कृष्णमोहन झा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुछ दिनों पूर्व एक नारा दिया था ‘मोदी है तो मुमकिन है’ और उन्होंने शीघ्र ही अपने नारे को सच साबित कर दिखाया। प्रधानमंत्री मोदी ने सारी दुनिया को यह दिखा दिया कि उनके हाथों में देश के प्रधानमंत्री पद की बागडोर थी इसीलिये भारत के 12 मिराज विमान पड़ोसी देश पाकिस्तान की सीमा में घुसकर कुख्यात आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद के उस हेड क्वार्टर पर हजार किलो के बम गिराकर 21 मिनट में ही सुरक्षित वापस लौट आए जहां पाकिस्तान की सेना के अनेक पूर्व रिटायर्ड अधिकारियों द्वारा सैकड़ों आतंकवादियों को भारत में अशांति फैलाने के लिये प्रशिक्षित किया जा रहा था।
भारतीय विमानों ने 21 मिनट की कार्यवाही में ही लगभग 300 आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया। पाकिस्तान ने भारत की आतंकवाद विरोधी इस कार्यवाही से तिलमिलाकर अमेरिका से याचित एफ—16 विमान द्वारा भारत की सीमा में घुसने का दुस्साहस तो किया परंतु उसमें मुंह की खानी पड़ी और भारत के मिग विमानों ने उसे मार गिराया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रौद्र रूप ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को ऐसी दहशत की हालत में पहुंचा दिया कि उन्होंने भारतीय वायुसेना के जांबाज विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान को दो दिनों के अंदर ही भारत को सौंपने की घोषणा कर दी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुनिया के शक्ति संपन्न देशों से पिछले वर्षों में भारत के लिये जो सदाशयता हासिल की उसी के कारण यह मुमकिन हो सका कि इमरान खान भारत के साथ शांति और मैत्री का राग अलापने लगे।
गौरतलब है कि यह वही इमरान खान थे जो पहले यह गीदड़ भभकी दे रहे थे कि अगर भारत हमारे देश पर हमला करेगा तो हम पूरी ताकत से उसका प्रतिकार करेंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अदम्य साहस और अद्भुत इच्छाशक्ति ने पाकिस्तानी हुक्मरानों, पाकिस्तानी सेना, आईएसआई और उनके द्वारा संरक्षित पालित पोषित आतंकी संगठनों के सरगनाओं के दिलों में यह खौफ पैदा कर दिया है कि वे मोदी से पंगा लेंगे तो उन्हें लेने के देने पड़ जाएंगे।
इसमें कोई संदेह नहीं कि नरेन्द्र मोदी के हाथों में प्रधानमंत्री पद की बागडोर रहते हुए आगे चलकर यह भी मुमकिन हो सकता है कि पाकिस्तान अपनी सरारतों, खुराफातों एवं गुस्ताखियों से अगर बाज नहीं आता तो उसके विरुद्ध इतने कठोर कदम उठाए जाएं कि वह त्राहि—त्राहि कर उठे। दरअसल भारत ने बालाकोट में जिस तरह जैश ए मोहम्मद के हेडक्वार्टर को तबाह किया है उससे पाकिस्तान दहशत में तो जरूर आया है परंतु उससे अभी भी यह उम्मीद करना बेमानी प्रतीत होता है कि वह हमेशा के लिये सुधर जाएगा।
जम्मू कश्मीर में आए दिन हमारे सुरक्षा बलों को जिस तरह आतंकियों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है उससे तो यही निष्कर्ष निकलता है कि बालाकोट में भारतीय मिराज विमानों द्वारा की गई आतंक विरोधी कार्रवाई केवल ट्रेलर थी, पूरी फिल्म तो अभी बाकी है। प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले दिनों यह संकेत भी दिया है कि भारत का पायलट मिशन पूरा हुआ है।
सारा देश भी यही चाहता है कि पाकिस्तान को एक बार ऐसा सबक सिखाया जाना चाहिए कि वह कभी दोबारा सिर उठाकर भारत की ओर देखने की जुर्रत न करे। मोदी के हाथों में जब तक देश के प्रधानमंत्री पद की बागडोर है तब तक सब कुछ मुमकिन हो सकता है। प्रधानमंत्री पद पर नरेन्द्र मोदी के आसीन होने के बाद भारत ने ऐसी अनेकों उपलब्धियां अंतर्राष्ट्रीय मंच पर हासिल की हैं जो पहले नामुमकिन सी प्रतीत हो रही थीं।
पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकी हमले की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में निंदा प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित होना मोदी की कूटनीतिक सफलता का ही परिचायक है और इस सफलता का महत्व इसलिये भी बढ़ जाता है कि सुरक्षा परिषद में पेश इस प्रस्ताव का चीन ने भी समर्थन किया जो कि हमेशा से पाकिस्तान की पीठ थपथपाता रहा है।
यह भी मुमकिन है कि पाकिस्तान में संरक्षित आतंकवादी संगठन जैश ए मोहम्मद के मुखिया मसूद अजहर को भी घोषित आतंकी की सूची में डालने का संयुक्त राष्ट्र में चीन विरोध न करे। गौरतलब है कि इसके पहले कई मौकों पर चीन ने तकनीकी कारणों का बहाना लेकर इस तरह के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र में पारित होने से रोका है। इस बार चीन ने पाकिस्तान को यह अप्रत्यक्ष संदेश दे दिया है कि भारत के साथ संघर्ष में वह बीजिंग से किसी मदद की उम्मीद न करे।
