अविनाश भदौरिया
उत्तर प्रदेश में 3 नवंबर को होने वाले विधानसभा उपचुनाव पर सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत कई नेताओं का भविष्य टिका हुआ है। कोरोना महामारी, राम मंदिर निर्माण का शिलान्याश और हाथरस केस के बाद यह चुनाव योगी सरकार की परीक्षा है तो वहीं प्रमुख विपक्षी नेताओं प्रियंका गांधी, अखिलेश यादव और मायावती की लोकप्रियता का टेस्ट भी है।
गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से जिस तरह बीजेपी का विजय रथ लगातार आगे बढ़ता रहा उसके बाद एक समय ऐसा आ गया था कि विपक्ष का नामोनिशान नहीं दिख रहा था। लेकिन पिछले कुछ समय में हुए राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद और विपक्ष की सोशल मीडिया से लेकर गांव गली तक बढ़ी सक्रियता को देखकर राजनीतिक माहौल बदलता दिख रहा है।
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हालांकि यह बदलाव सिर्फ हवा हवाई है या फिर जमीनी है इस सवाल का जवाब भी आगामी उपचुनाव के परिणाम से मिलेगा। इसके बाद ही काफी हद तक यह भी तय हो जाएगा कि आखिर देश के सबसे बड़े राज्य में 2022 के विधानसभा चुनाव में किसे कुर्सी मिलेगी ?
यह परिणाम नेताओं के भविष्य के साथ ही मतदाताओं के मिजाज को भी बताएगा कि, उनके लिए रोजगार, अपराध और जातिवाद के मुद्दे ज्यादा मायने रखते हैं या फिर राष्ट्रवाद ही सर्वोपरि मुद्दा है।
वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र दुबे का कहना है कि, उपचुनाव के परिणाम से सभी दलों के प्रमुख प्रभावित होंगे यह तो सही है लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ पर होगा।
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उन्होंने कहा कि, जिस तरह से हाथरस समेत पूरे राज्य में दुष्कर्म की घटनाओं की बढ़ोत्तरी हुई है और कानून व्यवस्था को लेकर सीएम पर सवाल खड़े हुए हैं। उसे देखकर तो यही लगता है कि, सत्ता पक्ष के लिए ज्यादा चुनौती है।
सुरेन्द्र दुबे ने यह भी कहा कि, हर एक सीट की अपनी सियासी गणित भी होती है। कई बार स्थानीय मुद्दे या समीकरण पार्टी के स्टार चेहरे पर भारी पड़ जाते हैं।
बता दें कि उत्तर प्रदेश की जिन सात सीटों में उपचुनाव होना है उनमे से छह पर भाजपा का कब्जा रहा है। वहीं एक सीट पर समाजवादी पार्टी के पास है। अब देखना यह होगा की जनता किस पर भरोसा करती है।
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