जुबिली न्यूज़ डेस्क
राफेल डील को लेकर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर विपक्षी दल कांग्रेस सवाल उठाती रही है। राहुल गांधी ने इस मुद्दे को लेकर लगातार मुहीम चलाई, यहां तक की इस पूरे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई हुई लेकिन अब नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने राफेल विमान सौदे को लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा किया है।
दरअसल, मॉनसून सत्र के दौरान संसद में पेश कैग की रिपोर्ट में राफेल विमान के ऑफसेट करार की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में दसॉल्ट एविएशन को नाकाम बताया गया है।
कैग ने कहा है कि, वेंडर अपने ऑफसेट कमिटमेंट को पूरा करने में नाकाम रहे हैं और रक्षा मंत्रालय को अपनी नीतियों की समीक्षा करने की जरूरत है। रिपोर्ट में यह भी दावा है कि समझौते के तहत दसॉल्ट ने अभी तक तकनीक ट्रांसफर को DRDO तक नहीं पहुंचाया है।
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कैग द्वारा जारी की गई इस रिपोर्ट को लेकर एकबार फिर राजनीति गरमाने लगी है. कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने इस मसले पर ट्वीट करके मोदी सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी डिफेंस डील की क्रोनोलॉजी खुलना जारी है। CAG रिपोर्ट ने स्वीकारा है कि राफेल ऑफसेट में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पूरा नहीं हुआ है।
पहले राफेल का मेक इन इंडिया से मेक इन फ्रांस हुआ और अब DRDP को टेक ट्रांसफर भी नहीं हुआ। लेकिन मोदीजी कहेंगे – सब चंगा सी।
CAG ने अपनी रिपोर्ट में दी है ये जानकारी
कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि राफेल डील में अब तक टेक्नॉलजी ट्रांसफर नहीं हुई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 36 राफेल लड़ाकू विमान की डील के ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट की शुरुआत में (सितंबर 2015) यह प्रस्ताव था कि डीआरडीओ को हाई टेक्नॉलजी देकर वेंडर अपना 30 प्रतिशत ऑफसेट पूरा करेगा। लेकिन अभी तक टेक्नॉलजी ट्रांसफर कन्फर्म नहीं हुआ है।
कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि 2005-2018 के बीच रक्षा सौदों में कुल 46 ऑफसेट काट्रेक्ट किए गए जिनका कुल मूल्य 66427 करोड़ रुपये था। लेकिन दिसंबर 2018 तक इनमें से 19223 करोड़ के ऑफसेट कांट्रेक्ट ही पूरे हुए। हालांकि रक्षा मंत्रालय ने इसमें भी 11396 करोड़ के क्लेम ही उपयुक्त पाए। बाकी को खारिज कर दिए गए।
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कैग ने रिपोर्ट में कहा है कि 55 हजार करोड़ रुपये के ऑफसेट कांट्रेक्ट अभी नहीं हुए हैं। तय नियमों के तहत इन्हें 2024 तक पूरा किया जाना है। ऑफसेट प्रावधानों को कई तरीके से पूरा किया जा सकता है। जैसे देश में रक्षा क्षेत्र में निवेश के जरिये, निशुल्क तकनीक देकर तथा भारतीय कंपनियों से उत्पाद बनाकर। लेकिन सीएजी ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में पाया है कि यह नीति अपने लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पा रही है।
सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि खरीद नीति में सालाना आधार पर ऑफसेट कांट्रेक्ट को पूरा करने का प्रावधान नहीं किया गया है। पुराने मामलों के विश्लेषण से पता चलता है कि आखिर के दो सालों में ही ज्यादातर कांट्रेक्ट पूरे किए जाते हैं।
कैग ने कहा, वेंडर अपने ऑफसेट प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में नाकाम रहे। रक्षा मंत्रालय को ऑफसेट नीति की समीक्षा करने और लागू करने की आवश्यकता है।
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