यशोदा श्रीवास्तव
2022 का विधानसभा चुनाव जीतने के लिए सभी राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है। एक सर्वेक्षण में युपी के 43 प्रतिशत वोटर बीजेपी के साथ हैं। दूसरे नंबर पर बसपा को बताया गया है और तीसरे नंबर पर सपा को। सर्वेक्षण में बाकी दलों का कहीं अतापता नहीं है। 2022 के विधानसभा चुनाव में इतने भारी समर्थन के दावे के बावजूद बीजेपी नेतृत्व का फरमान है कि विधानसभा चुनाव में पार्टी के सारे बड़े नेता चुनाव लड़ेंगे। कथित सर्वेक्षण का दावा यहीं सवालों के घेरे में आ जाता है। भारी समर्थन भी और यूपी के बड़े नेताओं के चुनाव लड़ने का हुक्म भी?
सभी पार्टियों के चुनावी दावे के बीच सभी राजनीतिक दल जातिय समीकरण को तलाशने में जुट गए हैं। सत्तारूढ़ बीजेपी यूपी में ब्राम्हण और पिछड़ों को एक जुट करने की रणनीति पर तेजी से काम कर रही है। योगी सरकार से यूपी के ब्राम्हण नाराज बताए जा रहे हैं। संख्या की दृष्टि से देंखें तो यूपी के पूर्वी हिस्से के जिलों में ब्राम्हण वोटरों की संख्या सर्वाधिक है। इस हिस्से के ब्राम्हणों को साधने का केंद्र गोरखपुर है। यहां के बाहुबली पंडित हरिशंकर तिवारी,अमरमणि सहित और भी कई ब्राम्हण चेहरे हैं जिन्हें ब्राम्हण समाज अपना मुखिया मानता है। कभी युपी की राजनीति में खासा दखल रखने वाले हरिशंकर तिवारी तथा अमरमणि इन दिनों उतने प्रभावशाली नहीं रह गए जितने सपा व बसपा के शासन काल में थे।
हरिशंकर तिवारी के छोटे पुत्र विनय शंकर तिवारी इस समय गोरखपुर जिले के चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र से बसपा के टिकट पर विधायक हैं तो अमर मणि के पुत्र नेपाल सीमा के विधानसभा क्षेत्र नवतनवा से निर्दल विधायक हैं लेकिन वे योगी के खेमे से जुड़े हुए हैं।
कहने का मतलब पूर्वांचल के असरदार ब्राम्हणों के दो गुटों में से एक अमरमणि का गुट वाया योगी बीजेपी के साथ है बावजूद इसके ब्राम्हण वोटरों के लिए बीजेपी कुछ और करने को सोच रही है। शायद इसी सोच के तहत पूर्वांचल के जिला सिद्धार्थनगर में माधव प्रसाद त्रिपाठी के नाम से एक मेडिकल कालेज की स्थापना की गई। स्व माधव प्रसाद त्रिपाठी यूपी के डुमरियागंज ससदीय सीट से सांसद व उप्र भारतीय जनता पार्टी के पहले अध्यक्ष थे।
पिछड़ों पर भी भाजपा की नजर है। यही वजह है कि बीजेपी ने यूपी से जुड़े पिछड़े वर्ग के तमाम नेताओं को एनडीए का हिस्सा बना रखा है। पूर्वी यूपी के कई जिलों में राजभर जाति की संख्या राजनीतिक दृष्टि से निर्णायक है। इस जाति के प्रमुख नेता ओम प्रकाश राजभर पूर्व में योगी सरकार में मंत्री थे। बीच में कुछ खटपट हो गया तो एनडीए से अलग हो गए। अब उन्हें फिरसे भाजपा में लाए जाने की कोशिश चल रही है।
जातिय अंकगणित के हिसाब से यूपी का पूर्वांचल कुर्मी बाहुल्य भी है। शायद यही वजह है कि 6 बार से बीजेपी से सांसद होते रहे महराजगंज संसदीय क्षेत्र के सांसद पंकज चैधरी पर सरकार की अब जाकर नजर ए इनायत हुई और उन्हें वित्त राज्य मंत्री बनाया गया। इसी तरह मिरजापुर की सांसद अनुप्रिया पटेल को मोदी सरकार के दूसरे पारी में तीन साल के इंतजार के बाद दूसरी बार अब जाकर जगह मिली। इतना ही नहीं प्रतापगढ़ में बन रहे मेडिकल कालेज का नाम स्व. सोने लाल पटेल मेडिकल कालेज रखा गया है। स्व. सोने लाल पटेल अनुप्रिया पटेल के पिता थे जिनकी पहचान यूपी में मुलायम सिंह के बाद पिछड़ों की राजनीत में भागीदारी की अलख जगाने वाले दूसरे बड़े नेता के रूप में थी।
