सुरेन्द्र दुबे
कोरोना के मामले अचानक बढ़ना शुरू हो गए है।संक्रमितों की संख्या सवा लाख के पार पहुंच चुकी है और इससे मरने वालों की संख्या चार हजार के करीब पहुंच चुकी है।वैसे तो ये आंकड़े विश्व की तुलना में सुकून देने वाले है।
हमें अपने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर प्रकृति से ज्यादा भरोसा करने की आदत पड़ गई है इसलिए जनता जानना चाहती है कि महाभारत का युद्ध जब 18 दिन में जीत लिया गया था तो कोरोना का युद्ध 60 से ज्यादा दिन के बाद भी हम क्यों नहीं जीत पाए है।
मोदी जी ने इक्कीस दिन में युद्ध जीत लेने का भरोसा दिलाया था पर कोरॉन्ना क्या कौरवों से ज्यादा ताकतवर है।
हो सकता है कि कोरॉना के सौ से ज्यादा भाई बहन हों। पर पांडव तो पांच ही थे।हमारे पास तो दस करोड़ से ज्यादा पांडव है।उनके पास श्री कृष्ण थे हमारे पास मोदी है। श्री कृष्ण ने तो एक बार ही गीता सुनाई थी।मोदी तो रात आठ बजे अक्सर गीता का ज्ञान सुनाते है।हमें श्रीकृष्ण से ज्यादा मोदी पर विश्वास है।श्रीकृष्ण को तो कभी देखा नहीं। पर मोदी तो हमारे सामने है।
हमको पता है कि हम कभी न कभी कोरोंना को हरा देंगे।किताब में जो चाहेंगे लिखा देंगे।महाभारत के समय भी हस्तिनापुर की ही मर्जी से इतिहास लिखा गया था।हमेशा हस्तिनापुर की ही मर्जी से इतिहास लिखा जाता है।लिख दिया गया कि बच्चों की गेंद निकालने के लिए श्रीकृष्ण ने कालिया नाग को मर्दन किया था।लोग पढ़ रहे हैं कि नहीं।
राजा महाराजाओं की कथाओं पर हम भारतीय कभी उंगली नहीं उठाते।अब आगे चलकर यह पढ़ाया जाएगा कि बाल नरेंद्र मगर का बच्चा उठा कर घर ले आए थे तो फिर कोई क्यों शंका करेगा।
जब चौबीस मार्च 2020 को लाक डाउन किया गया तो शहंशाह को यह पता ही नहीं था कि इस देश में करोड़ों प्रवासी मजदूर रहते हैं जिनके पास जब रोटी नहीं होगी तो वे अपने घरों को भागेंगे। इन्हे इतने बड़े देश में इधर से उधर जाने में इन्हें हफ्तों लगेंगे। अक्सर शहनशाह को रियाया के बारे में पता ही नहीं रहता है।
कुछ शहंशाह भेष बदल कर अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए भेष बदलकर निकलते थे।आजकल के शहंशाह मोतियाबिंद से पीड़ित है इस लिए इन्हें लाखों की संख्या में चिलचिलाती धूप में अपने घरों को पैदल भाग रहे प्रवासी भारतीय नहीं दिखाई दे रहे ।अब बीरबल का जमाना नहीं रहा इसलिए अकबर को समझाने के लिए बीरबल वाली खिचड़ी पकाने का जोखिम कौन उठाए।अब लोग महाभारत काल में जी रहे है जहां अधिकांश लोग भीष्म पितामह की तरह खून के आंसू पीते रहते हैं।
पच्चीस मई 2020 हो गई है।किसी को नहीं पता कि मजदूर कब तक भागते रहेंगे।जिन गरीबों के पास घरों में पैर फैलाने की जगह नहीं होती उन्हें सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिए कहा जा रहा है।इस देश में करोड़ों लोग फुटपाथ पर जिंदगी गुज़ार देते है।करोड़ों के पास एक कमरे का मकान है जिसमें दस लोग इस सुविधा से रहते है कि कुछ लोग रात ड्यूटी पर चले जाते है और कुछ लोग घर के बाहर फुटपाथ पर सो जाते है ताकि बहू बेटियां घर के अंदर से सकें।
इन लोगों पर एक साजिश के तहत आरोप लगाया जा रहा है कि इनके कारण कोरोन्ना बड़ी तेजी से फैल रहा है।लोग बर्थडे में भीड़ इकट्ठा कर रहे है। शादी में बड़ी बड़ी पार्टियां दे रहे हैं। उन पर कोरोना फैलाने का आरोप ना लगे इसलिए मजदूरों पर तोहमत मढ़ी जा रही है।
महामारी तो महामारी है उसको बदनामी से बचाने की कोशिश क्यों।सरकार को लगता है कि कहीं उसकी बदनामी न हो जाए इसलिए मीडिया में नैरेशन बनाया जा रहा है कि कहीं मोदी कि मेहनत बर्बाद न चली जाए।लोग सामाजिक दूरी बना कर नहीं रख पा रहे है इसके लिए मजदूरों को निशाने पर ले लिया गया है।
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अगर कोरोना से लड़ने में कामयाब रहे तो नरेंद्र मोदी जिंदाबाद। वरना इस देश की बदहाली के लिए मजदूरों को जिम्मेदार बता दिया जाएगा। मजदूर बेचारा हर तरफ से संकट में पड़ गया है। रोजी रोटी गई। पैदल चलते चलते पैरों में छाले पड़ गए और अब इज्जत के लाले।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं । ये उनके निजी विचार हैं)