न्यूज डेस्क
उत्तर प्रदेश रिकवरी ऑफ डैमेज टु पब्लिक ऐंड प्राइवेट प्रॉपर्टी अध्यादेश 2020 को राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने मंजूरी दे दी है। उत्तर प्रदेश में जुलूस, प्रदर्शन, बंदी, हड़ताल के दौरान सरकारी और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ वसूली का आदेश होते ही उनकी संपत्तियां कुर्क हो जाएंगी और उनके पोस्टर लगा दिए जाएंगे।
इसके तहत वसूली से जुड़ी सुनवाई और कार्रवाई के लिए सरकार रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में क्लेम ट्राइब्यूनल बनाएगी। इसके फैसले को किसी भी कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकेगी।
दूसरी ओर राजधानी लखनऊ में 19 दिसम्बर को नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध में हुई हिंसा के आरोपियों से वसूली का पोस्टर लगाने के मामले में राज्य सरकार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में सोमवार को रिपोर्ट सौंपनी है।
बता दें कि हाईकोर्ट ने 16 मार्च तक सभी आरोपियों के पोस्टर हटाने के निर्देश दिए थे। हालांकि, अभी तक पोस्टर नहीं हटाए गए हैं। बताया जा रहा है कि सरकार की तरफ से इसके लिए और वक्त मांगा जाएगा। हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के सामने लखनऊ के डीएम की रिपोर्ट दाखिल करेंगे।
गौरतलब है कि इस मामले में हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस गोविंद माथुर ने स्वत:संज्ञान लेते हुए 9 मार्च को पोस्टर हटाकर 16 मार्च को अनुपालन रिपोर्ट देने का आदेश दिया था। सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक तो नहीं लगाई, लेकिन मामला बड़ी बेंच को रेफर कर दिया था।
सूत्रों की मानें तो सरकार पोस्टर हटाने के पक्ष में नहीं है। ऐसे में सोमवार को सरकार हाईकोर्ट के समक्ष हलफनामा दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट में चल रही एसएलपी (विशेष अनुमति याचिका) का हवाला देगी।
इस बीच सरकार ने विरोध प्रदर्शन और राजनीतिक जुलूसों के दौरान सार्वजानिक और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वाले उपद्रवियों के खिलाफ कार्रवाई और उनसे वसूली के लिए सख्त अध्यादेश तैयार किया है।
बताते चले कि लखनऊ में 19 दिसंबर 2019 के दिन हुए हिंसा के बाद योगी सरकार ने दंगाइयों पर कार्रवाई करने के लिए सख्त अध्यादेश तैयार किया है। इसमें क्लेम ट्राइब्यूनल को आरोपियों की संपत्तियां अटैच करने और इन्हें कोई और न खरीद सके इसके लिए पोस्टर और होर्डिंग लगवाने का पूरा अधिकार होगा।
इसके तहत तीन माह में क्लेम ट्राइब्यूनल के समक्ष अपना दावा पेश करना होगा। उपयुक्त वजह होने पर दावे में हुई देरी को लेकर 30 दिन का अतिरिक्त समय दिया जा सकेगा।
- दावा पेश करने के लिए 25 रुपये की कोर्ट फीस के साथ आवेदन करना होगा।
- अन्य आवेदन के लिए 50 रुपये कोर्ट फीस, 100 रुपये प्रॉसेस फीस देनी होगी।
- आरोपियों को क्लेम आवेदन की प्रति नोटिस के साथ भेजी जाएगी।
- आरोपियों के न आने पर ट्राइब्यूनल को एकपक्षीय फैसले का अधिकार होगा।
- ट्राइब्यूनल संपत्ति को हुई क्षति के दोगुने से अधिक मुआवजा वसूलने का आदेश नहीं कर सकेगा, मुआवजा संपत्ति के बाजार मूल्य से कम भी नहीं होगा।
क्लेम ट्राइब्यूनल में अध्यक्ष के अलावा एक सदस्य भी होगा, जो सहायक आयुक्त स्तर का होगा। नुकसान के आकलन के लिए ट्राइब्यूनल दावा आयुक्त की तैनाती कर सकता है। दावा आयुक्त की मदद के लिए एक-एक सर्वेयर भी उपलब्ध कराया जा सकता है। ट्राइब्यूनल को दीवानी अदालत की तरह अधिकार होंगे।