जुबिली न्यूज डेस्क
भारतीय सिनेमा का ‘महानायक’ ही कहना सिर्फ काफी होगा, अमिताभ बच्चन का नाम लेने की भी जरूरत नहीं है. सब समझ जाएंगे कि किसकी बात हो रही है. फिल्म इंडस्ट्री में स्टार होते हैं, सुपरस्टार होते हैं और मेगास्टार भी. लेकिन महानायक एक ही हुआ है- अमिताभ बच्चन. और अब मामला ऐसा है कि जब कोई स्टार एकदम स्क्रीनफाड़ परफॉरमेंस देता है तो लोग उसे ‘बच्चन टाइप’ काम कहते हैं.
बता दे कि फिर भी हमारे हिसाब से उनके करियर में कुछ ऐसे मोमेंट हैं जिनके कारण उन्हें वो उपमा मिली, जिससे दर्शक उन्हें पहचानते हैं. अमिताभ बच्चन के ऑनस्क्रीन सफर के वो मोड़, जिन्होंने उन्हें महानायक बना दिया.
आनंद
नवंबर 1969 में ख्वाजा अहमद अब्बास की ‘सात हिंदुस्तानी’ से लोगों ने अमिताभ बच्चन को पहली बार स्क्रीन पर देखा. हालांकि, इससे पहले मई में लेजेंड फिल्ममेकर मृणाल सेन की ‘भुवन शोम’ में उनकी आवाज बतौर सूत्रधार लोगों को सुनाई दी थी, लेकिन पर्दे पर उनका पहला दीदार ‘सात हिंदुस्तानी’ से ही हुआ. फिल्म आई और अमिताभ की एक्टिंग को तारीफ भी मिली. लेकिन एक एक्टर का जो ‘ब्रेकआउट’ मोमेंट यानी स्क्रीन पर खिलने वाला मोमेंट है वो अभी बाकी था.
जंजीर
इस फिल्म से पहले अमिताभ कई बार पर्दे पर आए, लेकिन ‘छा गए’ वाली बात बाकी थी. ये कमाल हुआ ‘जंजीर’ से, 1973 में. जनता को एक ‘एंग्री यंगमैन’ नायक मिला जिसकी कहानी के साथ कनेक्ट करते हुए उनके मूड को वो फीलिंग मिली, जिसे आज साउथ फिल्मों के साथ जोड़कर लोग ‘एलिवेशन सिनेमा’ कहते हैं. ये एक ऐसा फिनोमिना था जिसे स्क्रीन पर जीने के बाद ही बाद के एक्टर स्टार बने. इस फिनोमिना का शिखर ही ‘दीवार’ में देखने को मिला. हालांकि, इसी दूर में उन्होंने ‘बेनाम’ और ‘मजबूर’ जैसी फ़िल्में भी कीं, जो तुलना के हिसाब से थोड़ी कम पॉपुलर हुईं.
शोले
1975 में इंडियन सिनेमा की सबसे आइकॉनिक फिल्मों में से एक ‘शोले’ रिलीज हुई. इसमें भी अमिताभ के साथ उस दौर के एक बड़े स्टार धर्मेन्द्र थे. मगर ‘शोले’ में अमिताभ के जय में जो ‘मुद्दे की बात करो’ वाला स्टाइल और कॉमिक टाइमिंग की कलाकारी थी, उसने स्क्रीन पर उनका भौकाल बना दिया. और फिर उनके फिल्मी सफर की गाड़ी वाया ‘कभी कभी’ ‘अमर अकबर एंथोनी’ ‘परवरिश’ ‘काला पत्थर’ ‘नसीब’ ‘लावारिस’ वगैरह-वगैरह अगले दशक तक फर्राटे भरती ही चली गई.
कुली
1983 में रिलीज हुई फिल्म बच्चन फिनोमिना में एक बहुत महत्वपूर्ण फिल्म है. सेट पर अमिताभ के भयानक एक्सीडेंट वाली कहानी तो आपको पता ही होगी. जुलाई 1982 में उनकी चोट ने उन्हें क्रिटिकल हालत में हॉस्पिटल पहुंचा दिया और उनकी स्थिति कुछ समय कोमा वाली रही. बताते हैं कि उन्हें 200 लोगों ने 60 बोतल खून दिया. लेकिन इससे पहले वो लोगों के लिए सुपरस्टार बन चुके थे और लोगों में उन्हें लेकर अलग लेवल का दीवानापन था.
