मल्लिका दूबे
गोरखपुर। लोकसभा चुनाव में तीन महान संतो कबीर, गोरक्ष और देवरहवा बाबा की धरा यानी संतकबीरनगर, गोरखपुर और देवरिया में प्रत्याशी चयन को लेकर भारतीय जनता पार्टी को पसीने छूट रहे हैं। तीनों ही संसदीय सीटों पर समीकरणों का जबरदस्त पेंच फंसा हुआ है। गोरखपुर-बस्ती मंडल की नौ संसदीय सीटों में से छह पर भाजपा ने बड़े आराम से प्रत्याशियों का नाम तय कर दिया लेकिन संतकबीरनगर, देवरिया और गोरखपुर को लेकर अभी तक कोई सर्वमान्य फैसला नहीं हो सका है।
गोरखपुर-बस्ती मंडल में भाजपा ने जिन छह प्रत्याशियों को टिकट थमाया है, उनमें से कुशीनगर को छोड़ अन्य सीटों पर वर्तमान में सांसद को ही मौका दिया गया है। कुशीनगर में सांसद राजेश पांडेय गुड्डू की जगह वर्ष 2009 में बीजेपी प्रत्याशी रहे विजय दूबे को टिकट दिया गया है। जिन तीन संसदीय क्षेत्रों में भाजपा प्रत्याशी की घोषणा नहीं हुई है वहां को लेकर बीजेपी थिंक टैंक लगातार समीकरणों को मथ रहा है।
गोरखपुर में उप चुनाव में मिली हार के बाद पार्टी वर्तमान चुनाव में प्रतिष्ठा वापस हासिल करने को मशक्कत कर रही है। चुनावी समर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यहां कई कार्यक्रम कर चुके हैं लेकिन प्रत्याशी का नाम तय नहीं हो पा रहा है।
अटकलों की सूई कभी उप चुनाव के प्रत्याशी उपेंद्र दत्त शुक्ल की तरफ घूमती है तो कभी उप चुनाव में भी टिकट के दावेदार रहे डा. धर्मेन्द्र सिंह पर। कुछ दिन पूर्व जब पूर्व मंत्री जमुना निषाद के पुत्र अमरेंद्र निषाद सपा छोड़ बीजेपी में आए तो उनका नाम भी टिकट के दावेदारों में शुमार हो गया जबकि निषाद फैक्टर के चलते ही काफी पहले बसपा छोड़ बीजेपी में आ चुके पूर्व मंत्री जयप्रकाश निषाद भी चर्चाओं की लड़ाई में शामिल रहे। इस बीच सपा से गठबंधन तोड़ जब निषाद पार्टी बीजेपी के करीब आ गयी तो प्रत्याशी चयन में एक नया पेंच फंसता नजर आया। इतना तो तय माना जा रहा है कि बीजेपी के सिम्बल का ही कैंडिडेट होगा लेकिन इस पर असमंजस है कि प्रत्याशी निषाद फैक्टर से तय होगा या ब्रााह्मण या किसी नए समीकरण पर।
बीजेपी का टिकट पाने में अधिक उम्र संबंधी बाधा सामने आते ही देवरिया के सांसद कलराज मिश्र ने खुद ही चुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया तो देवरिया में भी प्रत्याशी चयन का गंभीर संकट बीजेपी के सामने है। यहां चुनावी महासमर शुरू होने से पहले एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता शलभ मणि त्रिपाठी और पूर्व सांसद ले. जनरल श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी के पुत्र शशांक त्रिपाठी के क्षेत्र में लगे बैनर-पोस्टरों से टिकट का दावेदार समझा जाता था। इनमें से दो तो अभी भी टिकट पाने की रेस में हैं। पार्टी के अंदरखाने में जिले के एक वर्तमान विधायक का नाम भी चर्चा में है जबकि संतकबीरनगर लोकसभा क्षेत्र में हुए जूताकांड से वहां बिगड़े समीकरण को दुरुस्त करने के लिए सांसद शरद त्रिपाठी के पिता और पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी का नाम भी कयासबाजी की जद में है।
संतकबीरनगर संसदीय क्षेत्र में टिकट वितरण में पार्टी असमंजस में फंसेगी, यह चर्चा उसी दिन शुरू हो गयी थी जिस दिन वहां के सांसद शरद त्रिपाठी और मेंहदावल के विधायक राकेश सिंह बघेल के बीच विवाद और सांसद द्वारा विधायक को जूता मारने की घटना ने तूल पकड़ा था। माना जा रहा है कि यह घटना न होती तो पार्टी ने बस्ती मंडल में जैसे अन्य दो सांसदों को ही वर्तमान चुनाव में प्रत्याशी बनाया, तो यही निर्णय संतकबीनगर के लिए भी होता। यहां शरद के साथ ही उनके सजातीय एक पूर्व सांसद का नाम भी दावेदारों की लिस्ट में है। पर, ट्विस्ट सपा-बसपा के टिकट पर यहां पूर्व में सांसद रह चुके भालचंद यादव के नाम ने भी पैदा कर दिया है।
बीजेपी के अंदरखाने से ऐसी भी बात सामने आ रही है कि संतकबीरनगर में टिकट के फैसले को लेकर ही गोरखपुर और देवरिया में भी देरी हो रही है। इसे जरा ब्रााह्मण फैक्टर से समझिए। देवरिया और संतकबीरनगर में सीटिंग एमपी ब्रााह्मण हैं और गोरखपुर के उप चुनाव में प्रत्याशी भी ब्रााह्मण। ब्रााह्मण काफी हद तक बीजेपी के लिए वोट बैंक माने जाते हैं। नए सियासी माहौल में यह भी संभावना है कि पार्टी तीनों सीटों पर दोबारा ब्रााह्मण प्रत्याशी न दे। ऐसे में तीनों जगहों को लेकर बीजेपी ऐसी बिसात बिछाना चाहती हैं जहां समीकरणों के आधार पर तीनों संसदीय क्षेत्रों में प्रत्याशी भी चुन लिए जाएं और ब्रााह्मण मतदाताओं की नाराजगी भी न झेलनी पड़े।