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लॉस एंजेल्स। कैलिफ़ोर्निया के विश्व विख्यात बादाम और अखरोट के उत्पादक भारतीय- अमेरिकी सिख किसानों को अब व्यापार युद्ध की चुभन महसूस होने लगी है। कैलिफ़ोर्निया के सुत्तर और यूबा क्षेत्र में अमेरिका के कुल बादाम और अखरोट की दो तिहाई पैदावार होती है।
पंजाबी सिख अमेरिकी किसान अपनी अखरोट और बादाम की आधी से अधिक पैदावार भारत को निर्यात करते हैं। इनके पास 50 हजार एकड़ खेती योग्य ज़मीन है, जिसकी क़ीमत एक अरब डाॅलर से अधिक बताई जाती है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के स्टील और अल्यूमिनियम के आयात पर सीमा शुल्क में वृद्धि और साढ़े पांच अरब डाॅलर के ‘जनरालाइज्ड सिस्टेम प्रिफ़्रेंसेस’ से हाथ खींच लेने के जवाब में भारतीय वाणिज्य मंत्रालय ने अमेरिका से आयातित 28 उत्पादों पर गत 16 जून को सीमा शुल्क में वृद्धि कर दी। इनमें कैलिफ़ोर्निया के बादाम और अखरोट भी शामिल हैं।
भारत ने बादाम पर 25 प्रतिशत और अखरोट पर 20 प्रतिशत सीमा शुल्क में वृद्धि की है। इससे अखरोट पर अब 120 प्रतिशत और बादाम पर 125 प्रतिशत सीमा शुल्क हो गया है।
कैलिफ़ोर्निया में चार पीढ़ियों से बादाम और अखरोट की खेती से जुड़े एक किसान परिवार दीदार सिंह और उसके बेटे कर्मसिंह बैंस ने कैलिफ़ोर्निया वालनट कमीशन एंड बोर्ड’ के ज़रिए ट्रम्प प्रशासन से मदद की गुज़ारिश की है। उन्होंने संघीय प्रशासन से सब्सिडी की गुहार लगाई है। संघीय प्रशासन अभी सोया, चावल और खाद्यान पर सब्सिडी मुहैया करती है।
कैलिफ़ोर्निया के भारतीय मूल के वे पंजाबी सिख किसान भी प्रभावित हो रहे हैं, जो 18वीं सदी के अंत में कैलिफ़ोर्निया आए थे और उन्होंने अपने पैतृक कारोबार खेती को अपनी आजीविका का एक हिस्सा बना लिया था। ये वही भारतवंशी सिख समुदाय है, जिन्होंने ग़दर पार्टी के माध्यम से स्वाधीनता आंदोलन में सहयोग दिया था।
कर्म सिंह बैंस का कहना है कि बादाम और अखरोट की खेती करने वाले किसान बैंकों से ऋण लेते हैं। इसके लिए उन्हें एक पाउंड अखरोट पर सवा डाॅलर का ख़र्च करना पड़ता है, जबकि वे वैश्विक बाज़ार में डेढ़ डॉलर प्रति पाउंड वज़न की दर से अपना माल बेचते हैं।
लेकिन बादाम और अखरोट पर सीमा शुल्क बढ़ने से वैश्विक मार्केट में कैलिफ़ोर्नियाई अखरोट और बादाम की मांग गिर रही है। इससे उन्हें करीब चालीस सेंट प्रति पाउंड की दर से हानि हो रही है।