जुबिली न्यूज डेस्क
मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि धर्म परिवर्तन करने से जाति नहीं बदलती। अदालत ने यह टिप्पणी तमिलनाडु के सलेम जिले के निवासी ए पॉल राज से जुड़े ण्क मामले की सुनवाई के दौरान की।
ए पॉल राज ने ईसाई धर्म अपनाकर साल 2009 में अरुन्थातियार समुदाय की एक लड़की से शादी कर ली थी। ऐसे में शख्स ने इंटर-कास्ट मैरिज सर्टिफिकेट की मांग की थी।
इसी मामले में अदालत ने साफ किया है कि धर्म बदलने से जाति नहीं बदलती। ऐसे में अंतरजातीय विवाह का प्रमाणपत्र जारी नहीं किया जा सकता।
मालूम हो कि ए पॉल राज दलित समुदाय से है और उन्होंने जिस लड़की से शादी की वो भी एससी समुदाय से आती है। ऐसे में शख्स ने अंतरजातीय विवाह प्रमाण पत्र के लिए अदालत का रुख किया था।
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दरअसल इस शख्स ने दावा कि उसकी शादी अंतरजातीय है, ऐसे में उसे सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए।
बताते चलें कि अगर कोई दलित अपना धर्म बदलता है तो कानून के अनुसार उसे आरक्षण के लिहाज से पिछड़ा समुदाय (BC) के तौर पर माना जाता है। ऐसे में वो अनुसूचित जाति का नहीं रहता।
वहीं उस व्यक्ति ने बैकवर्ड क्लास का दर्जा पाने के बाद एससी समुदाय से शादी कर ली। उसने अपनी याचिका में मांग की थी कि उसे इंटर कास्ट मैरिज का सर्टिफिकेट जारी किया जाये।
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इस मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने पाया कि दोनों जन्म से अनुसूचित जाति से हैं। कोर्ट ने कहा कि धर्म परिवर्तन करने से जाति नहीं बदलती, इसलिए उनकी जाति वही है जो जन्म के समय थी। इस स्थिति में उन्हें अंतरजातीय विवाह का प्रमाणपत्र नहीं दिया जा सकता।
मालूम हो कि अंतरजातीय विवाह करने वालों को सरकारी नौकरी में कुछ प्राथमिकता मिलती है। इसके चलते शख्स ने कोर्ट का रुख किया था। जहां कोर्ट ने कहा कि धर्म बदलने से जन्म के समय की जाति नहीं बदलती।
उल्लेखनीय है कि अदालत ने कहा, अंतरजातीय विवाह प्रमाण पत्र के आधार पर एससी, एसटी, बैकवर्ड क्लास आदि के तौर पर जातियों का बंटवारा नहीं हो सकता।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अगर धर्म-परिवर्तन करने वाला शख्स इस तरह से इंटर-कास्ट सर्टिफिकेट को लेकर दावा करने लगा तो यह आरक्षण के दुरुपयोग का साधन बन जायेगा।