शबाहत हुसैन विजेता
यूक्रेन पर बरसती रूसी मिसाइलें हकीकत में उसी कहावत का हिस्सा है जिसमें कहा गया है कि जिसकी लाठी उसकी भैंस. यह जंग वास्तव में वर्चस्व की जंग है. यह जंग खुद को दुनिया का चौधरी बनाने की कोशिश की जंग है. यूक्रेन के नागरिकों को आज़ादी दिलाने के नाम पर पुतिन इंसानी जिस्मों को खून के लोथड़ों में बदल रहे हैं. दरअसल उन्हें इंसानों से कुछ लेना-देना ही नहीं है उनकी दिलचस्पी तो यूक्रेन की ज़मीन को अपनी ज़मीन से मिलाने की है.
2022 में यूक्रेन पर हमला कर उसे रूस में मिलाने की यह ठीक वैसी ही कोशिश है जैसा कि 1999 में रूस ने चेचेन्या को वापस रूस में मिला लिया था. 2008 में रूस ने जार्जिया के साथ भी ऐसा ही किया था. जार्जिया को पूरी तरह से रूस में शामिल नहीं किया जा सका तो जार्जिया के दो राज्यों को दो स्वतंत्र देश बनाते हुए रूस ने वहां अपने सैन्य अड्डे स्थापित कर दिए और उन नये देशों को अपनी कठपुतली में बदल लिया.
सोवियत रूस विशालतम देशों में से एक था. इतने बड़े देश के सामने अमेरिका की दाल नहीं गल पाती थी. अमेरिका दुनिया का चौधरी बन जाए इसके लिए रूस का टूटना बहुत ज़रूरी था. कोशिशें चलती रहीं और अंततः 1991 में विशाल सोवियत रूस 15 देशों में विभाजित हो गया. यूक्रेन उन्हीं 15 देशों में से एक है. मतलब यूक्रेन रूस का ही एक हिस्सा है.
25 दिसम्बर 1991 को देश के 15 हिस्सों में टूट जाने को रूस हज़म नहीं कर पा रहा है. वह लगातार इस कोशिश में जुटा है कि किसी भी सूरत से इन सभी 15 देशों को वापस रूस का हिस्सा बना ले. साल 1991 में सोवियत रूस से अलग होकर आर्मीनिया, अजरबैजान, बेलारूस, जार्जिया, इस्टोनिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, यूक्रेन, लाताविया, लिथुआनिया, माल्डोवा और रूस की शक्ल में टूट गया.
ज़ाहिर सी बात है कि एक विशाल देश का 15 टुकड़ों में टूट जाना किसी बड़े सदमे से कम नहीं है. रूस टूट गया तो उस पर अमेरिका अपना वर्चस्व स्थापित करने में लग गया. अमेरिका ने टूटे हुए देशों को नाटो का सदस्य बनवाने की पैरवी शुरू कर दी. रूस से टूटे तीन देश लाताविया, लिथुआनिया और इस्टोनिया नाटो में शामिल भी हो गए. रूस के सामने दिक्कत यह आ गयी कि यूक्रेन भी नाटो का सदस्य बनने की कोशिश में लग गया था. वह नाटो का सदस्य बन जाता तो रूस की पकड़ से पूरी तरह से आज़ाद हो जाता. उसके फिर कभी रूस का हिस्सा बन जाने की संभावनाएं भी खत्म हो जातीं.
नाटो के 30 सदस्य देश हैं. नाटो का यह नियम है कि अगर कोई भी देश उसके सदस्य देश पर हमला करेगा तो सभी 30 देश उस देश के समर्थन में हमलावर देश को सबक सिखायेंगे. यूक्रेन का नाटो में शामिल होना लगभग तय हो गया था. वह नाटो में शामिल हो पाता उसके पहले ही रूस ने उस पर हमला बोल दिया. नाटो देश इसलिए खामोश हैं क्योंकि यूक्रेन नाटो का हिस्सा तो बनना चाहता था मगर वह उसका हिस्सा बन नहीं पाया था जबकि अमेरिका इसलिए नहीं बोला क्योंकि उसका तो असल मकसद ही यही है कि दुनिया में कहीं न कहीं जंग चलती ही रहे और उसके हथियारों की दुकान सजी रहे. उसके हथियार बिकते रहें.
