ज भी कायम रहे, जिंदा रहे बीमार भी

रजनीश पांडेय स्वास्थ्य कारण से 5 अगस्त को होने वाले ऐतिहासिक पल का गवाह नही बन पाऊंगा। लेकिन अपनी पत्रकारिता की अल्प आयु में मुझे अयोध्या जाने का बार- बार मौका मिला। एक बात जरूर है, जितने बार गया उतना ही अयोध्या के बारे में ज्ञान का विस्तार हुआ… चाहे …

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डंके की चोट पर : उस टाईपराइटर ने बदल दी अमर सिंह की किस्मत

शबाहत हुसैन विजेता सिंगापुर के अस्पताल में अमर सिंह ने अपनी आख़री सांस ली. उनकी आँख मुंदते ही लोगों के ज़ेहनों में कैद तमाम फ़िल्में चलने लगीं. अमर सिंह के होने और न होने के मायनों पर बात होने लगी. वह राज्यसभा सांसद थे. उद्योगपति थे. फ़िल्मी दुनिया में उनके …

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आदमी को चाहिए वक्त से डर कर रहे…

राज कुमार सिंह साल 2000 का एक दिन. लखनऊ का 5 विक्रमादित्य मार्ग का बंगला. जी हां तत्कालीन सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव जी का सरकारी आवास. इस बंगले में इस दिन सामान्य दिनों की अपेक्षा ज्यादा गहमागहमी थी. मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव आपनी राजनीतिक पारी शुरू करने …

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समीकरण साधने की मानसिकता ने की पुलिस व्यवस्था चौपट

केपी सिंह बिकरू में विकास दुबे ने 08 पुलिस कर्मियों को अपनी शैतानी सनक पूरी करने के लिए शहीद कर दिया था तो माहौल बहुत गरम हो गया था। सरकार से लेकर पुलिस अफसर तक राज्य की प्रभुता को चुनौती के मानिन्द्र इस घटना से इस कदर बिफरे हुए थे …

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गुरु न सही गुरु घंटाल तो हैं

सुरेन्द्र दुबे क्या आप कोई ऐसा गुरु जानते है जिसके पास कोई चेला न हो। चलिए अब इसी सवाल को अब दूसरी तरह से पूछ लेते है। क्या बगैर चेलों के कोई गुरु कहला सकता है। पर कलयुग की बलिहारी है कि लोग बगैर चेलों की भी गुरु बनने का …

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यह हमारे धैर्य और संयम की परीक्षा का समय है

कृष्णमोहन झा देश में कोरोना बेकाबू हो चुका है। शायद हम अब कोरोना संक्रमण के उस दौर में प्रवेश कर चुके हैं जब कोई भी यह दावे के साथ नहीं कह सकता कि वह कोरोना से पूरी तरह सुरक्षित है। अतिविशिष्ट से लेकर सामान्य श्रेणी तक के लोग कोरोना के …

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EDITORs TALK : क्या क्या बिकेगा सरकार ?

डॉ. उत्कर्ष सिन्हा भारत सरकार का राजकोषीय घाटा फिलहाल 6.45 लाख करोड़ रुपए का है। इसका मतलब ख़र्चा बहुत ज़्यादा और कमाई कम. ख़र्च और कमाई में 6.45 लाख करोड़ का अंतर। तो इससे निपटने के लिए सरकार ने तय किया है कि वो अपनी कंपनियों यानि सरकारी कंपनियों का …

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EDITOsTALK : हमें बचा लो “राम”

डॉ. उत्कर्ष सिन्हा अदम गोंडवी की एक गज़ल है – तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है। कोरोना संकट से जूझती हुई जनता का गुस्सा आप इस एक शेर से समझ सकते हैं। यूपी में कोरोना की रफ्तार हर दिन …

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