राजीव ओझा
नागरिकता संशोधन बिल अब कानून बन चुका है। यह एक प्रकार से संशोधन कानून नहीं प्रदूषण पैदा कर रहे ‘तत्वों’ का शोधन है। देश की जनता को समझ आ गया है कि घुसपैठिये ही प्रदूषक तत्व हैं।
प्रदूषण पूरे देश में फैलने का खतरा था पैदा हो गया था। इसे रोकने के जो उपाय किये गए उसका देश के बहुमत ने समर्थन किया। जिस तरह शरीर के संक्रमित हिस्से पर जब एंटीसेप्टिक लगाया जाता है तो थोड़ी जलन होती है।
उसी तरह देश के जिन हिस्सों में संक्रमण अधिक था वहां जलन ज्यादा है खासकर असम में। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलीगढ, देवबंद और आसपास के कुछ क्षेत्रों में भी विरोध के हलके सुर सुनाई दे रहें हैं। लेकिन सबसे ज्यादा बेचैन कांग्रेस और वो लोग हैं जिनकी राजनीति ही मुसलमानों को डरा कर या बरगला कर चलती है।
इमरान और कांग्रेस की बेचैनी एक जैसी
पकिस्तान में इमरान खान और भारत में कांग्रेस की बेचैनी एक जैसी है। इसी से आप विरोध करने वालों की मंशा समझ सकते हैं। पकिस्तान को इसकी चिंता नहीं है कि बलूचिस्तान में मानवाधिकार का हनन हो रहा लेकिन पड़ोसी मुल्क अगर अपनी अंदरूनी गड़बड़ी दुरुस्त कर रहा तो उससे परेशानी है। कैब का विरोध करने वाले अपनी पोल खुद खोल रहे हैं।
ऐसा मान लेना चाहिए कि भारत के जिस क्षेत्र में कैब का विरोध हो रहा, वहां घुसपैठियों की संख्या ज्यादा है। कश्मीर की आवाम को अब धीरे धीरे समझ आ रहा है कि कश्मीर भारतीय गणतंत्र का अटूट हिस्सा है और कश्मीरी भारत के सम्मानित नागरिक हैं।
कांग्रेस और कश्मीर के कुछ स्थानीय मठाधीशों ने सत्तर साल तक कश्मीरियों को “विशेष” होने का जो अफीम चटाया उससे कश्मीर पिछड़ गया। लेकिन देर से ही सही अब कश्मीर पटरी पर आ रहा है।
अभी तक कुछ भी अप्रत्याशित नहीं
एनडीए-2 ने अब तक कुछ भी अप्रत्याशित नहीं किया है। झटके में तीन तलाक को गैरकानूनी घोषित करना, आर्टिकल 370 हटाना, नागरिकता कानून में संशोधन लाना, बीजेपी के चुनाव घोषणापत्र में शामिल था। इसी तरह समान नागरिकता कानून भी बीजेपी के चुनाव एजेंडे में शामिल था।
एनडीए का अगला कदम वही होना चाहिए। तब फिर शोर मचेगा तो मचने दीजिये। देश की जनता ने एनडीए को दोबारा मजबूत बहुमत दिया। मतलब साफ़ है जनता चाहती थी कि असमानता और गड़बड़ी दूर हो। सरकार अब वही कर रही।
मुसलमानों के मन में कम होता बीजेपी का डर
लोकतंत्र में विरोध का अधिकार सबको है लेकिन डराकर और बारगला कर नहीं। पहले बीजेपी विरोधी मुसलमानों को डराते थे कि अगर बीजेपी आई तो मुसलमानों का जीना दूभर हो जायेगा। एनडीए 1 में ऐसा कुछ नहीं हुआ। मुसलमानों के मन में बीजेपी का डर कम होता गया और विपक्षियों की चिंता बढ़ती गई।
कैब जैसे ही कानून बना, अब मुसलमानों को फिर डराने की कोशिश की जा रही। तथ्यों और तर्क से नहीं, भावना भड़का कर कांग्रेस मुलमानों को बरगला रही। कहा जा रहा कि पूर्वोत्तर में भारी हिंसा हो रही। जबकि तथ्य है कि नए कानून का असर सिर्फ असम के कुछ हिस्से और त्रिपुरा के तीस फीसदी हिस्से पर ही पड़ेगा।
मुसलमान भाइयों को समझना होगा की नए कानून से पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा बांग्लादेश से आये अल्पसंख्यक शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता मिलेगी। किसी भी नागरिक की नागरिकता पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, चाहे वो मुसलमान हो या हिंदू या ईसाई। नागरिकता कानून के विरोध में एएमयू में रैली निकली गई।
कांग्रेस अदालत जाने की तैयारी में है। इस कानून को अदालत में चुनौती देना उनका अधिकार है। लेकिन मुसलमानों को समझना होगा कि उनकी कम्युनिटी के मुट्ठीभर लोग जिन्होंने अभी तक मुसलमानों को देश की मुख्यधारा में शमिल होने में बाधाएं खड़ी की हैं वही फिर उनकी बहुसंख्यक आबादी को आगे बढ़ने से रोक रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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