जुबिली न्यूज डेस्क
साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 66 A रद्द कर दिया था, लेकिन इस धारा में अब भी मुकदमे दर्ज हो रहे हैं। इसके लिए भारत सरकार ने राज्यों को जिम्मेदार बताया है।
केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत को सूचित किया है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारा 66 A को रद्द करने के फैसले को लागू करवाने की जिम्मेदारी राज्यों की है।
साल 2015 में रद्द की गई आईटी ऐक्ट की धारा 66 A के बारे में केंद्र सरकार ने कहा है कि राज्यों को बार-बार इस बारे में सलाह दी जा चुकी है कि इस धारा के तहत दर्ज किए गए सारे मामले रद्द किए जाएं।
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सोमवार को शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों को नोटिस भेजकर इस बारे में जवाब तलब किया है।
पिछले महीने शीर्ष अदालत ने निराशा और हैरत जताई थी कि 6 साल पहले रद्द किए जाने के बावजूद पुलिस 66ए के तहत मामले दर्ज कर रही है।
एक सामाजिक संस्था पीपल्स फॉर सिविल लिबर्टीज ने सुप्रीम कोर्ट का ध्यान इस ओर दिलाया था कि उसके फैसले के बाद भी 66ए के तहत हजारों मामले दर्ज हुए हैं और इस मामले में केंद्र को दखल देने की जरूरत है।
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इस संबंध में पीयूसीएल ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दर्ज की है जिसकी सुनवाई जस्टिस आर एफ नरीमन की अध्यक्षता वाली बेंच कर रही है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार इतने संवेदनशील मामले पर पीयूसीएल की याचिका का जवाब देने के लिए केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सांइटिस्ट जी अफसर को चुना। इस वैज्ञानिक ने कहा कि वह गृह और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालयों से मिली जानकारी के आधार पर जवाब दाखिल कर रहे हैं।
दर्ज हो चुके हैं हजारों मामले
24 मार्च 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने श्रेया सिंघल मामले में फैसला सुनाया था और आईटी ऐक्ट की धारा 66ए को रद्द कर दिया था। अनुच्छेद 66्र के तहत आपत्तिजनक जानकारी कंप्यूटर या मोबाइल फोन से भेजना दंडनीय अपराध था। ऐसे मामलों में पहले तीन साल तक की जेल और जुर्माने की सजा हो सकती थी।
पूरे देश की पुलिास इस धारा का इस्तेमाल सोशल मीडिया में किसी को पोस्ट को आपत्तिजनक मानकर उसे भेजने वाले को गिरफ्तार करने के लिए कर रही थी। पोस्ट को शेयर करने वालों को भी निशाना बनाया जा रहा था।
न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की खंडपीठ ने कानून की छात्रा श्रेया सिंघल एवं अन्य लोगों की याचिकाएं स्वीकार करते हुए अभिव्यक्ति की आजादी को सर्वोपरि ठहराया था।
अदालत ने कहा था कि धारा 66ए असंवैधानिक है और इससे अभिव्यक्ति की आजादी का हनन होता है।
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अब भी दर्ज हो रहे हैं मामले
अपनी याचिका में पीयूसीएल ने कहा है कि कानून रद्द होने के बाद भी कई राज्यों में हजारों मामले इसी धारा के तहत दर्ज हुए हैं। पीयूसीएल के अनुसार महाराष्ट्र में इस धारा के तहत 381 मामले दर्ज हैं। संस्था ने दावा किया है कि उत्तर प्रदेश ने 2015 से पहले इस धारा के तहत 22 मामले दर्ज किए थे जबकि उसके बाद 245 और केस दर्ज किए हैं।
वहीं झारखंड ने 291 और राजस्थान ने 192 मामले धारा रद्द होने के बाद दर्ज किए हैं। अदालत में केंद्र सरकार ने अपने जवाब में कहा है कि उसने राज्यों को कई बार सूचित किया है कि इस कानून के तहत मामले दर्ज नहीं होने चाहिए।
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार राजस्थान के संदर्भ में केंद्र सरकार ने कहा है कि 22 फरवरी 2019 को राज्य सरकार ने केंद्र के निर्देश का जवाब दिया था और कहा था कि इस संदर्भ में जरूरी सूचना जारी कर दी गई है। केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में उत्तर प्रदेश के बारे में कुछ नहीं कहा है, जहां भाजपा की ही सरकार है।