कुमार भवेश चंद्र
बिहार में नीतीश सरकार के शपथ के बाद एक भी मुस्लिम मंत्री नहीं होने को लेकर सवाल उठ रहे हैं। प्रदेश की 15 फीसदी मुस्लिम आबादी को अपने पाले में खींचने के लिए लगभग बीजेपी को छोड़कर सभी दलों ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे। लेकिन सरकार में उनकी नुमाइंदगी नहीं होने को लेकर सवाल उठ रहे हैं।
एनडीए से नहीं जीता कोई भी मुस्लिम उम्मीदवार
वैसे तो एनडीए के घटक दलों से चुनाव जीतने वालों में एक भी मुस्लिम नहीं है। लेकिन नीतीश के मुख्यमंत्री बनने की हालत में माना यही जा रहा था कि वे अपनी पार्टी की ओर से जरूर किसी एक व्यक्ति को अपने मंत्रिपरिषद में जगह देंगे। विधान परिषद में जेडीयू के कई मुस्लिम सदस्य हैं। लेकिन कल के शपथ ग्रहण समारोह के बाद यह साफ हो गया कि नीतीश ने उन्हें तवज्जो देना जरूरी नहीं समझा।
मुस्लिम वोटरों ने दिखाए हैं नए तेवर
दरअसल, प्रदेश के मुसलमानों ने इस बार नए रुख का संकेत दिया है। एक तरफ उन्होंने एनडीए के किसी उम्मीदवार को चुनकर नहीं भेजा जबकि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के पांच विधायक जीत कर विधानसभा पहुंच चुके हैं। महज एक सीट पर चुनाव जीतने वाली बसपा का विधायक भी मुस्लिम समाज से ही है। आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों के टिकट पर चुनाव जीतकर भी कई मुस्लिम विधायक विधानसभा पहुंचे हैं।
नीतीश ने उतारे थे 11 मुस्लिम उम्मीदवार, सभी हारे
नीतीश ने अपने मंत्रिपरिषद में भले ही किसी मुस्लिम को जगह नहीं दी है लेकिन महागठबंधन के यादव- मुस्लिम समीकरण को साधने के ख्याल से उन्होंने जेडीयू के टिकट पर 30 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। इसमें 19 यादव समाज से थे तो 11 मुस्लिम थे। लेकिन इनमें से कोई भी मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सका। यहां तक कि नीतीश सरकार में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री रहे खुर्शीद भी चुनाव हार गए।
इसलिए हारे नीतीश के मुस्लिम उम्मीदवार
महागठबंधन के समीकरण को भेदने के ख्याल से जेडीयू ने नीतीश सरकार में मंत्री रहे खुर्शीद उर्फ फिरोज अहमद को पूर्वी चंपारण के सिकटा से टिकट दिया था जबकि शिवहर से शरफुद्दीन, अररिया से शगुफ्ता अजीम, ठाकुरगंज से नौशाद आलम, कोचाधामन से मोहम्मद मुजाहिद आलम, अमौर से सवा जफर, दरभंगा ग्रामीण से फराज फातमी, कांटी से मो. जमाल, मढ़ौरा से अलताफ राजू, महुआ से आस्मा परवीन और डुमरांव से अंजुम आरा को टिकट दिया था।
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महिलाओं को साधने के ख्याल से महिला उम्मीदवार को तरजीह देने की उनकी रणनीति भी फेल हो गई, क्योंकि सीएए और एनआरसी मुद्दे पर नीतीश के मौन धारण की वजह से मुस्लिम समाज में गलत संदेश गया था।
नीतीश को मुस्लिम विरोधी बताने में जुटा विपक्ष
नई सरकार में मुस्लिमों को प्रतिनिधित्व नहीं मिलने के बाद विपक्ष ने इस मुद्दे को धार देने का मन बना लिया है। आरजेडी नेता शिवानंद तिवारी इसको लेकर मुखर दिख रहे हैं। उन्होंने मीडिया में इसको लेकर बयान भी दिए हैं।
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हालांकि उनका कहना है कि बीजेपी और जेडीयू का आधार अलग है। तिवारी ने एक अंग्रेजी दैनिक की एक खबर सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है जो बिहार में मुस्लिमों को प्रतिनिधित्व नहीं देने को लेकर है।
चुनाव हारने वालों को मंत्रिपद तो मुस्लिम नेता को क्यों नहीं
विपक्ष की ओर से यह सवाल भी उठाया जा प्रदेश में 15 फीसदी आबादी का सरकार में नुमाइंदगी नहीं होना चिंताजनक है। संविधान में परिषद के सदस्यों को भी मंत्रिपरिषद में शामिल करने की व्यवस्था का मूल भाव यही है कि यदि जनता से कोई कमी रह जाती है तो उसे संवैधानिक व्यवस्था के जरिए सभी समाज को समानता और सम्मान मिल सके। बिहार में आजादी के बाद यह पहला मौका है जब मुस्लिम समाज से सरकार में कोई शामिल नहीं।
क्या बीजेपी के दबाव में हैं नीतीश
आने वाले समय में विपक्ष इस बात को तूल दे सकता है कि मुसलमानों के हमदर्द माने जाने वाले नीतीश कुमार बीजेपी के दबाव में मुसलमानों से दूर होते जा रहे हैं। लेकिन एक तबका यह भी स्वीकार कर रहा है कि नीतीश सरकार का ये फैसला जेडीयू उम्मीदवारों के प्रति मुसलिम समाज के रुखेपन की प्रतिक्रिया के रूप में सामने है। मुमकिन है मुस्लिम समाज के जेडीयू नेताओं की पहल से इस स्थिति में बदलाव हो।