Friday - 25 October 2024 - 8:30 PM

युद्ध के मुकाबिल खड़ा बुद्ध

शबाहत हुसैन विजेता

यूएन ने दखल नहीं दिया तो हालात और बुरे होंगे, फिर पुलवामा जैसा हमला होगा। दो परमाणु शक्ति सम्पन्न देश टकराए तो उसके नतीजे उनकी सीमाओं के परे जाएंगे। हिन्दुस्तान को यह धमकी क्रिकेटर से राजनेता बने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने संयुक्त राष्ट्र के मंच से दी।

आतंकवाद के दंश को हिन्दुस्तान एक अरसे से झेलता आ रहा है। मुम्बई हमले से लेकर पुलवामा तक भारत ने लगातार खूंरेजी का नंगा नाच देखा है। आतंकवाद के नाम पर हिन्दुस्तान ने लगातार अपने लोगों को खोया है। हर आतंकी हमले के बाद उंगली पाकिस्तान की तरफ उठी है और हर बार पाकिस्तान ने इल्ज़ाम को नकारा है। तमाम सबूतों के बावजूद पाकिस्तान ने कभी आतंकियों की मुश्कें कसने का काम नहीं किया लेकिन यह पहली बार हुआ कि धमकी देते-देते पाकिस्तान ने अपनी हकीकत खुद बयान कर दी। दूसरी तरफ भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह कहकर पाकिस्तान को करार जवाब दिया कि हमने युद्ध नहीं बुद्ध दिया है। युद्ध के मुकाबिल खड़ा यह बुद्ध पाकिस्तान को किस मुहाने पर ले जाएगा इसका उसे अंदाज़ा भी नहीं है।

मुम्बई हमले में कसाब ज़िन्दा पकड़ा गया था। उसके मां-बाप से बात हुई थी। मुकदमा चला, कसाब को फांसी हुई लेकिन पाकिस्तान ने नहीं माना कि कसाब उसका नागरिक था। खुद को पाक साफ साबित करने के लिए उसने कसाब के परिवार को ही गायब करवा दिया।

पुलवामा के बाद भारत की जवाबी कार्रवाई में भारतीय सैन्य अधिकारी को पाकिस्तान ने गिरफ्तार किया था लेकिन इमरान ने 24 घण्टे के भीतर भारतीय अधिकारी को रिहा कर यह संदेश दिया था कि इमरान सरकार भारत के साथ रिश्तों को सामान्य बनाएगी लेकिन यूएन में सारी मर्यादाओं को ताक पर रखकर जिस तरह इमरान ने भारत को धमकियां दीं उसने दुनिया के सामने यह स्पष्ट कर दिया कि पाकिस्तान में कुर्सी पर बैठने वालों का सिर्फ चेहरा बदलता है लेकिन हुकूमत की बागडोर किसी और के हाथ में होती है।

क्रिकेट के जरिये मैत्री का संदेश देने वाले इमरान खान ने हिन्दुस्तान के साथ-साथ सीमा पर बसे अन्य देशों को भी धमकी दे डाली।

हर कुर्सी की एक मर्यादा होती है। अगर हाफ़िज़ सईद और इमरान खान की ज़बान एक जैसी होगी तो फिर भारत सरकार ही नहीं दुनिया के तमाम देशों के लिए यह तय करना ज़रूरी हो जाता है कि पाकिस्तान के साथ रिश्ता रखा जाए या नहीं।

आतंकवाद की फसल बोते-बोते पाकिस्तान आज जेब से भी खाली है और पेट से भी खाली है। खाली जेब और खाली पेट में कुछ आये इसके लिए ज़रूरी होता है कि दिमाग में कुछ पाज़ीटिव बातें मौजूद हों लेकिन वहां तो खाली दिमाग शैतान का घर वाली कहावत देखने को मिल रही है।

