Wednesday - 6 November 2024 - 6:15 PM

प्रदीप सुविज्ञ का कार्टून : अर्थव्यवस्था का बोझ

 

प्रदीप सुविज्ञ 

कभी मैं ‘कार्टूनिस्ट’ हुआ करता था। रोज़ सुबह मेरे बनाये कार्टून अख़बार के प्रथम पेज पर तीन कालम में छप जाया करते थे ।

सिर्फ़ एक ‘ फ्रेम’ में सिमटे हुए मेरे कार्टून के पात्रों को घुटन महसूस होने लगी थी लिहाज़ा मैं ‘24 फ्रेम’ (फ़िल्म) की दुनिया में चला आया। इस ‘ लाक डाउन ‘ में कुछ न कर पाने की विवशता लिये मैं एक न्यूज़ चैनल पर भूखे-प्यासे अनंत यात्रा पर पैदल ही निकल पड़े मज़दूरों के पलायन का दृश्य देख कर बेचैन हो रहा था कि मेरी पत्नी की आवाज़ सुनाई पड़ी — ‘जब तक हालात ठीक नहीं हो जाते क्यों नहीं कुछ कार्टून ही बनाते हैं ।’ …..मैं तो भूल ही गया था कि मैं कार्टून भी बना सकता हूँ।

‘हमारे लब न सही, दहाने ज़ख़्म सही
वहीं पहुंचती है यारों, कहीं से बात चले।’

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