सुरेंद्र दुबे
आजकल हर तरफ न्यू इंडिया की बात हो रही है, होनी भी चाहिए। ओल्ड इंडिया के सहारे आखिर हम कब तक रेंगते रहेंगे। अब कोई भी देश या शासन जनप्रतिनिधियों व नौकरशाही के बल पर ही चलता है। हमारे ये दोनों ही स्तंभ जंक खाकर टूटने के कगार पर पहुंच गए हैं। ये शासन चलाते कम हैं और लटकाते व अटकाते ज्यादा हैं। नौकरशाही पर फिर कभी चर्चा करूंगा। आज जनप्रतिनिधियों की दबंगई पर बात कर लेते हैं।
कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश के इंदौर में भाजपा के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र आकाश विजयवर्गीय ने नगर निगम के अधिकारियों की क्रिकेट खेलने वाले बल्ले से सिर्फ इसलिए पिटाई कर दी थी क्योकि वे एक ऐसे जर्जर मकान को गिराने के लिए दलबल के साथ पहुंच गए थे, जिसे आकाश गिराने नहीं देना चाहते थे। आकाश वहां विधायक हैं इसलिए उन्हें ये बड़ा अपमानजनक लगा कि नगर निगम के अधिकारी उनकी इच्छा के विरूद्ध मकान गिराने पर आमादा हैं। ये एक विधायक की करतूत थी।
आइये अब दूसरी घटना की चर्चा कर लेते हैं ये उत्तर प्रदेश के आगरा की घटना है। जहां इटावा से भाजपा के सांसद व अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग के अध्यक्ष रमाशंकर कठेरिया के गार्डो व समर्थकों ने आगरा में इनर रिंग रोड टोल प्लाजा पर टोल कर्मियों को सिर्फ इस लिए पीट दिया क्योंकि उन्होंने ये निवेदन किया था कि काफिले की गाड़ियां एक-एक कर निकले ताकि टोल बैरियर से कोई टकरा न जाए। इस काफिले में पांच कारें और एक बस शामिल थी। जाहिर है नेता को ये बात पसंद नहीं आई, जिसके बाद टोलकर्मियों की जमकर पिटाई की गई और ये सारी घटना सीसीटीवी में कैद हो गई। इस मामले में आगरा पुलिस ने आईपीसी की धारा 147 (दंगा) 336 (दूसरों की सुरक्षा को खतरे में डालने वाला कार्य), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने की सजा), 506 (आपराधिक गतिविधि के लिए सजा) और शस्त्र अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है।
मैं इन दो घटनाओं को इसलिए जोड़कर देख रहा हूं क्योंकि एक घटना में विधायक शामिल है और एक में सांसद। विधायक राज्यों में सरकार चलाते हैं और सांसद केंद्र में। दोनों की इस तरह की स्वेच्छाचारिता से सिस्टम पर असर पड़ता है और सिस्टम में शामिल लोग नेताओं की औकात के हिसाब से उसके सामने बौने बनकर खड़े हो जाते हैं। ये कोई अकेली दो घटनाएं नहीं हैं इस तरह की सैंकडों घटनाएं हर सरकार में होती रहतीं हैं। ये कोई पार्टी विशेष का चरित्र नहीं हैं। ये हर शासन में चलता रहता है।
इंदौर की घटना के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई दिन बाद इस घटना का संज्ञान लिया और भाजपा संसदीय दल की बैठक में कैलाश विजयवर्गीय व उनके बेटे आकाश दोनों को जमकर लताड़ लगाई और यहां तक कह दिया कि इस तरह के लोगों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए। अब जब बात नरेंद्र मोदी की है तो फिर कौन पंगा ले। मध्य प्रदेश भाजपा ने कैलाश विजयवर्गीय तथा आकाश विजयवर्गीय और उनके समर्थकों पर कड़ी कार्रवाई करने का मन बना लिया है। आकाश को पार्टी ने कारण बताओ नोटिस भी थमा दिया है। देखना है कि क्या आकाश और उनके अंहकारी पिता कैलाश के विरूद्ध कोई कड़ी कार्रवाई होती है या नहीं।
