सुधांशु त्रिपाठी
सत्ताधारी राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी के पितामह और संस्थापक सदस्य लालकृष्ण आडवाणी जी ने आज अपनी सियासी चुप्पी तोड़ ही दी। वर्ष 2015 के बाद पहली बार उन्होंने अपने ब्लाग को अपडेट किया। वह भी पार्टी के स्थापना दिवस 6 अप्रैल से महज दो रोज पहले।
आडवाणी जी ने पूरी साफगोई और स्पष्टवादिता के साथ पार्टी के वर्तमान केंद्रीय नेतृत्व को सैद्धांतिक तौर पर आत्ममंथन की अमूल्य सलाह दी है।
उन्होंने लिखा कि 6 अप्रैल को भाजपा का स्थापना दिवस है और इस मौके पर हम सभी को पीछे देखने के साथ आगे देखने और अपने अंदर भी झांककर देखने की जरूरत है। आडवाणी ने लम्बे समय बाद राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य पर अपने मौन को तोड़ते हुए जो कुछ भी कहा उसके मायने भी हैं।
‘राष्ट्र विरोधी’ करार देने के चलन काफी भयावह
उन्होंने लिखा कि उनकी पार्टी ने राजनीतिक रूप से असहमत होने वाले को कभी ‘‘राष्ट्र विरोधी’’ नहीं माना है। सरकार का विरोध करने वाले राजनीतिक स्वरों को ‘राष्ट्र विरोधी’ करार देने के चलन काफी भयावह है।
चुनावी माहौल में राष्ट्रवाद पर छिड़ी बहसों के बीच भाजपा के इस वरिष्ठतम नेता की यह कड़ी टिप्पणी काफी महत्व रखती है। ‘नेशन फर्स्ट, पार्टी नेक्स्ट, सेल्फ लास्ट (राष्ट्र प्रथम, फिर पार्टी, स्वयं अंत में)’’ शीर्षक से अपने ब्लॉग में आडवाणी ने कहा, ‘‘ भारतीय लोकतंत्र का सार विविधता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिये सम्मान है। अपनी स्थापना के समय से ही भाजपा ने राजनीतिक रूप से असहमत होने वालों को कभी ‘दुश्मन’ नहीं माना बल्कि प्रतिद्वन्द्वी ही माना।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इसी प्रकार से राष्ट्रवाद की हमारी धारणा में हमने राजनीतिक रूप से असहमत होने वालों को ‘राष्ट्र विरोधी’ नहीं माना। भाजपा व्यक्तिगत एवं राजनीतिक स्तर पर हर नागरिक की पसंद की स्वतंत्रता को हमेशा से ही प्रतिबद्ध रही है।’’
मतदाताओं के प्रति आभार
लालकृष्ण आडवाणी को इस बार लोकसभा चुनाव में पार्टी ने टिकट नहीं दिया है और उनकी पारंपरिक गांधीनगर सीट से भाजपा अध्यक्ष अमित शाह चुनाव लड़ रहे हैं। आडवाणी ने 1991 से छह बार लोकसभा में निर्वाचित करने के लिये गांधीनगर के मतदाताओं के प्रति आभार प्रकट किया।
वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि पार्टी के भीतर और वृहद राष्ट्रीय परिदृश्य में लोकतंत्र एवं लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा भाजपा की विशिष्टता रही है। इसलिए भाजपा हमेशा मीडिया समेत सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और उनकी मजबूती को बनाये रखने की मांग में सबसे आगे रही है।
मेरी पार्टी अडिग
पूर्व उपप्रधानमंत्री ने कहा कि राजनीतिक एवं चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता सहित चुनाव सुधार भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति के लिए उनकी पार्टी की अहम प्राथमिकता रही है। उन्होंने कहा, ‘‘संक्षेप में पार्टी के भीतर और बाहर सत्य, निष्ठा और लोकतंत्र के तीन स्तम्भ संघर्ष से मेरी पार्टी के उद्भव के मार्गदर्शक रहे हैं। इन मूल्यों का सार सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और सुशासन में निहित है जिस पर मेरी पार्टी अडिग रही है।’’ आडवाणी जी ने लिखा कि उनकी इच्छा है कि हर नागरिक समग्र रूप से भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूती प्रदान करें।
फिलहाल, आडवाणी जी के ब्लाग पर वैचारिक सक्रियता से सियासी आग तो लग चुकी है। जो अब चुनावी माहौल में भाजपा के लिए बिलकुल भी मुनासिब नहीं होगी। आशंका है कि भाजपा में अंदरखाने भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। हालांकि, मोदी हैं तो कुछ भी मुमकिन है। संभव है कि वह वक्त रहते वह बिगड़ते हालात को भी अपने पक्ष में कर ले जाएं।
(लेखक पत्रकार है, ये लेख उन्होंने अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा है)