भारत पुलवामा हमले से उबर चुका है, फिर हमला हुआ तो उसका पहले से ज़्यादा माकूल जवाब भी दिया जाएगा लेकिन इमरान खान की नासमझी ने यूएन के मंच पर जिस तरह से अपने देश की असली तस्वीर आम कर दी उससे उबरने में पाकिस्तान को सदियां लग जाएंगी। यूएन के मंच से आतंक की हिमायत पाकिस्तान को कौन से मोड़ पर ले जाएगी इसका इमरान खान को अंदाज़ा भी नहीं है।

इमरान अच्छे क्रिकेटर थे लेकिन एक अच्छा क्रिकेटर सियासत की अच्छी तमीज़ भी रखेगा, इसकी गारंटी कहाँ से मिल पाएगी। सियासत का ककहरा तो पढ़ना पड़ता है। अपराधी भी माननीय बन जाता है तो अपने क्षेत्र की जनता की दिक्कतें दूर करने में लग जाता है। गुंडा संसद में जाकर तो असलहा नहीं लहराने लगता। पाकिस्तान में आतंकियों और सरकार के बीच जो भी तालमेल हो लेकिन विश्व मंच पर अगर सरकार खुद मर्यादा तोड़ेगी तो फिर उसकी बर्बादी की दास्तान को कौन रोकेगा।

इमरान खान ने यूएन में पाकिस्तान की पोल खोलकर अपनी बर्बादी की दास्तान खुद लिख दी है।

पाकिस्तान की स्वात घाटी आतंकियों से भरी हुई है। हाफ़िज़ सईद आतंकी संगठन का ही सरगना है। दूसरे देशों के दाऊद सरीखे माफिया पाकिस्तान में ही पनाह पाते हैं, पाकिस्तान की सीमाओं में आतंक के ट्रेनिंग कैम्प चलते हैं।

नवाज़ शरीफ़ ने स्वात घाटी पर हमला कर आतंकियों की मुश्कें कसने की पहल की थी, उसी के नतीजे में उन्हें अपनी सरकार गंवानी पड़ी, देश छोड़कर लंदन जाना पड़ा। आतंकियों से टक्कर लेने के चक्कर में भ्रष्टाचार के इल्ज़ाम लगे, जो उन्हें सलाखों के पीछे ले गए।

इमरान जानते हैं कि पाकिस्तान में हुकूमत को संभाले रखने के लिए हुकूमत के साथ-साथ आतंकियों को पनाह देना भी ज़रूरी है। पाकिस्तानी सियासत में पिछले कई दशक से आतंकियों को गोद लेने का सिलसिला चला आ रहा है। आतंकी जब तक खुश रहता है हुकूमत चलती रहती है। वह नाराज होता है तो विमान दुर्घटनाएं होती हैं, शीर्ष नेताओं को मौत की गोद में सुला दिया जाता है। सत्ता की सीढ़ियां चढ़ती बेनज़ीर बम विस्फोट में खत्म हो जाती हैं, ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को फांसी पर लटकना पड़ता है।

नवाज़ शरीफ़ भी दूध के धुले नहीं थे। नवाज़ और मुशर्रफ ने ही कारगिल जंग की पटकथा लिखी थी। नवाज़ जब तक हिन्दुस्तान के खिलाफ परचम उठाये रहे सरकार चलाते रहे, लेकिन जैसे ही आतंकवाद के खिलाफ मुखर हुए उनकी उल्टी गिनती शुरू हो गई।

इमरान को शायद आतंकियों ने यही समझा दिया है कि हुकूमत में रहना है तो हिन्दुस्तान का दुश्मन बने रहना है, लेकिन आतंकी तो आतंकी होता है, उसके स्कूल में सिर्फ आतंक का पाठ पढ़ाया जाता है।

यूएन में बोलने की तमीज़ तो सियासत का ककहरा खुद पढ़ने से आती है। पाकिस्तान ने भारत को जो ज़ख्म दिए हैं वह तो कभी न कभी भर ही जायेंगे लेकिन खाली पेट और खाली जेब को भरने के लिए पाकिस्तान जिन देशों के सामने हाथ फैलाता रहा है, उनके सामने किस मुंह से जाएगा। पाकिस्तान को यह बात समझनी ही होगी कि युद्ध के मुकाबिल जब बुद्ध खड़ा होता है तो युद्ध को हारना ही पड़ता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)

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