न्यूज डेस्क
देश की राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं की बढ़ती दखल हमेशा से ही चुनाव आयोग और न्यायपालिका के लिये चिंता का सबब रही है। न्यायपालिका के सख्त रवैये की वजह से कुछ हद तक आपराधिक पृष्ठभूमि वालों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया यानि चुनाव लड़ने की प्रक्रिया से दूर रखने में मदद मिली है, लेकिन अभी भी काफी कुछ करना शेष है।
बात चाहे सत्तारूढ़ बीजेपी और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस समेत लगभग सभी दल दाग़ी उम्मीदवारों को मैदान में उतारते हैं, वे ऐसा क्यों करते हैं? भारतीय राजनीतिक पार्टियां ऐसे उम्मीदवार क्यों उतारती हैं जिन पर आपराधिक मुक़दमे होते हैं? उनके दाग़दार इतिहास के बावजूद मतदाता उन्हें क्यों वोट देते हैं?
राजनीति में आपराधिक छवि के लोगों की बढ़ती हिस्सेदारी पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चिंता व्यक्त की है। अदालत ने सभी राजनीतिक दलों को निर्देश दिया है कि वे अपनी वेबसाइट पर सभी उम्मीदवारों की जानकारी साझा करें। इसमें उम्मीदवार पर दर्ज सभी आपराधिक केस, ट्रायल और उम्मीदवार के चयन का कारण भी बताना होगा। यानी राजनीतिक दलों को ये भी बताना होगा कि आखिर उन्होंने एक क्रिमिनल को उम्मीदवार क्यों बनाया है।
गुरुवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश दिया है। अदालत के फैसले के अनुसार, सभी राजनीतिक दलों को उम्मीदवार घोषित करने के 72 घंटे के भीतर चुनाव आयोग को भी इसकी जानकारी देनी होगी। साथ ही घोषित किए गए उम्मीदवार की जानकारी को स्थानीय अखबारों में भी छपवानी होगी।
इस याचिका को दायर करने वाले वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि अगर कोई भी उम्मीदवार या राजनीतिक दल इन निर्देशों का पालन नहीं करेगा, तो उसे अदालत की अवमानना माना जाएगा। यानी सभी उम्मीदवारों को अखबार में अपनी जानकारी देनी होगी। राजनीति में बढ़ते आपराधिकरण पर चिंता जाहिर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बीते चार आम चुनाव से राजनीति में आपराधिकरण तेजी से बढ़ा है।
वकील के मुताबिक, अगर किसी नेता या उम्मीदवार के खिलाफ कोई केस नहीं है और कोई भी FIR दर्ज नहीं है तो उसे भी इसकी जानकारी देनी होगी। अगर कोई भी नेता सोशल मीडिया, अखबार या वेबसाइट पर ये सभी जानकारियां नहीं देता है तो चुनाव आयोग उसके खिलाफ एक्शन ले सकता है और सुप्रीम कोर्ट को भी जानकारी दे सकता है।
गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों में राजनीति में आपराधिक छवि के नेताओं की हिस्सेदारी बढ़ी है। इसका अंदाजा हाल ही में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव से ही लगाया जा सकता है।
चुनाव सुधार के लिए काम करने वाली गैर-सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में चुने गए 70 में से 37 विधायकों पर गंभीर अपराध के मामले दर्ज हैं।