Wednesday - 30 October 2024 - 11:58 PM

घोसी उपचुनाव में जाति समीकरण तैय करेगी हार-जीत

जुबिली न्यूज डेस्क

मऊ के घोसी विधानसभा का उपचुनाव अब लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। घोसी विधानसभा क्षेत्र के लोग मतदान के लिए जातिगत समीकरण और पार्टी की मजबूत स्थिति को देख रहे हैं। यहां केवल दो पार्टियों के बीच लड़ाई होनी है, भाजपा से दारा सिंह चौहान और सपा से सुधाकर सिंह के बीच घमासान देखने को मिलेगा। ऐसे में विधानसभा क्षेत्र की जनता को 5 सितंबर को होने वाले मतदान के दिन अपना जवाब देना है। लेकिन इन दोनो के बीच में जीत हार की अहम कड़ी जातीय गठजोड़ है। जो इस गोटी को सेट कर ले जाएगा बाजी उसी के पाले में जाएगी।

राजभर मतदाताओं की संख्या अच्छी

सियासी जानकर कहते हैं कि सपा के सामने घोसी सीट बरकरार रखने की चुनौती है। इस सीट पर राजभर मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है। पिछली बार सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर सपा के साथ थे, जबकि इस बार वह भाजपा के पाले में आ चुके हैं। दारा सिंह चौहान की नोनिया जाति के भी मतदाता यहां निर्णायक भूमिका में माने जाते हैं।

राजनीतिक दलों के चुनावी आंकड़े

राजनीतिक दलों के चुनावी आंकड़ों की मानें तो उप चुनाव में 4,30,391 मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे। इनमें 2,31,536 पुरूष और 1,98,825 महिला मतदाता हैं। क्षेत्र में करीब 90 हजार दलित मतदाता हैं। इनमें चमार, जाटव, धोबी, खटीक, पासी के मतदाता अधिक हैं। लगभग 95 हजार मुस्लिम मतदाता बताए जाते हैं इनमें से 50 हजार से अधिक अंसारी हैं।

इसके अलावा पिछड़े वर्ग में 50 हजार राजभर, 45 हजार नोनिया चौहान, करीब 20 हजार मल्लाह निषाद, 40 हजार यादव, 5 हजार से अधिक कोइरी और करीब 5 हजार प्रजापति समाज के मतदाता हैं। अगड़ी जातियों में 15 हजार से अधिक क्षत्रिय, 20 हजार से अधिक भूमिहार, 8 हजार से ज्यादा ब्राह्मण और 30 हजार वैश्य मतदाता हैं।

मुकाबला भाजपा और सपा के बीच

जानकर बताते हैं कि कांग्रेस और बसपा के मैदान में न होने से मुकाबला भाजपा और सपा के बीच में है। राजनीतिक जानकर कहते हैं कि सपा ने एक क्षत्रिय को मैदान में उतारा है। बेशक यह प्रत्याशी इस इलाके से दो बार विधायक भी रहे हैं, लेकिन यहां भाजपा के ओबीसी व सपा के सवर्ण प्रत्याशी के बीच का मुकाबला अलग कहानी कह रहा है। घोसी इलाके में कुछ लोग इतनी जल्दी चुनाव होने पर अपनी नाराजगी जता रहे हैं।सपा को भरोसा है कि बसपा और कांग्रेस के गैरमौजूदगी में सपा के वोट बैंक को फायदा होगा. वहीं सपा के लिए ये चुनाव चुनौति बन गया है.

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