जुबिली न्यूज डेस्क
बीते शनिवार मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने मालदीव में राष्ट्रपति का चुनाव जीता था. मोहम्मद मुइज़्ज़ू प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ़ मालदीव (पीपीएम) गठबंधन के नेता हैं और इस गठबंधन को चीन के साथ क़रीबी रिश्तों के लिए जाना जाता है. इस गठबंधन ने अतीत में चीनी कर्ज़ और निवेश का खुलकर समर्थन किया था. उनकी जीत के साथ ही ये अटकलें तेज़ हो गई थीं कि अब तक मौजूदा राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की ‘इंडिया फर्स्ट’ पॉलिसी वाले मालदीव का रुख़ बदल जाएगा और ये भारत के लिए परेशानी बन सकता है.
हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुइज़्ज़ू की जीत पर उन्हें बधाई दी और भविष्य में दोनों देशों के बीच सहयोग और बढ़ाने की बात कही.पीएम मोदी ने ट्विटर पर मुइज़्ज़ू को बधाई देते हुए लिखा, “मालदीव के राष्ट्रपति चुने जाने पर डॉ. मोहम्मद मुइज़्ज़ू को बधाई एवं शुभकामनाएं. भारत मालदीव के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने और हिंद महासागर क्षेत्र में हमारे समग्र सहयोग को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है.”
मुइज्जु ने दिया कुछ ऐसा बयान
बता दे कि अब मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने कुछ ऐसा बयान दिया है, जिसकी आशंका जतायी जा रही थी. उन्होंने कहा है कि वह अपने चुनावी वादे पर डटे हुए हैं और भारतीय सेना को मालदीव के आर्किपेलगो से हटाएंगे. सोमवार को अपनी जीत के जश्न में आयोजित एक कार्यक्रम में मुइज़्ज़ू ने अपने समर्थकों से कहा, “मैं मालदीव में नागरिकों की इच्छा के ख़िलाफ़ विदेशी सेना के रहने के पक्ष में नहीं हूँ.”
उन्होंने कहा, “आम लोगों ने चुनावी नतीज़ों के ज़रिए हमें बता दिया है कि वह यहाँ विदेशी सेना की उपस्थिति नहीं चाहते.” उन्होंने अपने समर्थकों को भरोसा दिलाया कि उनकी सरकार के कामकाज़ शुरू करते ही वो विदेशी सेना को मालदीव से हटाने की दिशा में काम शुरू कर देगी.
मालदीव के स्थानीय मीडिया अख़बार एवास के मुताबिक़, मुइज़्ज़ू ने ये भी कहा कि विदेशी सेना की वापसी तय नियमों के अनुसार, की जाएगी और जिनका सहयोग ज़रूरी होगा, उन्हें इस प्रक्रिया में शामिल किया जाएगा. मुइज़्ज़ू ने दोहराया कि अगर मालदीव के लोग विदेशी सैनिक नहीं चाहते तो वे मालदीव में नहीं रह सकते.
भारतीय सेना की मौजूदगी का ज़िक्र
हालाँकि मुइज़्ज़ू ने मालदीव में विदेशी सेना की उपस्थिति की बात करते हुए किसी देश का नाम नहीं लिया. लेकिन अपने चुनावी अभियान के दौरान उन्होंने मालदीव में भारतीय सेना की मौजूदगी का ज़िक्र किया था. उनके गठबंधन पीपीएम-पीएनसी ने मालदीव में कथित भारतीय सेना की उपस्थिति के ख़िलाफ़ “इंडिया आउट” का नारा दिया था और इसे लेकर कई विरोध प्रदर्शन भी आयोजित किया था.
एपी के मुताबिक़, उनका मुख्य अभियान इस बात पर आधारित था कि भारतीय सैनिकों की मौजूदगी मालदीव की संप्रभुता के लिए ख़तरा है. इस कैंपेन के जवाब में राष्ट्रपति सोलिह ने कहा था कि भारतीय सेना वहाँ पर एक डॉकयार्ड के निर्माण के लिए तैनात है, भारत और मालदीव के बीच हुए समझौते के कारण ये सेना मालदीव में हैं. मालदीव में भारतीय सैनिकों की संख्या कितनी है, इसकी कोई जानकारी नहीं है. आलोचकों का कहना है कि भारतीय सेना की भूमिका के संबंध में दोनों सरकारों के बीच समझौते के पीछे की गोपनीयता ने ही भारतीय सेना को लेकर संदेह और अफ़वाह को जन्म दिया.
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मालदीव भारत के लिए अहम क्यों
चीन के लिए मालदीव सामरिक रूप से काफ़ी अहम ठिकाना है. मालदीव रणनीतिक रूप से जिस समुद्र में बसा है वो काफ़ी अहम है. चीन की मालदीव में मौजूदगी हिंद महासागर में उसकी रणनीति का हिस्सा है. 2016 में मालदीव ने चीनी कंपनी को एक द्वीप 50 सालों की लीज़ महज 40 लाख डॉलर में दे दिया था.
दूसरी तरफ़ भारत के लिए भी मालदीव कम महत्वपूर्ण नहीं है. मालदीव भारत के बिल्कुल पास में है और वहां चीन पैर जमाता है तो भारत के लिए चिंतित होना लाजमी है. भारत के लक्षद्वीप से मालदीव क़रीबी 700 किलोमीटर दूर है और भारत के मुख्य भूभाग से 1200 किलोमीटर.
विपरीत हालात में मालदीव से चीन का भारत पर नज़र रखना आसान हो जाएगा. मालदीव ने चीन के साथ फ़्री ट्रेड अग्रीमेंट किया है. यह भी भारत के लिए हैरान करने वाला क़दम था. इससे साफ़ होता है कि मालदीव भारत से कितना दूर हुआ है और चीन से कितना क़रीब.