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देशराज पटैरिया जिनके गीतों ने फिल्मी गीतों को फीका कर दिया था

अविनाश भदौरिया 

बुंदेलखंड के लोकप्रिय लोकगीत गायक देशराज पटेरिया का शानिवार सुबह दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। 67 साल की उम्र में उन्होंने छतरपुर के अस्पताल में अंतिम सांस ली। वह अपने पीछे पत्नि, एक पुत्र विनय पटेरिया को छोड़ गए है। पटेरिया को बुंदेलखंड की शान माना जाता था।

पटेरिया के गाए लोकगीत बुंदेलखंड घर-घर सुने और गाए जाते थे, खासकर आल्हा और हरदौल की वीरता के लोकगीत बेहद लोकप्रिय हुए थे।

लोकगीत सम्राट पटेरिया का जन्म जन्म 25 जुलाई 1953 में छतरपुर जिले के तिटानी गांव में हुआ था। पटेरिया ने हायर सेकेंडरी पास करने के बाद प्रयाग संगीत समिति से संगीत में डिग्री हासिल की। जिसके बाद उनकी स्वास्थ्य विभाग में नौकरी लग गई। लेकिन नौकरी में उनका मन नहीं लगता था, इसलिए वह दिन में ड्यूटी करते और रात में बुंदेली लोकगीत और भजन गाते थे।

पटेरिया ने साल 1972 में मंचों पर लोकगीत गाना शुरू किया था। लेकिन उनको असली पहचान 1976 में छतरपुर आकाशवाणी से मिली। उस दौरान उनका गायन आकाशवाणी से प्रसारित होने लगा था। जिसके बाद धीरे-धीरे पूरे बुंदेलखंड और देश में उनकी पहचान हो गई।

उनके निधन पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर शोक व्यक्त किया। सीएम ने ट्वीट कर लिखा कि, अपनी अनूठी गायकी से बुंदेली लोकगीतों में नये प्राण फूंक देने वाले श्री देशराज पटेरिया जी के रूप में आज संगीत जगत ने अपना एक सितारा खो दिया। सीएण ने कहा- वो किसान की लली… मगरे पर बोल रहा था…जैसे आपके सैकड़ों गीत संगीत की अमूल्य निधि हैं। आप हम सबकी स्मृतियों में सदैव बने रहेंगे। ॐ शांति!

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वरिष्ठ पत्रकार संतोष पाठक ने उन्हें याद करते हुए लिखा कि, देशराज पटैरिया नहीं रहे। ये खबर बुन्देली लोकगीतों के एक अध्याय के समाप्त हो जाने जैसी है। पिछले दिनों ही इंडिया टुडे के लिए देशराज पटैरिया जी की स्टोरी की थी। उम्मीद नहीं थी कि वे इतनी जल्दी जमाने को अलविदा कह देंगे। वे अकेले ऐसे महान गायक रहे जिन्होंने दुनियाभर में बुन्देली बोली का परिचय कराया। देशराज जी ने 10 हज़ार से अधिक गीत गाये हैं। एक दौर था जब उनके गाये गीतों ने पूरी बुन्देली पट्टी में फिल्मी गीतों को फीका कर दिया था। विनम्र श्रद्धांजलि।

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