जुबिली न्यूज डेस्क
बुंदेलखंड की जल सहेलियों के संघर्ष की कहानी को अब पूरा देश सुनने लगा है. जल सहेलियों की इस संघर्ष गाथा ने अब हिंदी सिनेमा को अभी अपनी और आकर्षित किया है.
बुन्देलखण्ड के पेयजल की इस समस्या और जल सहेलियों के संघर्ष पर फिल्म बनाने के लिए जेनी और दिपायन मंडल की टीम के फिल्म कलाकारों और प्रोड्यूसर दीपक दीवान पिछले 20 से 25 दिनों से बुंदेलखंड के क्षेत्र में शूटिंग करते रहे.
फिल्म की शूटिंग बुंदेलखंड के कई लोकेशंस पर हुयी . इस फिल्म में बुन्देलखण्ड की पेयजल की समस्या को उजागर किया जा रहा है और इसका समाधान भी प्रस्तुत किया जा रहा है.
बूंद फिल्म में जल सहेलिया पानी की जल संरचनाओं को सहेजने बनाने का काम करती हुई सूखे से प्रभावित गांवों मे तालाब और कुओं का निर्माण करती नजर आती हैं। इस फिल्म में परमार्थ समाज सेवी संस्थान के प्रमुख डॉ संजय सिंह जो बुन्देलखण्ड में पानी की समस्या को लेकर संघर्ष करते हैं उनके संघर्ष को फिल्म में अपने अभिनय से अभिनेता आरिफ शहडोली ने जीवंत किया है।
बुन्देलखण्ड में पानी की विभीष्टता झेल रहे बुन्देलखण्बुन्देलखण्डियो के संघर्षों की कहानी बूंद फिल्म के कथानक का आधार बनी है ।
बुन्देलखण्ड मे चाहे पाठा का क्षेत्र हो चाहे किशनगढ या पुरवा, भैसखार , राईपुरा हो ऐसे एक नहीं 50 गांव हैं जहां की महिलाये और बच्चे बच्चियां पेयजल के लिए अपने सर पर बर्तन रखकर के कई मील की यात्रायें करती है. बुन्देलखण्ड के क्षेत्र में पेयजल की विभीष्का को उजागर करता हुआ एक लोकगीत बहुत प्रसिद्ध है ” भौरा तेरा पानी जुल्म कर जाए, गागगागरी न फूटे चाहे खसम मर जाये ”
इस फिल्म के प्रमुख कलाकार हीरो रोहित चौधरी हीरोइन विधता बाग समीक्षा भटनागर , गोविंद नामदेव, आरिफ शहडोली, श्रेया , असित चटर्जी जैसे मझे अभिनेता और अभिनेत्रियों ने अपने पात्र को जीवंत कर दिया है ।
निर्देशक जैनी और दीपायन मंडल के कसे हुए निर्देशन में बनी यह फिल्म देश और विदेश में बुन्देलखण्ड की पानी और पेयजल की समस्या को प्रमुखता से उठाएगी और सबसे बड़ी बात यह है कि यह फिल्म समस्या ही नहीं उठाती बल्कि समाधान भी करती है।