जुबिली न्यूज डेस्क
अक्सर अपने बयानों की वजह से चर्चा में रहने वाले भाजपा राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर बड़ा आरोप लगाया है।
सोशल मीडिया पर भाजपा सांसद स्वामी जहां मोदी सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ते वहीं तो वहीं कांग्रेस के खिलाफ भी काफी मुखर रहते हैं।
स्वामी सोशल मीडिया पर अक्सर अपने पुराने किस्से साझा करते रहते हैं, खासकर 1975 की इमरजेंसी के दौर के, जब वह खुद आपातकाल में इंदिरा गांधी सरकार के निशाने पर थे।
आज यानी मंगलवार को स्वामी ने एक नया खुलासा किया है। उन्होंने कहा है कि वे जेपी से आखिरी समय में मिले थे। इंदिरा गांधी ने उन्हें इमरजेंसी के दौरान दवाएं तक नहीं लेने दी थीं, जिसकी वजह से उनकी किडनियां खराब हो गईं।
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भाजपा सांसद ने दावा किया कि इसके चलते जेपी को अपना बाकी पूरा जीवन दर्दनाक डायलिसिस पर बिताना पड़ा।
बीजेपी सांसद ने अपने ट्वीट में इमरजेंसी के दौर का जिक्र करते हुए लिखा है, “मैं जेपी से अंतिम स्टेज में मिला था और उन्होंने जो कहा उसका रिकॉर्डेड टेप मेरे पास है। इस बैठक की एक फोटो भी मिल सकती है। इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान उन्हें अकेले बंद रखा था और उन्हें दवाएं देने से भी रोक दिया था, जिसकी वजह से उनकी किडनी खराब हो गईं। उन्हें अपनी बाकी जिंदगी दर्दनाक डायलिसिस पर बितानी पड़ी।”
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आपातकाल में जेल में ही खराब हो गई थी जेपी की तबियत
मालूम हो कि साल 1975 में जब आपातकाल घोषित हुआ तो जेपी समेत दर्जनों नेताओं को जेल में डाल दिया गया था। जेल में बंद रहने के दौरान ही जेपी की तबियत काफी खराब हो गई थी, जिसके चलते उन्हें 1976 में उन्हें रिहा कर दिया गया था। वहां से उन्हें मुंबई के जसलोक अस्पताल में इलाज के लिए ले जाया गया। अस्पताल में उनकी किडनी खराब होने की बात सामने आई। बताया जाता है कि इसके बाद से ही वह लगातार डायलिसिस पर रहे। अंतत: 8 अक्टूबर 1979 को पटना में उनका दिल का दौरा पडऩे से निधन हो गया।
स्वामी के आपातकाल के दौर के कई किस्से हैं चर्चित
भाजपा सांसद स्वामी इंदिरा गांधी की ओर से 1975 में लगाई गई इमरजेंसी को लेकर काफी मुखर रहे हैं। इस दौर में वे खुद उन कुछ नेताओं में रहे, जो इंदिरा सरकार के चंगुल से भागकर उनके खिलाफ अंडरग्राउंड होकर अभियान चलाते रहे।
कुछ दिनों पहले ही स्वामी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वे इमरजेंसी के दौरान जब अमेरिका में थे, तब उन्हें यह साबित करना था कि उनका भूमिगत संगठन प्रभावी था और इसीलिए वे सारे जोखिम उठाते हुए भारत आए। जबकि उनके नाम पर पहले ही अरेस्ट वॉरंट तक निकला था।
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