अब आगरा की घटना को ले लेते हैं, चूंकि प्रधानमंत्री की नारजगी की गूंज अभी थमी नहीं थी इसलिए टोल प्लाजा वाली घटना के लिए सांसद रमाशंकर कठेरिया, उनके गार्डो और समर्थकों के विरूद्ध विभिन्न धाराओं में मजबूरी में मुकदमा दर्ज कर लिया गया। मध्य प्रदेश में चूंकि कांग्रेस की सरकार है इसलिए वहां तो भाजपा यह कह कर बच सकती है कि कांग्रेस ने भाजपाईयों को दुर्भावना वश फंसा दिया। पर उत्तर प्रदेश में तो भाजपा की ही सरकार है। इसलिए यहां विपक्ष पर तोहमत मढ़ने का कोई बहाना नहीं है। दोनों घटनाओं में सिस्टम को ही ललकारा गया है।
इंदौर में नगर निगम के कर्मचारियों पर हमला हुआ जो सिस्टम का अंग हैं और आगरा में टोल कर्मचारियों पर हमला हुआ, जिन्हें टोल सिस्टम संचालित करने का ठेका सरकार ही देती है। दोनों जगह सिस्टम हाथ जोड़े खड़ा है, क्योंकि उसका अनुभव ये बताता है कि जनप्रतिनिधियों के आगे वो बहुत बौने हैं, होगा वहीं जो नेता जी चाहेंगे। बस यहीं से ये प्रश्न खड़ा होता है कि क्या इसी तरह की व्यवस्था से न्यू इंडिया बनेगा।
भारतीय जनता पार्टी केंद्र में प्रचण्ड बहुमत से सत्ता में है तथा तीन चौथाई देश में भी उसी की सत्ता है। अब ये सवाल पूछा जाना वाजिब है कि क्या जनप्रतिनिधियों की वर्षों से चली आ रही दबंगई या सीधे-साधे शब्दों में कहे तो गुण्डई पर कोई लगाम लगेगी। क्या नई सत्ता का चरित्र पुरानी सत्ता से इतर होगा। अक्सर ये कहा जाता रहा है कि बहुमत न होने के कारण सत्ताधारी दल चाह कर भी इस तरह के सांसदों और विधायकों को पार्टी से बाहर का रास्ता नहीं दिखा पाते हैं।
अब इस समय तो भाजपा के पास प्रचण्ड बहुमत है और नरेंद्र मोदी जैसा दृढ़ इच्छाशक्ति वाला प्रधानमंत्री और शायद यही वजह थी कि नरेंद्र मोदी ने आकाश विजयवर्गीय द्वारा की गई गुण्डई का संज्ञान लिया और उन्हें एक तरह से पार्टी से बाहर निकाल देने का संदेश दे दिया। परंतु भाजपा के भीतर जो हलचल मची हुई है उससे इस बात की संभावनाएं बहुत कम लगती हैं कि आकाश को पार्टी से निकाला जाएगा।
ये भी मुश्किल लगता है कि उनके पिता कैलाश विजयवर्गीय के विरूद्ध कोई कड़ी कार्रवाई होगी, जो न केवल अपने बेटे को बेशर्मी के साथ बचाने में लगे हुए थे बल्कि पत्रकारों से उनकी औकात भी पूछ रहे थे। मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री आकाश से कम उनके पिता कैलाश से ज्यादा नाराज हैं। कैलाश पर तो पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार को उखाड़ फेंकनें का दायित्व है। ऐसे में उनपर कोई कार्रवाई होगी इसपर प्रश्नचिन्ह है।
ये शंकाएं और आशंकाएं माहौल में क्यों तैर रही हैं, इसे समझने के लिए हमें लोकसभा चुनाव के दौर में जाना होगा। जब भोपाल की भाजपा प्रत्याशी जो अब सांसद बन गईं हैं, ने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथू राम गोड़से को देश भक्त बता कर भाजपा की छीछालेदर करा दी थी। नरेंद्र मोदी इससे तिलमिला गए थे और अपने गुस्से का इजहार उन्होंने इन शब्दों में किया था, ‘प्रज्ञा ने भले ही माफी मांग ली हो पर वह उन्हें दिल से कभी माफ नहीं कर पाएंगे।‘ तब पूरे देश को ये लगा था कि अब प्रज्ञा का भाजपा में रह पाना मुश्किल है उन्हें कारण बताओं नोटिस जरूर दी गई पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
अब लोग यह कह रहें हैं कि अगर प्रज्ञा पर कड़ी कार्रवाई हो गई होती तो पूरे कैडर में एक कड़ा संदेश जाता और आकाश विजयवर्गीय व रमाशंकर कठेरिया जैसे जनप्रतिनिधि सिस्टम को ललकारनें कि हिम्मत नहीं करते। जब प्रधानमंत्री के हस्तेक्षेप के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं होगी तो फिर सिस्टम का कद और बौना हो जाएगा तथा जनप्रतिनिधि और बड़े हो जाएंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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