कृष्णमोहन झा
महाराष्ट्र में शिवसेना ,राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के महा विकास अघाड़ीगठबंधन ने सत्ता संभाल ली है। पांच सालों तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रहने वाले देवेंद्र फड़नवीस विधानसभा चुनावों के बाद केवल 80 घंटे तक मुख्यमंत्री की कुर्सी का सुख भोग सके और उपमुख्यमंत्री पद से एनसीपी के नेता अजीत पवार के इस्तीफा देते ही उन्होंने भी मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
इसके अलावा उनके पास कोई विकल्प भी नहीं बचा था। विधानसभा में बहुमत के परीक्षण में तो उन्हें असफल होना ही था, इसलिए उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर ठीक ही किया। वे अब राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों के कतार में शामिल हो गए हैं, लेकिन अभी भी उनकी उम्मीदें खत्म नहीं हुई है।
उन्हें ऐसा महसूस हो रहा है कि शिवसेना ,राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन अंतर्विरोधों के कारण जल्द ही बिखर जाएगा और कर्नाटक में जिस तरह पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा के हाथों में एक बार फिर से राज्य के मुख्यमंत्री पद की बागडोर आ गई है, ठीक उसी तरह उन्हें भी फिर से मुख्यमंत्री पद बैठने का सौभाग्य मिलेगा।
उनकी उम्मीदें पूरी कब होगी यह तो आगे आने वाला समय ही बताएगा, परंतु अभी तो देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के बीच बिल्कुल अलग-थलग पड़ गए हैं। वे उनके विरुद्ध होने लगे हैं। महाराष्ट्र के वरिष्ठ भाजपा नेताओं का मानना है कि मुख्यमंत्री पद के लालच में उन्होंने अजित पवार से हाथ मिलाकर पार्टी की किरकिरी करा दी है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने देवेंद्र पर भरोसा रखा था, इसलिए महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ उसके लिए देवेंद्र फडणवीस को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
आश्चर्य की बात तो यह है कि उन्होंने एक बार यह नहीं सोचा कि वे उस अजित पवार से हाथ मिला रहे हैं, जिनको कभी कथित घोटाले में लिप्त मानकर जेल भिजवाने की बात करते थे ,लेकिन कुर्सी के लालच में उन्होंने अजीत पवार से हाथ मिलाने से गुरेज नहीं किया। यह रहस्य अभी भी बना हुआ है कि अजीत पवार ने खुद ही उन्हें अपने दल का समर्थन देने का प्रस्ताव किया था,या शरद पवार ने उन्हें अभिनय करने का जिम्मा सौंपा था।
फडणवीस एक बार भी यह विचार कर लेते की वे अजित पवार को घोटाले में जेल भेजने का दम भरते रहे थे, उन्हें उपमुख्यमंत्री की कुर्सी नवाज कर खुद मुख्यमंत्री बन जाना नैतिकता के सारे मापदंडों के विपरीत होगा। इससे देवेंद्र फडणवीस एवं भाजपा दोनों की प्रतिष्ठा बच जाती और आज वे अपनी इस राजनीतिक महत्वाकाक्षा के लिए महाराष्ट्र भाजपा के नेताओं के निशाने पर नहीं होते।
सवाल यह नहीं है कि अजित पवार ने अपने पास कुछ ही गिने-चुने विधायकों का समर्थन होने के बावजूद फडणवीस को सरकार बनाने के लिए समर्थन क्यों दिया। बल्कि असली सवाल तो यह है कि फडणवीस अजित पवार के साथ हाथ मिलाने के लिए राजी ही क्यों हुए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि फडणवीस के इस कदम को पार्टी के बहुत से नेताओं ने सही नहीं माना और वे आज खुलकर उनके विरुद्ध सामने आ गए हैं।
अजीत पवार को राज्य में एंटी करप्शन ब्यूरो द्वारा क्लीन चिट दिए जाने पर आज भले ही फडणवीस यह कह रहे हैं कि इससे उनका कोई लेना-देना नहीं है, परंतु उन्हें यह तो स्पष्ट करना ही चाहिए कि क्या वे अजीत पवार को सिंचाई घोटाले में लिप्त मानते है। महाराष्ट्र में फडणवीस के विरुद्ध आवाज उठाने वाले नेताओं में भाजपा के वरिष्ठ नेता एकनाथ खडसे सबसे आगे है।
फडणवीस के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद सबसे पहले उन्होंने ही यह कहा था कि अजित पवार के साथ मिलकर सरकार बनाने का फैसला गलत था। खडसे ने पिछले दिनों पार्टी की प्रदेश इकाई पर पिछड़े और ब्राह्मण नेताओं की उपेक्षा किए जाने का आरोप लगाया था।
एकनाथ खडसे ने पार्टी में खुद को अपमानित किए जाने का आरोप लगाते हुए यहां तक कह दिया कि वे पार्टी नहीं छोड़ना चाहते, परंतु जिस तरह से पार्टी में उन्हें अपमानित किया जा रहा है। उसकी वजह से वे अन्य विकल्प खोजने पर भी मजबूर हो सकते हैं।
गौरतलब है कि एक बार दिल्ली यात्रा पर उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार से भेंट करके इन चर्चाओं को बल दे दिया है की वे पार्टी छोड़ने का मन बना रहे हैं। उधर स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे की बेटी व फडणवीस सरकार में मंत्री रही पंकजा मुंडे कई बार कह चुकी है कि उन्हें विधानसभा चुनाव में पार्टी के नेताओं ने हराया है। यहां यह समझना कठिन नहीं है कि पंकजा मुंडे का इशारा फडणवीस की ओर था।
पंकजा मुंडे ने मंत्री रहते हुए कई बार यह टिप्पणी की थी कि जनता के दिलों में तो मैं ही मुख्यमंत्री हूं। यह बात आखिरकार देवेंद्र फडणवीस को कैसे नहीं चुभती। ऐसा भी कहा जाता है कि देवेंद्र फडणवीस भले ही अपनी शालीनता के लिए जाने जाते हो, परंतु उन्होंने उन सभी नेताओं को हाशिए पर डालने में कोई कसर बाकी नहीं रखी ,जो उनके वर्चस्व को चुनौती देने का सामर्थ्य रखते थे। खडसे को भी इसलिए हासिए पर डाल दिया गया।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को भी कभी महाराष्ट्र में भावी मुख्यमंत्री के रूप में देखा जाता था। इसलिए फडणवीस ने उनके समर्थकों को भी किनारे करने में कोई संकोच नहीं किया, ताकि वे राज्य में पार्टी के एकछत्र नेता बने रहे। कहा जाता है कि उन्होंने पंकजा मुंडे ही नहीं, बल्कि अपनी सरकार के कई मंत्रियों को चुनाव जीतने में कोई मदद नहीं की।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटील की गणना भी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में की जा रही है । वे उद्धव ठाकरे की सरकार के कार्यकाल पूरा न कर पाने की स्थिति में मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो सकते है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद अपना दूसरा कार्यकाल पूरा करने का सौभाग्य मिल जाता तो वे और ताकतवर बनकर उभरते और सत्ता व संगठन में उनका कब्जा स्थापित हो जाता। परंतु अब स्थितियां बदल गई हैं। अजित पवार का समर्थन लेकर रातों-रात सरकार बनाने की जो महा भूल वे कर बैठे है, उसकी उन्हें बहुत महंगी कीमत चुकानी पड़ सकती है। अब देखना यह है कि वे अपने विरोधियों को लामबंद होने से रोकने में किस तरह सफल हो पाते हैं।