शाखाएं मौसम हवायें
सब उसी के खिलाफ हैं
बस इसीलिए वो पत्ते आवारा हुए जा रहे हैं
कलम दवात दिख रहे हैं
आज कल मयखाने में
ज़रूर कुछ लोग आज शायर बने जा रहे हैं ।
जंग ज़रूरतें और ज़िम्मेदारियों
के बीच छिड़ी हुई है ,
और बेचारे ख्वाब हार हुए जा रहे हैं
वक़्त का साथ बखूबी पा रहे हैं
कुछ लोग , बस इसीलिए
वो तालाब हमारे सामने आज
समंदर हुए जा रहे हैं ।
बड़े दिलचस्प हैं ये बेकसूर लोग भी
खता कुछ भी नही है
पर शर्मिंदा हुए जा रहे हैं
लहज़े में बदतमीज़ी
चेहरे पे नकाब लिए फिर रहे हैं वो लोग
खुद के बहीखाते बिगड़े हुए हैं
और हमारे हिसाब हमे ही बताये जा रहे हैं ।
ना मैं गिरा ना मेर
हौसले की मीनारें गिर पा रहे हैं
पर मुझे गिराने में लोग
बार बार गिरे जा रहे हैं ।
शाखाएं मौसम हवायें
सब उसी के खिलाफ हैं
बस इसीलिए वो पत्ते आवारा हुए जा रहे हैं ।
कलम दवात दिख रहे हैं
आज कल मयखाने में
ज़रूर कुछ लोग आज शायर बने जा रहे हैं ।