रूस ने तो यूक्रेन पर हमला इसलिए बोला क्योंकि वह भी लाताविया, लिथुआनिया और इस्टोनिया की राह पर चल निकला था. रूस हर हाल में अपनी बिखरी हुई ताकत को वापस जुटाकर दोबारा से यूएसएसआर को अमेरिका के मुक़ाबिल खड़ा करना चाहता है लेकिन अमेरिका और नाटो देश लगातार इस कोशिश में जुटे हैं कि सोवियत रूस से टूटे हुए सभी देश नाटो के सदस्य बन जाएं और अमेरिका के हाथ में रूस की गर्दन दबी रहे.
यूक्रेन को भरोसा था कि अगर रूस ने उस पर हमला बोला तो उसके पीछे नाटो देशों की भी ताकत होगी और अमेरिका की भी लेकिन यह दोनों ही उसके साथ गद्दारी कर गए. गद्दारी भी इस हद तक कि अमेरिका तो यह चाहता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध तीसरे विश्वयुद्ध में बदल जाए. इस युद्ध में अमेरिका और नाटो का न बोलना यह भी दर्शाता है कि अमेरिका की हैसियत फिलहाल रूस से टकराने की नहीं है. जिस तरह से अमेरिका चीन और किम जोंग के नार्थ कोरिया से टकराने की हैसियत नहीं रखता है वैसे ही वह रूस का गरेबान भी नहीं पकड़ सकता है.
अमेरिका ठीक यही नीति भारत और चीन के मामले भी अपनाता दिखाई देता है. अमेरिका चाहता है कि भारत और चीन के बीच भीषण युद्ध हो. दिखावे के तौर पर अमेरिका भारत की पीठ पर हाथ रखे हुए भी नज़र आता है लेकिन अगर वास्तव में युद्ध छिड़ जाए तो अमेरिका इस युद्ध में भी सिर्फ तमाशबीन की भूमिका में ही खड़ा दिखाई देगा.
ईरान और इजराइल के बीच नफरत की ऊंची दीवार उठाने वाला अमेरिका ज़रूरत पड़ने पर इजराइल के साथ भी खड़ा होने वाला नहीं है यह बात उसने ईराक में ईरान के हाथों बुरी तरह से पिटने के बाद ईराक से भागकर साबित भी कर दिया. अमेरिका तो तालिबान के सामने भी नहीं टिक पाया और अफगानिस्तान को तिल-तिल कर मरने के लिए छोड़ दिया.
यूक्रेन सम्पन्न देश है. यूक्रेन बहुत खूबसूरत देश है. यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई करने दुनिया भर के लोग जाते हैं. वास्तव में है तो वह छोटा रूस ही. रूस का ही तो टूटा हुआ हिस्सा है. रूस की सम्पन्नता ही तो यूक्रेन में नज़र आती है. रूस में भी बड़ी संख्या में भारतीय पढ़ने के लिए जाते रहे हैं.
रूस के लिए यूक्रेन ठीक वैसे ही है जैसे हमारे लिए पाकिस्तान और बंगलादेश. यह हमारे ही टूटे हुए हिस्से हैं. चीन अपनी सीमाओं का लगातार विस्तार कर रहा है. भारत की सीमाएं ईरान को छूती थीं. हमारे टूटे हुए हिस्से हमें आँख दिखाने लगे हैं.
चीन अपने देश का विस्तार कर रहा है. रूस अपने टूटे हुए हिस्से को वापस हासिल करने की जुगत में लगा है. अमेरिका हर लड़ने वाले को हथियार बेचने में लगा है. अमेरिका दुनिया के सामने खुद को चौधरी की शक्ल में दिखाता है लेकिन किम जोंग जैसे तानाशाह से आँखें नहीं मिला पाता है.
यूक्रेन में जो कुछ हो रहा है उसके पीछे अमेरिका की गद्दारी और नाटो की छोटी सोच ही ज़िम्मेदार है. अपने देश के सम्मान के लिए खड़े होना हर शासक की ज़िम्मेदारी है मगर इंसानी खून की नदी बनाकर अपना सीमा विस्तार करने वालों का विरोध हर हाल में होना चाहिए.
भारत हमेशा से साहिर लुधियानवी की उस सोच के साथ खड़ा है, जिसमें उन्होंने कहा था :-
बम घरों पर गिरें कि सरहद पर, रूह-ए-तामीर ज़ख़्म खाती है.
खेत अपने जलें कि औरों के, ज़ीस्त फ़ाक़ों से तिलमिलाती है.
टैंक आगे बढ़ें कि पीछे हटें, कोख धरती की बाँझ होती है.
फ़त्ह का जश्न हो कि हार का सोग, ज़िंदगी मय्यतों पे रोती है.
जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है, जंग क्या मसअलों का हल देगी.
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