सुरेंद्र दुबे
आखिर चिन्मयानंद बड़े जलवे के साथ पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए। मैं जानबूझकर उनके नाम के पहले स्वामी नहीं लगा रहा हूं, क्योंकि स्वामी का मतलब होता है अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखने वाला साधु पुरूष। ये तो बहुत ही लंपट किस्म के निकले। मुमुक्ष आश्रम में अपनी बेटी के बराबर की उम्र की लड़की से मालिश कराते हुए अय्याशी करते थे।
मुमुक्ष आश्रम का मतलब हुआ एक ऐसा आश्रम जहां जन्म और मृत्यु के बंधन से छुटकारा पाने के लिए मोक्ष प्राप्त करने की दिशा में प्रयासरत साधु-संन्यासियों का आश्रम। ये पहली बार पता चला की मोक्ष प्राप्त करने के लिए तेल-मालिश भी कराने की जरूरत पड़ती है।
पत्रकार होने के नाते मेरी कई बार उनसे लखनऊ व दिल्ली में मुलाकात हुई। देखने में नेता कम विद्वान दिखते थे। ये तो अब जाकर पता चला कि वे न नेता थे और न ही विद्वान। धर्म की आड़ में नारियों का शोषण उनके जीवन लक्ष्य जैसा था। शायद यही मोक्ष प्राप्ति की उनकी परिभाषा रही होगी। इससे तो वे साधारणजन मोक्ष प्राप्ति के ज्यादा निकट हैं, जो पूरी जिंदगी सदाचार का जीवन व्यतीत करते हुए पापों से बचे रहते हैं।
चिन्मयानंद बड़े आदमी हैं सो बड़े आदमियों की बड्डी-बड्डी बातें। सुप्रीम कोर्ट के दखल के बावजूद पुलिस उन्हें अंतिम छण तक बचाने में जुटी रही। अगर उस लड़की के पास स्वामी जी के कारनामों के वीडियो न होते तो पुलिस उन्हें कभी-भी गिरफ्तार करने की जहमत नहीं उठाती। प्रेस ने भी खूब हो हल्ला मचाया। बहुत दिनों बाद ऐसा लगा कि प्रेस वाले कभी-कभी अच्छा काम भी कर लेते हैं।
शायद वे ढिंढोरा पीटने के काम से उक्ताकर अपनी आत्मा पड़े मैल को साफ कर रहे थे। पुलिस की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) प्रमुख और पुलिस महानिरीक्षक नवीन अरोड़ा ने प्रेस को धमकी भी दी कि वे मीडिया ट्रायल न करें। वह इसकी शिकायत प्रेस काउंसिल से करेंगे। पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। सरकार के खिलाफ बहुत रायता फैल चुका था। लिहाजा पुलिस ने उन्हें अस्पताल से छुट्टी दिला कर पहले मुमुक्ष आश्रम पहुंचाया और फिर गिरफ्तार कर लिया।
बड़ा शोर है कि चिन्मयानंद को रेप के आरोप में गिरफ्तार किया गया है, जबकि हकीकत ये है कि उन्हें धारा 376 में गिरफ्तार न करके धारा 376 (सी) में गिरफ्तार किया गया है। जिसका सीधा-सीधा मतलब रेप के बजाए दबाव बना कर यौन शोषण करना है, जिसमें चिन्मयानंद पांच-छह साल की सजा पाकर रिहा हो सकते हैं।
जबकि रेप की धारा में उन्हें आजीवन कारावास भुगतना पड़ सकता है। एक और पेंच फंसा दिया गया है चिन्मयानंद को ब्लैकमेल करने के आरोप में लड़की के तीन सहयोगियों को भी गिरफ्तार किया गया है, जिसमें दो उसके चचेरे भाई हैं। लड़की का भी नाम एफआईआर में है इसलिए उसपर भी गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है।
अगर ऐसा होता है तो लड़की पर दबाव बनाना काफी आसान हो जाएगा। शायद ऐसा हो भी चुका होता परंतु 23 सितंबर को हाईकोर्ट में एसआईटी को स्टेटस रिपोर्ट पेश करनी है इसलिए पुलिस फूंक-फूंक कर कदम रख रही है।
