कुमार भवेश चंद्र
जेडीयू नेता नीतीश कुमार सातवीं बार बिहार में मुख्यमंत्री पद की शपथ के साथ अपना ही रिकार्ड तोड़ने जा रहे हैं। वे सबसे अधिक समय तक इस पद पर काबिज रहने वाले मुख्यमंत्री रहे हैं।
आजादी के बाद से अभी तक बिहार एक राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजरा है। आजाद बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिन्हा आज भी ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने लगातार बिहार में 11 सालों तक शासन किया है।
नीतीश कुमार ने 13 साल से अधिक समय तक प्रदेश में मुख्यमंत्री रहने का रिकार्ड तो कायम किया है लेकिन वे लगातार इस पद पर बने नहीं रह सके हैं। नीतीश के साथ डिप्टी सीएम के तौरपर आज सुशील मोदी भले ही शपथ नहीं ले रहे लेकिन उनके साथ उनकी सियासी जोड़ी हिट रही है और इस जोड़ी की उस सियासी कहानी को मैं उजागर करने जा रहा हूं।
पहली बार सात दिन के सीएम बने थे नीतीश, आज तोड़ेंगे खुद अपना रिकार्ड
सातवीं बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे नीतीश कुमार ने 3 मार्च 2000 को पहली बार केवल सात दिन के लिए प्रदेश की बागडोर संभाली थी। समता पार्टी के नेता के तौर पर वे चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री बने लेकिन बहुमत न जुटा पाने की वजह से उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। 10 मार्च को उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और जोड़तोड़ करके आरजेडी ने राबड़ी देवी की अगुवाई में सरकार बनाई जो तकरीबन पांच साल चली।
इस शपथ के साथ वे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का अपना ही रिकार्ड तोड़ने जा रहे हैं। बिहार ने राजनीतिक अस्थिरता का लंबा दौर देखा है। श्रीकृष्ण सिन्हा के बाद पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले मुख्यमंत्रियों की लिस्ट बहुत ही छोटी है। उनके बाद 1990 में लालू यादव पहली बार अपना कार्यकाल पूरा कर सके।
इसके बाद उनकी पार्टी का शासन तो रहा लेकिन उनकी पत्नी राबड़ी देवी ने दूसरा कार्यकाल पूरा किया। नीतीश कुमार 2005 में पहली बार पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले चौथे मुख्यमंत्री के रुप में दर्ज हैं।
खंडित जनादेश के बाद 2005 में नहीं बन सकी सरकार
साल 2005 में बिहार को दो चुनाव का सामना करना पड़ा। चारा घोटाले में लालू यादव के जेल चले जाने और राबड़ी देवी के तथाकथित कुशासन से तंग बिहार विकल्प तलाश रहा था लेकिन उसे मुख्यमंत्री के रूप में उद्धारक नहीं दिख रहा था। सात दिन के लिए बिहार के मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार पर भी लोगों को उस तरह ऐतबार नहीं था। हालांकि केंद्र में मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल बेहतर रहा था।
अटल जी की सरकार में वे कृषि और रेल मंत्री के रूप में काम कर चुके थे। लेकिन 2005 के पहले चुनाव का जनादेश ऐसा गड्डमड्ड था कि 55 सीटों वाली उनकी पार्टी सरकार नहीं बना सकी। आरजेडी को 75 सीटें मिली थी और बीजेपी को 37।
पेच फंसा था एलजेपी को लेकर, जिसने 29 सीटें जीतकर सत्ता की चाबी पर कब्जा कर लिया था। राम बिलास पासवान ने मुस्लिम सीएम बनाने का पेंच फंसाकर प्रदेश को राष्ट्रपति शासन की ओर जाने के मजबूर कर दिया।
दोबारा सीएम बनाने में रही है सुशील मोदी की अहम भूमिका
नीतीश कुमार और सुशील मोदी ने सीएम और डिप्टी सीएम के तौर पर राम लक्ष्मण की जोड़ी की तरह बिहार में लंबे समय तक राज किया है। उनके बीच इस साझेदारी को सियासत की नई पीढ़ी भले ही न जानती हो कि लेकिन पुरानी पीढ़ी के लोग आज भी याद करते हैं कि नीतीश कुमार को सुशील मोदी ने कितनी बड़ी मदद की थी।
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2005 में जब दोबारा चुनाव हुए तो मुख्यमंत्री के रूप में कोई चेहरा पेश नहीं किया गया था लेकिन चुनाव के दौरान बीजेपी नेता सुशील मोदी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में यह कहकर सबको चौका दिया कि बीजेपी को नीतीश कुमार को स्वीकार करने में कोई दिक्कत नहीं होगी।
सुशील मोदी ने अपने केंद्रीय नेतृत्व को भरोसा में लिए बगैर यह घोषणा इसलिए कर दी क्योंकि उन्हें भरोसा था कि अरुण जेटली और प्रमोद महाजन जैसे नेता इस बात का विरोध नहीं करेंगे।
2005 के चुनाव के बाद नीतीश पहली बार बहुमत के साथ सत्ता में आए
सुशील मोदी के उस बयान का खासा असर हुआ। उनकी अपेक्षा और उम्मीद के अनुरूप ही न केवल अरुण जेटली और प्रमोद महाजन ने इस बात को लेकर तूल दिया बल्कि लोगों के सामने भी मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश एक चेहरा के रूप में नजर आने लगे और 2005 में नीतीश की पार्टी जनता दल यूनाइटेड को न केवल 20 फीसदी से कुछ अधिक वोट मिले बल्कि 88 सीटों के साथ ऐसा जनादेश आया जिसमें बीजेपी को मिली 55 सीटों के साथ सरकार बनाना आसान हो गया।
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इस तरह सुशील मोदी की बड़ी मदद के साथ नीतीश पहली बार पूरी मजबूती के साथ सीएम बने और तब से वह अपने डिप्टी सीएम के तौर पर सुशील मोदी को बनाए रखने के लिए बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को भी तैयार करते रहे।