उत्कर्ष सिन्हा
यूपी विधानसभा के चुनावो की तपिश जैसे जैसे बढ़ती जा रही है , वैसे वैसे सियासी पार्टियाँ अपने चुनावी एजेंडे को तय करने की और बढ़ती जा रही हैं. यूपी के कांग्रेस के तीन दशकों के वनवास को ख़त्म करने में जुटी प्रियंका गाँधी ने महिलाओं के लिए 40 प्रतिशत आरक्षण सहित 7 प्रतिज्ञाओं का रास्ता चुना है तो समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव अपने कार्यकाल में हुए विकास कार्यों के साथ साथ योगी सर्कार की असफलताओं का जिक्र करते हुए यूपी के विकास को धार देने की बात कह रहे हैं.
लेकिन सबकी निगाहे सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी पर लगी हुयी हैं. यह स्वाभाविक भी है क्योंकि एक तरफ तो भाजपा के पास 5 साल के काम के साथ साथ चुनाव दर चुनाव विपक्षियों को चौंकाने वाला रणनीतिक कौशल भी है.
सत्ताधारी दल के कार्यकर्त्ता हो या फिर विपक्ष के नेता, हर कोई इस बात से मुतमईन है कि चुनावो के वक्त भाजपा कोई न कोई बड़ा दांव जरुर खेलेगी. और ऐसा मानने की वजहें भी हैं . 2014, 2017 और फिर 2019 के वक्त नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा ने इसे साबित भी किया है.
लेकिन इस बार हालात जुदा हैं. केंद्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर बुरी तरह घिरी नजर आ रही है. 5 साल पहले की गयी नोटबंदी के बाद लगे झटके से हिली हुयी अर्थव्यवस्था अभी तक सम्हाल नहीं पायी है. सरकार खुद मान रही है कि देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज दिया जा रहा है, ऐसे में भाजपा के सामने जनता के गुस्से को सम्हालना बड़ी चुनौती है. उत्तर प्रदेश में भी विकास और राहत के तमाम सरकारी दावो के बाद भी आम जनता पर इसका असर नहीं हो रहा है और बेरोजगारी, गरीबी और महंगाई एक बड़ा मुद्दा बनी हुयी है.
हालात को देखते हुए भाजपा ने अपने चिरपरिचित अंदाज में ध्रुवीकरण के शस्त्र को धार देनी शुरू कर दी है. प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और अमित शाह से ले कर स्वतंत्रदेव सिंह तक सभी के बयान ऐसे आ रहे हैं जिससे लडाई हिंदुत्व के एजेंडे पर जाती दिखाई दे.
अयोध्या में 11 लाख दिए जलाने का आयोजन हो या फिर कनाडा से आई माँ अन्नपूर्णा की मूर्ति की दिल्ली से बनारस तक की शोभायात्रा निकलने का आयोजन ये सब कुछ उसी एजेंडे के तहत किया जा रहा है. जैसे जैसे चुनाव आ रहे हैं वैसे वैसे विपक्षियों के उन बयानों पर प्रतिक्रिया तेज करने की कोशिस हो रही है जो सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को मजबूती दे सके. ऐसा ही एक मामला जिन्ना पर अखिलेश यादव के बयान का भी है जिसके बाद आम जनता ने भले ही कोई ज्यादा ध्यान नहीं दिया मगर लखनऊ से लिकर दिल्ली तक के भाजपा नेता अब उसे भुनाने की कोशिश में लगे हुए हैं.
अयोध्या के चौदह्कोशी परिक्रमा के समय 36 घंटो तक लखनऊ गोरखपुर हाईवे को बंद रखना भी हिन्दुओं के तुष्टिकरण के लिए किया गया फैसला ही माना जा रहा है. इसके पहले भी सावन महीने में कांवड़ यात्रा के समय भी यह हाईवे करीब करीब बाधित ही रहता है.
कुछ दिनों पहले योगी आदित्यनाथ ने पश्चिमी यूपी की अपनी यात्रा के दौरान कैराना से होने वाले हिन्दुओं के पलायन का मुद्दा उठाया था, यह मुद्दा भी 2017 के चुनावो के वक्त उठाया गया था जिसे एक बार फिर धार देने की कोशिश हो रही है.
कैराना में पलायन के मुद्दे को उभारने, मथुरा में हिंदुत्व को धार देने से भी संकेत मिलता है कि आगामी विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा और योगी की क्या रणनीति रहने वाली है।
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सड़क पर जुमे की नमाज का जिक्र भी आजकल भाजपा नेता करने लगे हैं और धर्मान्तरण के खिलाफ पुलिस का अभियान भी तेज हो चुका है.
विकास क्यों के ताबड़तोड़ उद्घाटन और शिलान्यास कार्यक्रमों के बीच योगी आदित्यनाथ उन विषयों को जरुर छेड़ रहे हैं जिसके सहारे 2017 के चुनावो में यूपी में जबरदस्त ध्रुवीकरण हुआ था और भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला था.
लेकिन 2017 और 2022 के बीच के 5 सालों में भाजपा की सरकार रही है और इस बीच करोना का दुखद असर, आक्सीजन की किल्लत से हुयी मौत और बेरोजगारी और महंगाई की बड़ी मार और प्रशासन में ऊपर से ले कर निचले स्तर पर बढ़ चुके भ्रष्टाचार ने आम नागरिक को तोड़ दिया है. ऐसे में हिंदुत्व की ये खुराक जनता कितना हजम करती है भाजपा की संभावनाएं उसी पर टिकी हैं.
और इसी लिए 2022 में भी भाजपा का चुनावी अभियान उसी दिशा में जा रहा है जहाँ वह 2017 में था.