के.पी. सिंह
हमीरपुर। यूपी के बुंदेलखंड में हमीरपुर विधानसभा सीट पर उप चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपना कब्जा बरकरार रखा है। लोकसभा के आम चुनाव के बाद प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का यह पहला लिटमस टेस्ट था।
शुक्रवार को हमीरपुर जिला मुख्यालय पर 34 चक्रों की मतगणना के बाद घोषित परिणाम में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी युवराज सिंह को 17771 मतों से कामयाबी मिली। हालांकि जीत के बावजूद उपचुनाव के परिणाम ने कुछ मामले में सत्तारूढ़ पार्टी को झटका दिया है जो कि सियासी हलकों में चर्चा का विषय बन सकता है।
विधानसभा के आम चुनाव में हमीरपुर सदर विधानसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के अशोक सिंह चंदेल को समाजवादी पार्टी के डा. मनोज कुमार प्रजापति के मुकाबले 48655 मतों से कामयाबी मिली थी। 2017 के विधानसभा आम चुनाव में समाजवादी पार्टी का कांग्रेस के साथ गठबंधन था।
इस बार कांग्रेस ने भी अपना उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारा और वह भी समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार का सजातीय इसलिए समाजवादी पार्टी के समीकरण गड़बड़ा गये। समाजवादी पार्टी ने उपचुनाव में डा. मनोज कुमार प्रजापति को ही रिपीट किया। डा. प्रजापति को इस बार 56397 मत मिले तो कांग्रेस के हरदीपक निषाद ने भी 16083 मत झटक लिए।
अगर इस बार भी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन होता तो शायद भाजपा को यह सीट गंवानी पड़ जाती। भाजपा के उम्मीदवार युवराज सिंह को 74168 मत मिले। गत चुनाव में भाजपा उम्मीदवार अशोक कुमार सिंह चंदेल को 110888 वोट हासिल हुए थे। जबकि गत चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के आधार वोट में शामिल ब्राहमण समुदाय ने अशोक चंदेल की जमकर मुखालफत की थी।
अशोक चंदेल को एक ही परिवार के ब्राहमण समाज के पांच लोगों की हत्या के आरोप में हाईकोर्ट ने आजीवन सजा का एलान कर दिया था जिसकी वजह से उन्हें सदस्यता से भी हाथ धोना पड़ा। उपचुनाव की नौबत इसी के चलते आई थी।
बहुजन समाज पार्टी ने इस सीट से नौशाद अली को उम्मीदवार बनाया था। उन्हें मात्र 28749 मत मिले। नौशाद अली को मुसलमानों तक ने वोट नही दिये। चुनाव अभियान के दौरान लोगों में चर्चा हो गई थी कि भाजपा की मदद के लिए वोट कटवा चेहरे के रूप में बसपा ने मुस्लिम चेहरे को उम्मीदवार बनाने का बेतुका फैसला लिया है और चुनाव परिणाम ने लोगों की इस धारणा पर मुहर लगा दी है। यह धारणा बसपा के राजनैतिक वजूद पर स्थायी असर डालने वाली साबित हो रही है।
कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में भी बुंदेलखंड में बैकवर्ड कार्ड खेला था। लेकिन कांग्रेस ने इसका फायदा उठाने के लिए पर्याप्त होमवर्क नही किया है। जिसके कारण उसे लगातार नाकामी का सामना करना पड़ रहा है। बैकवर्ड वोट की मानसिकता ठाकुर और वैश्य समाज की तरह पहले से कांग्रेस विरोधी रही है।
कांग्रेस ने थोक में बैकवर्ड को टिकट देने को लेकर उनके बीच अपने नीतिगत बदलाव का प्रचार न तो लोकसभा चुनाव में किया था और न ही अब किया है। जबकि ऐसा होना निहायत जरूरी था तांकि पार्टी के प्रति बैकवर्ड समाज की एलर्जी खत्म हो सकती।
दूसरी ओर कांग्रेस का परंपरागत प्रचारक भी मानसिक रूप से इस बदलाव को लेकर नये पहलू और दलीलों को प्रोपोगंडा वार में उठाने के लिए ट्रेंड नही किया गया।
महत्वपूर्ण यह भी है कि लोकसभा चुनाव के बाद प्रियंका गांधी लगातार यूपी में मोर्चा डाटे हुए हैं। उपचुनाव के प्रत्याशी तय करने से लेकर प्रचार की रणनीति तक की निगरानी वे सीधे कर रही हैं। ये लूप होल्स छूट रहे हैं जो उनकी नेतृत्व क्षमता के लिए प्रश्न चिन्ह बन सकते हैं।
समाजवादी पार्टी हमीरपुर उपचुनाव में फिर एक बार शिकस्त खाने को मजबूर भले ही हो गई हो लेकिन उपचुनाव के नतीजे से उसे अपने लिए उम्मीद की रोशनी भी कौंधती नजर आई होगी।
सत्ता विरोधी मतदाताओं ने प्रदेश के असली विपक्षी दल के रूप में समाजवादी पार्टी की स्वीकार्यता पर मुहर लगा दी है जो उपचुनाव में मत प्राप्ति के आकड़ों से जाहिर है। इसलिए भविष्य में एंटी इनकाम्बेंसी फैक्टर गाढ़ा होने की स्थिति में खुद को ही पूरा लाभ मिलने की उम्मीद समाजवादी पार्टी कर सकती है।
अन्य दलों में उपचुनाव में सीपीआई के जमील आलम मंसूरी को 3906, जनाधिकार पार्टी के राजा भइया को 5197, राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी के सुरेश कुमार वर्मा को 1648 और भारतीय शक्ति चेतना पार्टी के हनुमान मिश्रा को 1554 मत मिले जबकि 2290 मतदाताओं ने नोट का प्रयोग किया।