वह उसे सिर्फ आर्थिक मदद दे सकता है। रूस, चीन और भारत के विदेश मंत्रियों की जो बैठक पुलवामा हमले के बाद संपन्न हुई उसमें भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने देश का पक्ष इतने प्रभावी तरीके से रखा कि रूस और चीन ने भारत के साथ मिलकर यह संयुक्त बयान देना ही उचित समझा कि आतंकी समूहों का इस्तेमाल किसी भी तरह से राजनीतिक और कूटनीतिक लक्ष्यों के रूप में नहीं किया जाना चाहिए।
तीनों देशों के विदेश मंत्रियों के संयुक्त बयान में यह उल्लेख भी भारत की विशिष्ट उपलब्धि थी कि जहां आतंकवाद पनप रहा है उन्हें खत्म करना जरूरी है। आर्गेनाइजेशन आफ इस्लामिक कंट्रीज ओआईसी की हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात में संपन्न बैठक में भारत को गेस्ट आफ आनर के रूप में भागीदारी करने का जो अवसर मिला वह ऐसी ही एक उपलब्धि थी जिसे पाकिस्तान नहीं पचा पाया।
भारत को इस संगठन की बैठक में शामिल होने का आमंत्रण दिए जाने से पाकिस्तान इस कदर कुंठा का शिकार हो गया कि उसने इस बैठक में भाग न लेने की घोषणा कर दी। परंतु वह भारत को आमंत्रित किये जाने से रोक नहीं पाया। गौरतलब है कि 1969 में भारत को ओआईसी की प्रथम बैठक में भाग लेने के लिये आमंत्रित किया गया था परंतु पाकिस्तान की आपत्ति के कारण यह आमंत्रण रद्द कर दिया गया और स्व फखरुद्दीन अली अहमद के नेतृत्व में गए भारतीय प्रतिनिधिमंडल को बीच रास्ते से ही वापस लौटना पड़ा था।
आश्चर्य की बात यह है कि थाईलैंड और रूस जैसे कम मुस्लिम आबादी वाले देशों को तो इस संगठन की बैठकों में पर्यवेक्षक के रूप में भागीदारी करने का मौका मिलता रहा है परंतु 18 करोड़ से अधिक मुस्लिम आबादी होने के बावजूद भारत को इसमें पहले किसी भी हैसियत से आमंत्रित नहीं किया गया।
गौरतलब है कि पाकिस्तान ने ओआईसी संगठन के मंच का इस्तेमाल अतीत में भारत के विरुद्ध जहर उगलने के लिये किया है। परंतु अंतर्राष्ट्रीय दबाव के कारण अलग थलग पड़ा पाकिस्तान इस बार ऐसा नहीं कर सकता था इसलिये उसने संगठन की इस बैठक में भाग न लेने में ही अपनी भलाई समझी। बालाकोट में भारतीय वायुसेना द्वारा आतंकी अड्डों पर की गई बमबारी के दो दिन बाद आयोजित इस बैठक में भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज द्वारा दिए गए भाषण सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधियों ने समर्थन किया।
सुषमा स्वराज ने अपने भाषण में पाकिस्तान का नाम लिये बिना उस पर तीखे प्रहार किये। भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई किसी मजहब के विरुद्ध लड़ाई नहीं है। जिस तरह इस्लाम का मतलब शांति है उसी तरह हर धर्म शांति के लिये है। सुषमा स्वराज ने इस बात पर जोर दिया कि दुनिया से आतंकवाद को खत्म करना है तो सभी देशों को मिलकर इसके विरुद्ध लड़ाई लड़नी होगी। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान जिस तरह आजकल शांति का राग अलाप रहे हैं उसे देखते हुए तो उन्हें अपने देश का प्रतिनिधिमंडल इस संगठन की बैठक में भेजना चाहिए था। परंतु इस बैठक में शामिल न होकर पाकिस्तान स्वयं ही अलग थलग पड़ गया क्यों कि उसका साथ देने के लिये कोई सदस्य देश आगे नहीं आया।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अच्छी तरह समझ गए होंगे कि भारत में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नरेन्द्र मोदी के काबिज होने के क्या मायने हैं। अमेरिका ने भी पाकिस्तान को कई झटके दिए हैं। अमेरिका की ओर से पाकिस्तान को मिलने वाली भारी भरकम आर्थिक मदद में तो पहले ही कटौती की जा चुकी है, उसके अलावा भी अमेरिका ने अन्य कई तरीके से पाकिस्तान को आतंकवाद को संरक्षण प्रदान करने से बाज आने की नसीहत दी है।
अभी हाल ही में ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान से अमेरिका आने वाले वहां के नागरिकों को अमेरिकी वीजा की अवधि भी घटा दी है। आगे आने वाले दिनों में पाकिस्तान पर कई अन्य देश भी नई बंदिशें लगा दें तो आश्चर्य की बात नहीं होगी। आज स्थिति यह बन चुकी है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के विरुद्ध वहां की संसद में शेम शेम के नारे लगने लगे हैं।
पाक प्रधानमंत्री को अब इस कड़वी हकीकत का एहसास हो जाना चाहिए कि भारत में प्रधानमंत्री पद की बागडोर नरेन्द्र मोदी के सशक्त हाथों में रहते हुए सब कुछ मुमकिन है। उनके लिये बेहतर यही होगा कि वे अपने देश में सेना और आईएसआई को इस हकीकत का एहसास कराएं कि आतंकवाद को पालने पोसने की नीति पर चलने के बाद आतंकी संगठनों पर कठोर कार्रवाई करने में ही पाकिस्तान की भलाई है। अन्यथा भारत की ओर से तीसरी कार्रवाई भी मुमकिन है।
(लेखक डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है , यह उनके निजी विचार हैं )