प्रमुख संवाददाता
लखनऊ. कैंसर ने आज फिर एक साहिर को छीन लिया. एक शानदार गीतकार अभिलाष अचानक से विदा हो गए. उन्हें लीवर का कैंसर था. उन्होंने अपनी आँतों का आपरेशन भी कराया था लेकिन इस आपरेशन के बाद इतनी कमजोरी आ गई कि उनका चलना-फिरना भी मुश्किल हो गया. उनके लीवर ट्रांसप्लांट की तैयारी भी चल रही थी. वह दस महीने से बिस्तर पर थे.
सुबह चार बजे अभिलाष ने आख़री सांस ली. “इतनी शक्ति हमें देना दाता मन का विश्वास कमज़ोर हो ना” अभिलाष द्वारा लिखी गई वो प्रार्थना है जों करोड़ों लोगों के लिए संबल की तरह से है लेकिन उनकी अपनी ज़िन्दगी में इस प्रार्थना का क्या मोल रह गया जबकि दस महीने उन्होंने बिस्तर पर गुज़ार दिये.
इस शानदार गीतकार को किस नाम से बुलाऊं समझ नहीं पाता. माँ-बाप ने इन्हें ओमप्रकाश नाम दिया था. सिर्फ 12 साल की उम्र में इन्हें कविताएं लिखने का शौक हुआ. हाईस्कूल तक पहुँचते-पहुँचते ओमप्रकाश मंच पर सक्रिय हो गए. मंच पर पहुंचे तो यह ओमप्रकाश से अज़ीज़ देहलवी बन गए.
अज़ीज़ की शक्ल में ओमप्रकाश एक तरफ मंच की ज़रूरत बन गए तो दूसरी तरफ उनकी ग़ज़लें और कहानियाँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगीं. वह दिल्ली के रहने वाले थे इसलिए मुशायरों में उनकी पहचान अज़ीज़ देहलवी की बन गयी.
दिल्ली के एक मुशायरे में उनकी मुलाक़ात साहिर लुधियानवी से हुई तो साहिर उनसे बहुत प्रभावित हुए. साहिर ने अज़ीज़ देहलवी से कई नज्में सुनीं फिर बोले कि ऐसा लग रहा है कि तुम्हारे मुंह से अपनी नज्में सुन रहा हूँ. तुम ऐसी नज्में और ग़ज़लें लिखो जिसमें तुम्हारा अपना रंग हो. इसके बाद अज़ीज़ ने अपने अंदाज़ में लिखना शुरू किया और मंच छोड़कर फ़िल्मी दुनिया की तरफ मुड़ गए. फ़िल्मी दुनिया में वह अभिलाष बन गए.
अभिलाष ने सावन को आने दो, अंकुश और लाल चूड़ा जैसी फिल्मों को अपने गीतों से सजाया. सांझ भई घर आ जा, आज की रात न जा, वो जो खत मोहब्बत में, तुम्हारी याद के सागर में, संसार है इक नदिया, तेरे मन सूना मेरे मन का मन्दिर जैसे गीत लोगों की ज़बान पर चढ़ गए लेकिन इतनी शक्ति हमें देना दाता मन का विश्वास कमज़ोर हो ना कालजयी गीत बन गया. देश के करीब 600 स्कूलों ने इसे अपनी प्रार्थना बना लिया.
अभिलाष सिर्फ गीतकार नहीं थे. वह वर्सेटाइल लेखक थे. उन्होंने कविताएं लिखीं, गीत लिखे, ग़ज़लें और नज्में लिखीं, कहानियां लिखीं, फ़िल्मी दुनिया में आये तो फिल्मों के संवाद भी लिखे. टेलिविज़न का दौर आया तो उन्होंने कई टीवी धारावाहिक भी लिखे. उनके शानदार काम के लिए उन्हें सैकड़ों अवार्ड भी मिले.
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अभिलाष अपनी 74 साल की ज़िन्दगी में 40 साल फ़िल्मी दुनिया में रहे. उन्होंने लगातार काम किया. इन 40 सालों में फिल्म की विभिन्न विधाओं में एक साथ काम किया लेकिन इसके बावजूद वह उतना पैसा नहीं कमा पाए जितना कि फ़िल्मी दुनिया में लोगों ने कमाया है. अभिलाष तो विदा हो गए. उनका गोरेगांव वाला घर सूना हो गया. उनके बेटी-दामाद बेंगलुरु में रहते हैं. गोरेगांव में अकेली पत्नी बची हैं. उनकी पत्नी का कहना है कि उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. पति के न रहने के बाद घर कैसे चलेगा, यही चिंता की बात है.