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ब्रिटेन : कोरोना महामारी, बेरोजगारी और भारतीय

जुबिली न्यूज डेस्क

कोरोना महामारी की वजह से दुनिया के अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है। भारी संख्या में लोग बेरोजगार हुए हैं।

ब्रिटेन में भी कोरोना महामारी की वजह से बेरोजगारी दर पिछले साढ़े साल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। तालाबंदी के कारण खत्म हुए रोजगारों ने भारतीय समुदाय पर औसत से ज्यादा असर डाला है।

ब्रिटेन के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ओएनएस के नए आंकड़े के मुताबिक सितंबर 2020 से नवंबर 2020 के बीच बेरोजगारी दर पांच फीसदी रही है और सोलह साल से ऊपर के करीब सत्रह लाख लोग बेरोजगार हो चुके हैं।

एक अन्य आर्थिक संस्था, ऑफिस फॉर बजट रेस्पॉन्सिबिलिटी (ओबीआर) के नवंबर 2020 के आंकड़े पहले ही कह चुके हैं कि साल 2021 के मध्य तक बेरोजगार लोगों की संख्या बढ़कर छब्बीस लाख हो जाएगी।

कोरोना महामारी का अर्थव्यवस्था के कुछ खास क्षेत्रों पर बेहद गंभीर असर पड़ा है। होटल उद्योग, पर्यटन और मनोरंजन से जुड़ी कंपिनयां और रीटेल उद्योग में काम करने वाले लोगों की नौकरियां पर इसकी अधिक मार पड़ी। हजारों लोगों की नौकरियां इस क्षेत्र से गई हैं।

बेरोजगारी से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले शहरों में लंदन है जहां बेरोजगारी दर, राष्ट्रीय औसत से डेढ़ फीसदी ज्यादा यानी साढे छह प्रतिशत रही।

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ओएनएस के ही आंकड़ों के मुताबिक सितंबर से नवंबर के बीच तीन लाख पच्चान्बे हजार लोगों को नौकरियों से बाहर कर दिया गया। रोजगार खोने वालों में भारतीयों की संख्या ज्यादा रही।

गैटविक एयरपोर्ट स्थित एक बड़े होटल में काम करने वाले एक भारतीय मनोज कहते हैं, “मैं असिस्टेंट फूड ऐंड बेवरेज के तौर पर काम कर रहा था। मार्च से जब लॉकडाउन हुआ तो बिजनेस पूरी तरह से बंद हो गया। मार्च से जुलाई तक तो फरलो के तहत सैलरी मिल रही थी लेकिन बाद में जब कंपनियों की तरफ से कुछ हिस्सा देने की बात आई तो हर जगह लोगों के कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने लगे।

मनोज कहते हैं कि लंदन में मेरे बहुत से दोस्तों के साथ यही हुआ। इसका इतना ज्यादा असर इस वजह से भी हुआ कि होटल उद्योग ,

पूरी तरह से पर्यटकों पर निर्भर है, यहां भारत जैसे देशों की तरह स्थानीय मांग नहीं है। मेरे दोस्त बताते हैं कि उनकी बुकिंग किताबों में इस साल के अंत तक फिलहाल एक भी कस्टमर का नाम नहीं है। ऐसे हाल में कब तक काम चलाया जा सकता है।

क्या हैं विकल्प

कोरोना महामारी के आर्थिक असर को गहराई से टटोलने पर कुछ बातें बहुत साफ तौर पर दिखाई देती हैं। जैसे स्वनियोजित या सीमित अवधि के करार पर काम करने वाले लोगों पर इसका ज्यादा असर हुआ, जबकि प्रशासनिक या सूचना-प्रौद्योगिकी से जुड़ी नौकरियों में पर्मानेंट कॉन्ट्रैक्ट या पक्की नौकरी पर काम करने वाले लोगों का रोजगार बचा रहा क्योंकि वो घर से ही काम कर सके।

इसके अलावा, वो उद्योग जो पारंपरिक तौर पर सस्ते प्रवासी कामगारों पर निर्भर रहे हैं, उनके बंद होने से गहरा असर पड़ा है जैसे होटल और खाद्य सेवाओं से जुड़ी कंपनियों में प्रवासी कर्मचारियों की संख्या काफी ज्यादा है।

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ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय स्थित माइग्रेंट ऑब्जर्वेट्री का शोध बताता है कि करीब बीस फीसदी प्रवासी कामगार खान-पान और होटल व्यवसाय से जुड़े हैं। कोरोना के चलते ये क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ क्योंकि रेस्टोरेंट और होटल जैसी जगहों में भी लोगों से दूरी बनाकर सुरक्षित तरीके से काम करने की संभावनाएं बहुत सीमित हैं और इन्हें बंद रखना पड़ा।

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रिपोर्ट के अनुसार खान-पान, होटल व्यवसाय, होलसेल और रिटेल तथा मैन्युफैक्चरिंग में करीब 600,000 नौकरियां खत्म हो गई हैं जो कुल नौकरियों का 70 प्रतिशत है। इनमें ज्यादातर अश्वेत, एशियन और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग काम करते हैं।

चूंकि भारतीय कर्मचारियों की संख्या भी इस क्षेत्र में काफी अधिक है, इसलिए इस क्षेत्र में नौकरियां खोने वाले लोगों में भारतीय बड़ी संख्या में हैं। हालांकि लोग निराशा के बावजूद, रोजगार के दूसरे अवसरों को खोजने और अपने विकल्प समझने की कोशिशों में लगे हुए हैं। कुछ को इंतजार है कि शायद इन्हीं परिस्थितियों से कोई नई दिशा दिखाई दे जाए।

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