भारतीय जनता पार्टी अभी तक चिन्मयानंद को पार्टी से निलंबित करने या निष्कासित करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है। इससे चिन्मयानंद के रूतबे का पता चलता है। इसके पहले कुलदीप सिंह सेंगर के मामले में भी भाजपा ऐसी ही ढिठाई दिखा चुकी है। सेंगर इस समय रेप के मामले में जेल में बंद हैं और उनके लिए गठित विशेष अदालत जल्दी ही उन्हें सजा सुना सकती है। ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि चिन्मयानंद पर भी कानून ऐसी सख्ती दिखाए।
पर इस सबसे इतर एक प्रश्न मेरे मन को साल रहा है कि आखिर हमारा समाज कहां पहुंच रहा है। एक जमाना था जब साधु-संन्यसियों को देखकर हमारा सिर श्रद्धा से झुक जाता था और अब ऐसा समय आने वाला है जब साधु-संन्यासियों को देखकर हमारा सिर शरम से झुक जाया करेगा। हमारे पास इसके कई ठोस कारण मौजूद हैं।
बाबा आसाराम बापू व उनके बेटे नारायण साईं दोनों ही रेप के आरोप में आजीवन कैद की सजा काट रहे हैं। एक और बाबा हैं जिनका नाम बाबा गुरमीत राम रहीम है वो भी रेप के एक मामले में 20 वर्ष की सजा काट रहे हैं। अभी उनपर कई और मुकदमें भी चल रहें हैं, जिनमें सजा होने के बाद तो हो सकता है कि सजा काटने के लिए उन्हें दोबारा जन्म लेना पड़े।
लगता है वाकई कलयुग आ गया है जो कुछ बाबा लोग कर रहे हैं वह कलयुग के कुछ लक्षणों के संकेत हैं। एक बाबा शनिधाम के दाती महाराज हैं जो कभी टीवी पर छाए रहते थे वे भी रेप के मुकदमें में फंसे हुए हैं। न जाने कौन सा जुगाड़ काम आ गया है कि न तो उनकी अभी तक गिरफ्तारी हुई है और न ही आजकल उनका अता पता है। चलिए एक बाबा का और जिक्र कर लेते हैं- बाबा वीरेंद्र नाथ दीक्षित इन पर एक नहीं अनेक शिष्याओं के साथ रेप के आरोप हैं। पर दिल्ली पुलिस इन्हें ढूंढ नहीं पा रही है।
अगर मामला उत्तर प्रदेश का होता तो ये जरूर पकड़े जाते क्योंकि उत्तर प्रदेश की पुलिस आदमी क्या भैंस तक ढूंढ लाती है। ये सारे साधु-संत भक्तों को मोक्ष दिलाने के नाम पर ही भोग विलास में रमे हुए थे। हो सकता है यह मोक्ष पाने का कोई कलयुगी जतन हो। चलो कम से कम कुछ साधु आश्रमों से मोक्ष पाकर जेलों में मोक्ष का आनंद तो उठा रहे हैं। बाकी कुछ उसी प्रयास में लगे हुए हैं।
ये तो कुछ बाबाओं के कारनामें हमने बताएं। तमाम कारनामें ऐसे हो सकते हैं जो चोरी-छिपे जारी हों। मुझे लगता है कि साधु-संन्यासियों के संगठनों को स्वयं सामने आकर इस तरह के बाबाओं की सार्वजनिक रूप से निंदा करनी चाहिए। ताकि कुछ लोगों के चक्कर में पूरी बिरादरी न बदनाम हो जाए और अफसोस है कि ऐसा कोई प्रयास साधु-संन्यासियों के संगठनों की ओर से सामने नहीं आया है।
पूरी बिरादरी शक की निगाह से देखी जाने लगी। कई बार टीवी डिबेट पर तो गंदे साधुओं के समर्थन में कुछ अच्छे साधु भी उतर आते हैं। हो सकता है इन लोगों की कुछ मजबूरियों हों परंतु इन लोगों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि सनातन धर्म को साफ-सुथरा बनाए रखने का दायित्व भी इन्हीं के कंधों पर हैं। अगर यही हाल रहा तो वह दिन भी दूर नहीं जब मां-बाप अपनी बेटियों को यह भी शिक्षा दिया करेंगे कि साधु-संन्यासियों से हमेशा दूर ही रहना। यह लोग कभी भी बाज की तरह तुम पर झपट्टा मार सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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