जुबिली न्यूज़ डेस्क
बिहार विधानसभा में देश के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक ने अपनी एक रिपोर्ट पेश की है। कैग की इस रिपोर्ट में बेहद चौकाने वाले खुलासे हुए हैं। जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार, बिहार सरकार के विभागों द्वारा खर्च न कर पाने की वजह से 46 हजार करोड़ रुपए की राशि पड़ी रह गई।
ये रिपोर्ट कैग द्वारा 2017-18 की है। इस रिपोर्ट में अधिकारियों की लापरवाही के कारण सरकार को हुए नुकसान का विस्तृत जानकारी दी गई है। इस रिपोर्ट के पेश होने के बाद बिहार में सियासत तेज हो गई है।
कैग द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में पंचायतों को अनुदान मिलने में हुई देरी से हुए नुकसान से लेकर बिजली वितरण में गड़बड़ी के कारण सरकार को हुए नुकसान का लेखा जोखा भी प्रस्तुत किया गया है। साथ ही पिछले 10 साल में यहां 12 मेडिकल कॉलेज खुलने थे, लेकिन सिर्फ दो मेडिकल कॉलेज की खुल पाए। इसके अलावा सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में बिहार के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के काम-काज करने के तरीके पर सवाल उठाये हैं।
कैग के अनुसार, बिहार में कुल 32 सरकारी कंपनी और 3 सांविधिक निगम हैं जो मौजूदा समय में कार्यशील हैं। इसमें से बिहार राज्य वित्तीय निगम और बिहार राज्य भंडारण निगम ने एक वर्ष से लेखापरीक्षा नहीं दिया।
यही नहीं यहां के राज्य पथ परिवहन निगम ने भी पिछले 32 वर्षों से लेखा परीक्षा नहीं दिया है। लेखा परीक्षा प्रतिवेदन का सामान्य शब्दों में अर्थ निकालें तो इन उपक्रमों ने अपने खर्च और आमदनी का ऑडिट रिपोर्ट विधानमंडल के सामने नहीं रखी।
बिहार में कुल सात लाभ अर्जित करने वाले उपक्रम हैं लेकिन राज्य सरकार के पास कोई लाभांश नीति नहीं होने के कारण इन उपक्रमो का लाभ सरकार को नहीं मिल पा रहा है।
जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार साल 2015-16 में बिहार स्टेट रोड डेवलमेंट कॉपोरेशन लिमिटेड ने अपने लाभ 93.86 करोड़ में से 5 करोड़ जबकि बिहार राज्य पुल निगम ने अपने लाभ 70 करोड़ 26 लाख में से केवल 1.05 करोड़ लाभांश सरकार को दिया था।
केन्द्रीय विद्युत विनियामक आयोग विनियमन 2014 के अनुसार बिजली वितरण का सही प्रबंधन नहीं होने की वजह से दोनों बिजली डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों को कुल 115.23 करोड़ के बिजली बिल का नुकसान उठाना पड़ा है।
कैग द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के महत्वपूर्ण अंश
बिहार के 44 विभाग साल 2017-18 के 1,87,344.00 करोड़ के कुल बजट में से 1,40,947.00 करोड़ ही खर्च कर सका। 2,81,420.43 करोड़ के वित्तीय मामले से जुड़े 7760 निरीक्षण प्रतिवेदनों को 1 साल से लेकर 8 साल तक उन्हें लंबित रखा गया।
जारी की गई रिपोर्ट में बताया गया कि ग्राम पंचायतों में पंचायत सचिव के 56 प्रतिशत पद खाली हैं। जबकि नगरपालिकाओं में इनका प्रतिशत 62 हैं। लापरवाही की वजह से कूड़ेदान की खरीद पर दो शहरी निकायों को 6 करोड़ 98 लाख रुपये का नुकसान भुगतना पड़ा है।
इसके अलावा एलईडी लाइट की खरीद के लिए टेंडर के मूल्यांकन के दौरान न्यूनतम दर का टेंडर डालने वाले को नगर परिषद अरवल ने जान बूझकर नहीं लिया। इससे 50.33 लाख रुपये की राशि का भुगतान अधिक किया गया।
वहीं साल 2015 से 2018 के दौरान ग्राम पंचायतों को अनुदानों का हस्तांतरण करने में 11 से 261 दिनों तक की देरी की गई। इसकी वजह से 8.12 करोड़ की राशि का पंचायती राज विभाग ने दंडित ब्याज के तौर पर ग्राम पंचायतों को भुगतान किया गया।
बिहार सरकार द्वारा शर्तों को पूरा न कर पाने के कारण 2016-18 के त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं को 878.56 करोड़ की राशि नहीं आ सकी। शिक्षा विभाग द्वारा बच्चों के आधार डिजिटलीकरण के रोके जाने से 1.98 करोड़ का व्यय बेकार हो गया।
वित्तीय नियमों की अनदेखी करने से 2.89 करोड़ का घोटाला हुआ। विद्युत शुल्क छूट लेने में भी नगर-निगम असफल रहा जिसकी वजह से 5.14 करोड़ की राशि का ज्यादा भुगतान किया गया। इन विभागों ने वित्तीय वर्ष के 11 महीनों की अपेक्षा अकेले मार्च महीने में ही कुल बजट की औसतन 40 फीसदी राशि खर्च की गई ।
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अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग में भी 2.89 करोड़ रुपए घोटाले का मामला सामने आया है। रिपोर्ट के अनुसार, रोकड़पाल ने बच्चों के वजीफे की राशि 1.43 करोड़ रुपये अपने निजी बैंक खाते में ट्रांसफर कर लिया और इसकी भनक तक जिला कल्याण पदाधिकारी बांका तक को नहीं लगी। इसी तरह विभाग की वित्तीय व्यवस्था में नियमों की अनदेखी कर 1.46 करोड़ रुपये की गड़बड़ी का मामला भी सामने आया है।