राजेन्द्र कुमार
किसी भी महकमे की चाल उसका सुपर बॉस ही तय करता है। खासकर पुलिस की प्राथमिकताएं तो प्रदेश में डीजीपी साहब और जिले में कप्तान साहब तय करते हैं। अब फिर यूपी पुलिस ने एक बार फिर अपनी प्राथमिकताएं बदली हैं। तकनीक के बड़े-बड़े दावे दोहराने वाली पुलिस बेसिक पुलिसिंग के फंडे पर कदम लौटाती नजर आ रही है।
डीजीपी हितेश चंद्र अवस्थी अब रोज ही अपराध नियंत्रण के मूलमंत्र का सीधा संदेश अधीनस्थों को दे रहें हैं। हर बुधवार दो जोन की समीक्षा करने संबंधी व्यवस्था उन्होंने शुरू की है। वीडियो कांफ्रेंसिंग के दौरान इस समीक्षा बैठक में बात केवल अपराध और उसके अनावरण पर होती है। लिहाजा कई जिलों में बरसों से धूल खा रहीं बंद केसों की फाइलें भी बाहर निकलना शुरू हो गई हैं। टॉप 10 अपराधी पुलिस के रडार पर आ गए हैं। यही नही जिलों के थानों में आईजी और डीआईजी की कृपा से कितने थानेदारों की तैनाती हुई है और कितने थानेदारों को पुलिस कप्तान ने थानेदार बनाया है ? यह सब भी उजागर होने लगा है। अब तो पुलिस आयुक्तों की खामियों और उन पर उठाये गए सवालों पर भी समीक्षा बैठक में चर्चा होने लगी है। जिसके चलते थानेदारों की तैनाती में अब काम को प्राथमिकता मिलने लगी है।
इस व्यवस्था के शुरू होने से देख एक पूर्व डीजीपी का यह सुझाव है कि अब अगर हितेश अवस्थी अपराध नियंत्रण पर जोर देने के साथ ही भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ दें तो पटरी से उतरी गाडी फिर पटरी पर आ जायेगी। और थानों में ईमानदार थानेदारों की तैनाती होने लगेगी। आईजी-डीआईजी की कृपा से बने नकारा थानेदार साइड हो जायंगे। और थाने तथा जिला बिकने जैसे आरोप नही सुनायी देंगे।
इन पूर्व डीजीपी साहब का कहना है कि सूबे के पचास फीसदी थाने पुलिस कप्तान से लेकर आईजी और डीआईजी ही बेचते हैं। भ्रष्टाचार को लेकर अगर कप्तान को हडकाया जाए तो उसका असर थानों पर दिखता है। और दरोगा पुलिस कस्टडी में आयी कार से बेगार करने नही जाता। और ना ही कोई सीओ अपनी पोस्टिंग के लिए नेताओं से पुलिस अफसरों पर दबाव डलवाने की हिम्मत करता है। इसलिए डीजीपी को बेदर्दी दिखातें हुए खराब परफार्मेंस वाले 20 जिलों के पुलिस कप्तानों और पांच जोन के आईजी बदल देने चाहिए। उनके इस कदम से पुलिस महकमें में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा।
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अब देखना यह है कि पूर्व डीजीपी की इस सलाह को वर्तमान डीजीपी अपनी प्राथमिकता में कैसे शामिल करते हैं। उम्मीद यही है कि कानून-व्यवस्था के साथ भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने और आपराधिक घटनाओं पर जवाबदेही जिला पुलिस की रफ्तार और कार्यशैली को जरूर बदलेगी।
तबादला लिस्ट का इंतजार
वन विभाग में तबादला सीजन शुरू होने वाला है। हर साल इस सीजन का इस महकमें के आला अफसर और कर्मचारी बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं। सूबे में यह महकमा ही एकमात्र ऐसा महकमा है, जहां तैनात अधिकारी अपना तबादला कराने की अपेक्षा अपने साथी का तबादला कराने में खासा उत्साह दिखाते हैं। इस महकमें के एक डीएफओ ने पन्द्रह साल पहले तत्कालीन वन मंत्री से महकमें में एनटीए (नान ट्रांसफर एलाउंस) की शुरुआत करायी थी। आज हर महकमें में एनटीए पर अमल हो रहा है। ऐसे माहौल में वन महकमें में अरसे से खाली पड़ी आला अफसरों की कुर्सियों के भरने का दावा किया जा रहा है। महकमें में कई पद ऐसे हैं जिनके लिए लंबे समय से काबिल अफसर ही नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में कुछ अफसरों को अतिरिक्त चार्ज देकर काम चलाया जा रहा है। विभाग में यह हाल नीचे से लेकर ऊपर तक के सभी प्रमुख पदों का है।
वन प्रभागों में डीएफओ नहीं हैं एक-एक अफसर को कई-कई प्रभाग सौंपे गए हैं। वन संरक्षक से लेकर प्रमुख वन संरक्षक तक सभी पदों की महत्वपूर्ण कुर्सियां खाली हैं। इन पदों का काम कुछ अफसरों को अतिरिक्त प्रभार देकर चलाया जा रहा है। तबादला सीजन में उन्हें भी पद के अनुरूप कुर्सियां मिलने की उम्मीद है जिनकी पदोन्नतियां महीनों पहले हो चुकी हैं।
अब देखना यह है कि विभागीय मंत्री आईएफएस अफसरों से लेकर रेंज अफसर तक के तबादले किस नीति के आधार पर करेंगे। और सरकार की तबादला लिस्ट में राज्यपाल महोदया को दुधवा नेशनल पार्क शेर ना दिखा पाने वाले आईएफएस का नाम शामिल होगा या नही। दुधवा में तैनात ये अफसर का यह मान रहें हैं कि उनका तबादला तो निश्चित है क्योंकि वह दुधवा में वह राज्यपाल महोदया को जंगल में रह रहें शेर दिखाने में असफल रहे थे और इसके लिए उनका तबादला किया जा सकता है। तब से यह आईएफएस अफसर महकमें की तबादला लिस्ट का इंतजार कर रहें हैं।
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(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Jubilee Post उत्तरदायी नहीं है।)