न्यूज डेस्क
जलवायु परिवर्तन की वजह से पूरी दुनिया के वैज्ञानिक चिंतित हैं। पिछले कई सालों से वह लगातार लोगों को सचेत रहे हैं लेकिन उचित कदम न उठाये जाने की वजह से हालात खराब हो गए हैं। वैज्ञानिक लगातार सचेत कर रहे हैं के कार्बन उत्सर्जन में कटौती करें नहीं तो आने वाले समय में बहुत भी वीभत्स हालात होंगे।
ऐसी ही आशंका संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरस ने सोमवार को बैंकाक में आसियान सम्मेलन में व्यक्त की। एक रिपोर्ट का जिक्र करते हुए गुटेरस ने कहा कि जलवायु परिवर्तन पर लगाम लगाने के उचित प्रयास नहीं किये गए तो 2050 तक दुनियाभर में 30 करोड़ लोग समुद्र में बह जाएंगे। भारत, चीन, जापान और बांग्लादेश जलवायु परिवर्तन से बढ़ते समुद्र स्तर के कारण सबसे असुरक्षित हैं। थाईलैंड की 10 फीसदी आबादी के लिए यह खतरा है।
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख गुटेरस ने कहा, आज दुनिया के लिए जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ा खतरा बन गया है। इसकी वजह से समुद्र का जल स्तर बढ़ता जा रहा है। भारी संख्या में ग्लेशियर पिघल रहे हैं। महासागरों का बढ़ता स्तर गंभीर चिंता का विषय है।
जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एनजीओ क्लाइमेट सेंट्रल की हालिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए गुटेरस ने कहा कि महासागरों का स्तर अनुमान से भी अधिक तेजी से बढ़ रहा है। अगर सभी देश समय रहते जलवायु परिवर्तन को थामने के लिए जरूरी कदम उठाने में देरी करेंगे तो इसका परिणाम बहुत भयानक होगा।
गुटेरस ने कहा, रिपोर्ट के आंकड़े कुछ आगे-पीछे हो सकते हैं, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि जलवायु परिवर्तन बड़ा खतरा है।
उन्होंने कहा, इस पर लगाम कसने और वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार सदी के अंत तक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री पर रोकने के लिए अगले एक दशक में कार्बन उत्सर्जन को 45 फीसदी तक घटाना होगा और 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य पर लाना होगा।
गुटेरस ने कहा, कार्बन उत्सर्जन रोकने के लिए सभी देशों और सरकारों को प्रतिबद्ध होना होगा। भविष्य में कोयला से चलने वाले ऊर्जा संयंत्र खोलने पर रोक लगानी होगी और जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी को खत्म करना होगा। उन्होंने कहा खासतौर पर दक्षिण, दक्षिण पूर्वी और पूर्वी एशिया को इस मामले में अधिक सजग रहने की जरूरत है क्योंकि इन देशों में बिजली उत्पादन कोयला संयंत्रों पर निर्भर है।
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