बीजेपी अन्य तमाम सर्वण जातियों को लेकर मुत्मईन है। युपी का ठाकुर भी भाजपा को छोड़ने के मूड में नहीं है। इसके अलावा बीजेपी का एक और बड़ा चुनावी कार्ड दलितों को लेकर भी है।
भाजपा के भीतर बसपा के दलित वोटरों को अपने पाले में करने की रणनीति पर गहनता से मंथन चल रहा है। भाजपा इसके लिए यूपी कैडर के अवकाश प्राप्त आधा दर्जन दलित अफसरों को तैयार कर रही है। ये वे दलित अफसर हैं जो मायावती के शासनकाल में उनके करीबी और बेहद खास रहे हैं। विधानसभा चुनाव में यही पूर्व अफसर मायावती केे दलित प्रेम की बखिया उधेड़ेंगे। मायावती शासनकाल में एससीएसटी आयोग और दलित उत्पीड़न के मुकदमों को लेकर उन्हें घेरने की तैयारी है। भाजपा के इस रणनीत के पीछे हाल ही भाजपा के कोटे से राज्यसभा सदस्य हुए यूपी के पूर्व डीजीपी वृजलाल का दिमाग है। रिटायर्ड होते ही वृजलाल को सीएम योगी आदित्यनाथ ने एससीएसटी आयोग का चेयरमैन भी बनाया था।
बसपा से दलितों को तोड़ने के लिए उस पर सबसे बड़ा इल्जाम है कि जिन वोटरों के बदौलत वह सत्ता के शिखर तक पंहुची, उन्हें कैसे कैसे गुमराह कर केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया और उनका सौदा किया गया। 13 मई 2007 को पूर्ण बहुमत की सरकार सत्ताशीन होने के एक सप्ताह बाद ही तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने तत्कालीन मुख्य सचिव के हस्ताक्षर से आदेश जारी करवाया कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के पीड़ित व्यक्तियों के मामले में हत्या,बलात्कार व हत्या के प्रयास जैसे मामलों को छोड़कर अन्य मामलों में एससी एसटी एक्ट के तहत मुकदमें पंजिकृत नहीं होंगे।
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मायवाती के काफी नजदीक रहे एक मौजूदा दलित अफसर का कहना है कि मायावती के इस आदेश से दलितों को दो तरफा प्रताड़ना झेलने को मजबूर होना पड़ा। प्रताड़ित होेने वाले दलित परिवार को सरकार द्वारा जो इमदाद मिलता उससे भी महरूम होना पड़ा क्योंकि जबतक एससीएसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज नहीं होता तब तक पीड़ित व्यक्ति सरकारी इमदाद का हकदार नहीं हो सकता था। बीजेपी का प्रमुख दलित चेहरा बन चुके राज्यसभा सदस्य वृजलाल के मुताबिक भाजपा ने बसपा के दलित एक्ट को संशोधित कर न केवल उन्हें मिलने वाला सरकारी इमदाद चार गुना कर दिया है, मुकदमा दर्ज होते ही पीड़ित इस सरकारी इमदाद का हकदार हो जाता। बीजेपी सरकार ने दलित उत्पीड़न के मामले में मुकदमा दर्ज करने की अनिवार्य कानून भी बना दिया।
विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर बीजेपी की जो बिसात है उसके तहत वह अपने परंपरागत वोटरों को लेकर जहां मुत्मईन है वहीं पिछड़ों,दलितों और नाराज वोटरों को साधने की पुरजोर कोशिश में है।