जुबिली न्यूज डेस्क
कहते हैं तस्वीरें शब्दों की मोहताज नहीं होती। एक तस्वीर हजार शब्द के बराबर होती है। ऐसा ही कुछ बिहार में हुआ। एनडीए के विज्ञापन में सिर्फ एक तस्वीर होने पर विवाद बढ़ गया।
पिछले दिनों बीजेपी द्वारा दिए गए विज्ञापन में मुख्यमंत्री नीतीश की गैरमौजूदगी ने विवाद बढ़ा दिया था। विज्ञापन में सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तस्वीर थी। इसको लेकर सियासी मायने तलाशे जाने लगे तो वहीं विपक्ष को हृष्ठ्र की एकजुटता प्रहार करने का मौका मिल गया था।
लेकिन विवाद बढ़ता देख बीजेपी ने अपनी गलती को सुधार लिया। विवाद ज्यादा बढ़ता इससे पहले ही भाजपा ने इसे खत्म करने की पहल कर दी।
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भाजपा ने 28 अक्टूबर को जो विज्ञापन अखबारों में दिया उसमें पीएम मोदी के साथ नीतीश कुमार की भी तस्वीर दिखी। इस विज्ञापन में जनता से अधिक से अधिक मतदान करने की अपील की गई।
इससे पहले रविवार को बीजेपी ने अखबारों में एक विज्ञापन दिया था जिसमें केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर थी। चूंकि बिहार में भाजपा और जेडीयू मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं और बीजेपी ने नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है, ऐसे में विज्ञापन में नीतीश की तस्वीर न होना तमाम सवाल खड़े कर रहा था।
बीजेपी के पोस्टर से नीतीश कुमार के गायब रहने पर सियासी चर्चा भी जोर शोर से उठी थी। पोस्टर को लेकर जेडीयू की असहजता से वाकिफ एलजेपी ने तो इसे मुद्दा ही बना दिया था।
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एलजेपी के नेता यह प्रचारित करने में जुट गए थे कि बीजेपी को नीतीश पर भरोसा नहीं है। वहीं महागठबंधन के नेता भी मुद्दा बनाने में जुट गए थे। फिर क्या चुनाव में नुकसान होता देख हृष्ठ्र के दलों ने अपनी गलती सुधार ली।
मोदी के उस विज्ञापन पर आरजेडी नेता तेजस्वी यादव का कहना था कि लोग नीतीश से नाराज हैं और इसलिए भाजपा उन्हें दरकिनार कर रही है। चिराग पासवान ने पूछा था कि बीजेपी ने नीतीश का पोस्टर हटा दिया है, इसके क्या मायने हैं?
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फिलहाल 28 अक्टूबर को जेडीयू ने मोदी के साथ नीतीश की तस्वीर लगी विज्ञापन को छपवाकर यह बताने की कोशिश की है कि एनडीए में सब कुछ ठीक ठाक है।