स्पेशल डेस्क
पटना। क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बिहार के सचिव आदित्य वर्मा ने एक बार फिर बीसीसीआई पर हमला बोला है। उन्होंने बीसीसीआई के सीओए को पत्र भेज कर जवाब मांगा है। उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से नियुक्त पीएस नरसिमहा वरिय अधिवक्ता सह न्याय मित्र को किस अधार पर आप सभी ने लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट के 9 अगस्त 18 के आदेश के आलोक में बिहार क्रिकेट एसोसिएशसन का संबिधान पार्टली अनुमोदन हो चुका है, जबकि सच्चाई यह है कि बिहार क्रिकेट संघ के निबंधन के मामले मे बिहार सरकार के निबंधन विभाग ने सुचना के अधिकार से प्राप्त जवाब मे यह कहा गया है कि बिहार क्रिकेट संघ का निबंधन रद्द है।
पूर्व मे भी चार बार मेल भेज कर सीओए, सीईओ, सभी राज्यो के अंगीभूत क्रिकेट संघ को, तथा बीसीसीआई मे पदस्थापित सभी पदाधिकारीयों को सूचित कर दिया गया था । मेरा दूसरा सवाल यह है कि बिहार क्रिकेट संघ ने 9 अगस्त 18 के आदेश के बाद अपने संबिधान को पार्टली अनुमोदन कर आपको भेज दिया है तो 12 साल से बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव, कोषाध्यक्ष आदि कैसे अपने पद पर विराजमान है । बिहार क्रिकेट एसोसिएशन का निबन्धन 2001 मे तत्कालिन अध्यक्ष लालू प्रसाद ने बिहार के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए कराया था। 2001 से बिहार क्रिकेट एसोसिएशन संस्था बीसीसीआई से जुड़ी है। 2002 मे बीसीसीआई के तत्कालिन पदाधिकारीयों ने बिहार झारखंड के बटवांरा के पश्चात दोनो राज्यो मे क्रिकेट संचालन के लिए एक एडहोक कमेटी बना दिया था, यह स्पष्ट हो चुका है कि बिहार क्रिकेट संघ के एक अधिकारी का बहुत ही नजदीकी रिश्ता सीओए प्रमुख के साथ है, इसलिए ऐन केन प्रकेरेण सभी नियम कानून तोड़ के बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के पदाधिकारीयों को बचाने का काम किया जा रहा है।
मैने बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष लीगल कमिटी जगन्नाथ सिंह वरिय अधिवक्ता पटना हाई कोर्ट के साथ जब न्याय मित्र को मिल कर बिहार क्रिकेट एसोसिएशन से जुड़ी सारे तथ्यों से अवगत करा दिया है । उनके आदेश के बाद मैने लिखित रूप से सारे तथ्यों की जानकारी कागजी सबुत के साथ उनको दे दिया है ।
न्याय मित्र ने भरोसा दिया है कि कानून सम्मत जो भी उचित निर्णय होगा जांच के बाद लिया जाएगा ।