जुबिली न्यूज डेस्क
दुनिया भर के लोग तमाम स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं। पिछले दिनों एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी जिसमें कहा गया था कि 250 तक 6.1 करोड़ लोग देखने में पूरी तरह लाचार होंगे। अब कान की समस्या को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट आई जो चिंता बढ़ाने वाली है।
डब्ल्यूएचओ की वर्ल्ड रिपोर्ट ऑन हियरिंग में चेतावनी देते हुए कहा गया है कि साल 2050 तक दुनिया भर में लगभग 250 करोड़ लोग या दूसरे शब्दों में कहें तो हर 4 में से 1 व्यक्ति को कुछ हद तक सुनाई न देने की समस्या होगी।
और तो और इनमें से कम से कम 70 करोड़ लोग ऐसे होंगे, जिन्हें सुनाई न देने और कानों की समस्याओं को लेकर अस्पतालों में जाना पड़ेगा।
मालूम हो दुनिया भर में हर साल 3 मार्च को विश्व श्रवण दिवस होता है।
भारत में क्या है हाल?
भारत में एक बड़ी आबादी सुनाई न देने की समस्या से ग्रस्त है। 2018 के डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार, भारत में श्रवण दोष प्रसार लगभग 6.3 फीसदी (630 लाख लोग सुनने की समस्या से पीडि़त) थे।
देश में वयस्कों में बहरेपन का अनुमानित प्रसार 7.6 फीसदी था और बाल्यावस्था में बहरापन का प्रसार 2 फीसदी था।
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस एडनॉम घेब्येयियस ने कहा कि हमारी सुनने की क्षमता महत्वपूर्ण है। सुनाई न देने से लोगों के संवाद करने, पढऩे और जीविकोपार्जन की क्षमता पर यह एक हानिकारक प्रभाव डाल सकता है। यह लोगों के मानसिक स्वास्थ्य और रिश्तों को बनाए रखने की उनकी क्षमता पर भी प्रभाव डाल सकता है।
महानिदेशक ने कहा कि यह नई रिपोर्ट इस समस्या के बारे में गहराई से बताती है, साथ ही साक्ष्य-आधारित हस्तक्षेप के रूप में समाधान भी प्रस्तुत करती है।
उन्होंने यह भी कहा कि हम सभी देशों को सार्वभौमिक (यूनिवर्सल) स्वास्थ्य कवरेज प्रणालियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
रिपोर्ट में कानों और सुनने संबंधी देखभाल सेवाओं में निवेश करने और इसके विस्तार करने के लिए कहा गया है। यह रिपोर्ट सुनाई न देने से होने वाले नुकसान को रोकने और उनसे संबंधित समस्याओं का निदान करने के प्रयासों में तेजी से कदम बढ़ाने की आवश्यकता को रेखांकित करती है। कान और उनकी देखभाल में निवेश की लागत प्रभावी और बहुत कम है।
ज्यादातार देशों में, कान और सुनने संबंधी देखभाल को अभी भी राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों में नहीं जोड़ा गया है, जिसके कारण कान की बीमारियों वाले लोगों और जिन्हें सुनाई नहीं देता उनके देखभाल सेवाओं तक पहुंचना चुनौतीपूर्ण होता है।
ये भी पढ़े : अपने मंत्री की वजह से नई मुसीबत में फंसी येदियुरप्पा सरकार
ये भी पढ़े : क्या है राकेश टिकैत का नया फॉर्मूला?
ये भी पढ़े : डीजीपी के खिलाफ शिकायत में महिला आईपीएस ने कहा-मेरा हाथ चूमा और…
रिपोर्ट के मुताबिक कम आय वाले देशों में, लगभग 78 फीसदी में प्रति मिलियन आबादी में एक या उससे कम कान, नाक और गले (ईएनटी) विशेषज्ञ है, 93 फीसदी में प्रति मिलियन में एक या उससे कम ऑडियोलॉजिस्ट है, 17 फीसदी में प्रति मिलियन में एक या उससे अधिक वाक् चिकित्सक हैं और 50 फीसदी में प्रति मिलियन बहरों के लिए एक या उससे अधिक शिक्षक हैं।
रिपोर्ट में उल्लिखित कार्य और प्रशिक्षण जैसी रणनीतियों के माध्यम से प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में कान और सुनने संबंधी देखभाल को जोडऩे के माध्यम से इस अंतर को कम किया जा सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कान और सुनने संबंधी देखभाल करने वाले पेशेवरों के अपेक्षाकृत उच्च अनुपात वाले देशों में भी, विशेषज्ञों का असमान वितरण है। यह न केवल देखभाल के लिए लोगों की चुनौतियों का सामना करते है, बल्कि सेवाओं को प्रदान करने वाले लोगों से अन्य सेवाओं का भी दबाव रहता है।
ये भी पढ़े : ‘पति की गुलाम या सम्पत्ति नहीं है पत्नी जिसे पति के साथ जबरन रहने को कहा जाए’
ये भी पढ़े : तो इस वजह से सांसद के बेटे ने खुद पर चलवाई गोली
जानकारों के मुताबिक बच्चों में लगभग 60 फीसदी सुनाई न देने की समस्या को रूबेला और मेनिन्जाइटिस की रोकथाम के लिए मातृ और नवजात देखभाल में सुधार, और स्क्रीनिंग के लिए किए गए टीकाकरण जैसे उपायों के माध्यम से रोका जा सकता है।
रिपोर्ट के माध्यम से कहा गया है कि सुनने की हानि और संबंधित कान के रोगों की समस्या का निराकरण करना पहला कदम है। जीवन में रणनीतिक बिंदुओं पर नैदानिक जांच सुनिश्चित करती है कि सुनाई देने और कान के रोगों के किसी भी नुकसान को जल्द से जल्द पहचाना जा सकता है।