जुबिली न्यूज डेस्क
भारतीय जनता पार्टी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी हो या ना हो लेकिन जिस तरह से ये दल देश के हर बड़ें या छोटे चुनाव को गंभीरता से लेता है उसके देखने के बाद इसका क़द ज़रूर बढ़ा है।
बीजेपी ने जितनी मजबूती से पिछले साल आम चुनाव लड़ा उतनी मेहनत से बिहार विधानसभा चुनाव लड़ कर सत्ता हासिल की। इतना ही नहीं तेलंगाना के ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में चार से 48 सीटों पर पहुंच कर सबको चौंका दिया।
जब बीजेपी के बड़ें नेता हैदराबाद चुनाव में रैली करने गए तो कईयों ने इसकी आलोचना भी की लेकिन जीत को लक्ष्य बनाए पार्टी ने किसी का न सुनी और दक्षिण भारत की सियासत में अपनी आधार बनाना शुरू कर दिया।
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बीजेपी की तैयारियों का अंदाजा आज इस बात से भी लगा सकते हैं कि जिस केरल में बीजेपी का बहुत कम जनाधार है वहां पार्टी को मजबूत करने के लिए बीजेपी ने विधानसभा उपचुनाव में मिजोरम के पूर्व राज्यपाल के. राजशेखरन को मैदान में उतार दिया। हालांकि वो चुनाव हार गए लेकिन इससे उनके वोट प्रतिशत वृद्धि जरूर हुई।
उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी आगामी पंचायत चुनाव के जरिए पार्टी के वोट बैंक को और मजबूत बनाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है और पंचायत चुनाव को अहमियत दे रही है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव बीजेपी की प्रियॉरिटी लिस्ट में यूं नहीं आया है बल्कि पार्टी को और मजबूत करने के लिए इसके पीछे संघ और बीजेपी की सोच समझी रणनीति है।
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खासकर उन राज्यों में, जहां पार्टी की उपस्थिति अधिक नहीं है। इन चुनावों से ना केवल पार्टी को नए राज्य में प्रवेश मिल रहा है, बल्कि शहरी वोटर्स के बीच पैठ बनाने का मौका भी मिल रहा है। बीजेपी नेताओं का मानना है कि इससे लोकसभा और विधानसभा में बीजेपी का प्रदर्शन पहले से बेहतर हो रहा है।
ग्रेटर हैदराबाद म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन के हालिया चुनाव में प्रदर्शन को दोहराने की उम्मीद पार्टी केरल और जम्मू और कश्मीर में भी कर रही है। केरल के चुनाव मंगलवार को संपन्न हुए जबकि जम्मू-कश्मीर में आठ चरणों पर मतदान जारी है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन कहना है कि हमें केरल में करीब दो तिहाई सीटें जीतने का भरोसा है।
बीजेपी को ऐसी ही कुछ उम्मीद जम्मू-कश्मीर से भी है, जहां पार्टी ने शाहनवाज हुसैन और अनुराग ठाकुर जैसे कद्दावर नेताओं को मोर्चे पर लगाया हुआ है। ये ऐसे राज्य हैं, जहां बीजेपी के कदम जमे नहीं हैं। पार्टी को उम्मीद है कि शहरी निकाय चुनावों से चुनावी एंट्री मिलेगी। शहरी निकायों पर नियंत्रण से बीजेपी को बड़े क्षेत्रों तक पहुंच में आसानी होगी।
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अभी राजस्थान में हुए निकाय चुनाव भी इसी का उदाहरण है। बीजेपी कई सालों से चले आ रहे उस ट्रेंड को तोड़ा है जिसके अनुसार निकाय चुनाव में उसी दल की जीत होती है जिसकी राज्य में सरकार हो।
राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है लेकिन सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट की अपसी तनातनी का फायदा बीजेपी उठाया। अब इसका फायदा उसे विधानसभा में भी मिलने की उम्मीद है।
बीजेपी का अगला फोकस अब पंजाब है, जहां पुरानी सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने नए कृषि कानूनों के विरोध में गठबंधन तोड़ दिया।
बीजेपी के पंजाब प्रदेश अध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने कहा, ‘हमारा फोकस शहरी निकाय चुनावों पर है। मैं खुद चुनाव के मद्देनजर विभिन्न जिलों का दौरा कर संगठन को मजबूत करने में लगा हुआ हूं। अभी तक हम गठबंधन में लड़ते थे। लेकिन अब हम खुद के चुनाव निशान पर लड़ेंगे। वोटर्स को भी सीधे मतदान का मौका मिलेगा।’
पंजाब के स्थानीय निकाय चुनावों की तारीख का ऐलान होना अभी बाकी है लेकिन शर्मा को फरवरी 2021 में चुनाव होने की उम्मीद है।
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ओडिशा में 2017 में हुए पंचायत चुनावों में बीजेपी ने 851 में से 306 सीटों पर जीत दर्ज की थी। 2012 में यह संख्या महज 36 थी। सीटों में इतनी अधिक बढ़ोत्तरी के बाद 23 विधानसभा सीटों में जीत का रास्ता साफ हुआ। और बीजेपी प्रदेश में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनकर सामने आई। इतना ही नहीं 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के खाते में 8 सीटें भी आईं।
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इसी तरह बीजेपी ने हरियाणा में 2014 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत भी दर्ज की। दिसंबर 2018 में मेयर पद के लिए करनाल, रोहतक, हिसार, पानीपत और यमुनानगर में पहली बार प्रत्यक्ष तौर पर चुनाव हुए। बीजेपी ने इन सभी सीटों पर जीत हासिल की। इसका फायदा 2019 के लोकसभा चुनाव में मिला, जहां बीजेपी ने 10 सीटें जीती।
बता दें कि बीजेपी ने हरियाणा में पहली बार अपने दम पर 1991 में विधानसभा चुनाव लड़ा था। तब बीजेपी को 90 में से सिर्फ़ 2 सीटें मिल पाईं थीं और 70 उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो गई थीउसके बाद आए कई चुनावों में बीजेपी गठबंधन के भरोसे ही राज्य में बनी रही।