कौन बनेगा करोड़पति
इस सब के बीच अमिताभ ने एक नॉर्मल हेल्थ चेकअप करवाया. पता चला कि ‘कुली’ वाले एक्सीडेंट के टाइम उन्हें जो खून चढ़ा था, उसके साथ ही हेपेटाईटिस बी का वायरस भी उनमें आ गया था, जो चुपचाप अपना काम करता रहा और अब उनका 75 प्रतिशत लीवर डैमेज हो चुका था.बाकी बचे 25 प्रतिशत लीवर और जीवटता के साथ, फ्रेंच दाढ़ी रखे हुए अमिताभ जुलाई 2000 में टीवी पर नजर आए. ये अच्छे खासे पॉपुलर हो चुके एक ब्रिटिश गेम शो का भारतीय संस्करण था, जिसमें 4 ऑप्शन देकर सवाल पूछे जाते और सही जवाब से ईनाम जीता जाता. टॉप प्राइज था एक करोड़ रुपये और शो का नाम था ‘कौन बनेगा करोड़पति?’ दर्शकों का बच्चन एक नए अवतार में वापसी के लिए तैयार था.
मोहब्बतें
1998 में आई ‘मेजर साहब’ को अमिताभ के भौकाल में एक बदलाव की शुरुआत मानी जा सकती है. वो स्क्रीन पर यंग स्टार अजय देवगन के सीनियर ऑफिसर ही नहीं, ऑलमोस्ट पिता की तरह वाले रोल में थे. इस बदलाव को पूरी तरह स्क्रीन पर उतारते हुए साल 2000 में रिलीज हुई ‘मोहब्बतें’ में वो शाहरुख खान की पिछली पीढ़ी वाले रोल में थे. गुरुकुल में बच्चों की शिक्षा कम ट्रेनिंग के ठेकेदार बने नारायण शंकर के किरदार में एक बार फिर से लोगों को एक आया बच्चन मिला, जो कुछ महीने पहले KBC से दिलों पर फिर से पकड़ बनानी शुरू कर चुका था और इस बार स्क्रीन पर जोरदार रोल में नजर आया.
ब्लैक
इस बार अमिताभ के काम का हल्ला अलग लेवल पर हुआ और लोगों ने देखा कि एक्टर में उम्र नहीं, हुनर मैटर करता है.पहली बार 1990 में आई ‘अग्निपथ’ के लिए ‘बेस्ट एक्टर’ का नेशनल अवॉर्ड पाने वाले बच्चन को 15 साल बाद उनका दूसरा नेशनल अवॉर्ड मिला, भंसाली की फिल्म ‘ब्लैक’ के लिए. उनका भौकाल हिट फिल्मों से लौटना शुरू हुआ था, लेकिन यहां से वो फिर शिखर जैसा मजबूत हुआ.
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पीकू
‘ब्लैक’ से अमिताभ का जो गेम बदला उसका फायदा ये हुआ कि अब उनको ध्यान में रखकर किरदार लिखे जाने लगे. अब जहां एक तरफ वो ‘कभी अलविदा न कहना’ और ‘भूतनाथ’ जैसी हिट्स में भी थे, वहीं ‘पा’ में अपनी अद्भुत परफॉरमेंस से एक और ‘बेस्ट एक्टर’ का नेशनल अवॉर्ड खींच लाए थे. साथ में ‘आरक्षण’ और ‘सत्याग्रह’ जैसा दमदार काम भी चलता रहा. इस तरह एक दशक और निकल गया. साल के अंत में उनकी फिल्म ‘ऊंचाई’ रिलीज होनी है और 2023 में प्रभास, दीपिका पादुकोण के साथ बड़ी फिल्म ‘प्रोजेक्ट के’ में भी उनका बड़ा रोल है. आज जब बच्चन साहब 80 साल के हो रहे हैं, तो इन मोड़ से गुजरा उनकी कामयाबी का कारवां अपने पूरे कद और वजन के साथ कह रहा है- ‘यूं ही नहीं मैं महानायक कहलाता हूं’!
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