Monday - 28 October 2024 - 9:18 AM

बिहार चुनाव : मतदान के ये आंकड़े क्या कहते हैं?

प्रीति सिंह

बिहार में किसकी सरकार बनेगी इस रहस्य से पर्दा 10 नवंबर को उठ जायेगा। दो चरण का मतदान हो चुका है और 243 में से 165 सीटों पर उम्मीदवारों का भविष्य ईवीएम में कैद हो चुका है। बाकी उम्मीदवारों के भविष्य का फैसला सात तारीख को होना है।

इस बार का बिहार चुनाव कई मायनों में खास रहा। यह विधानसभा चुनाव इसलिए भी खास रहा क्योंकि इस चुनाव में रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, विकास और उद्योग जैसे मुद्दों पर बात हुई। जिस प्रदेश का सारा हिसाब जाति पर चलता माना जाता रहा हो, जहां माई समीकरण से सत्ता मिल जाती हो, वहां इस बार ऐसा कुछ नहीं देखने को मिला।

दरअसल इस चुनाव में जातिगत पहचान और उसके आधार पर मतदान का मसला काफी पीछे चला गया।

दूसरा कोरोना काल में हुए इस चुनाव जब पूरी दुनिया डर से घरों में कैद है तो वहीं बिहार में लोग सरकार चुनने के लिए घरों से बाहर निकलकर मतदान केंद्र तक पहुंच रहे हैं। बिहार में हुई चुनावी जनसभाओं में उमड़ती भीड़ ने ये बताया कि सबसे पुराने गणतंत्र (वैशाली) वाले राज्य में जनतंत्र आज भी जाग रहा है।

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फिलहाल दो चरणो में लगभग 55 प्रतिशत मतदान यह सिद्ध करता है बिहार का मतदाता सचेत है, सत्ता पक्ष गम्भीर और विपक्ष चुस्त। मतदाताओं का जो उत्साह दोनों चरणों में दिखा उम्मीद की जा रही है कि तीसरे चरण में ऐसा ही उत्साह देखने को मिलेगा।

आमतौर पर ये माना जाता है कि अधिक मतदान सत्ता विरोधी लहर का संकेत होता है, तो क्या बिहार में भी ऐसा ही कुछ होने वाला है। ये सवाल लोगों के जेहन में आ रहा है, लेकिन आंकड़ों पर गौर करें तो बिहार के पिछले तीन दशकों के चुनाव इस परिकल्पना को खारिज करते हैं। बिहार में मतदान प्रतिशत घटना मतलब सत्ता परिवर्तन।

अब आंकड़ों पर गौर करते हैं। वर्ष 1990, 1995 और 2000 में हुए विधानसभा चुनाव में क्रमश: 62 प्रतिशत, 61.8 प्रतिशत और 62.6 प्रतिशत मतदान हुआ था। इन तीनों चुनावों में आरजेडी की सत्ता बरकरार रही।

लेकिन साल 2005 के विधानसभा चुनाव में मतदान घटकर 49.5 प्रतिशत हो गया और बिहार में सत्ता परिवर्तन हो गया। वर्ष 2010 और 2015 में मतदान का प्रतिशत लगातार बढ़ा लेकिन सत्ता नहीं बदली। साल 2005 के चुनाव में मतदान प्रतिशत 49.5 फीसदी, 2010 में 52.7 फीसदी और 2015 में 56.9 फीसदी रहा। उम्मीद से परे कोरोना महामारी के बीच हो रहे इस चुनाव के दो चरणों का औसत मतदान लगभग 55 प्रतिशत हैं। तीसरा चरण बाकी है।

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स्थापित चुनावी मान्यताओं से परे बिहार में वोटिंग प्रतिशत और चुनावी परिणाम के रुझान से पता चलता है कि मतदान के प्रतिशत में पिछले चुनाव की तुलना में गिरावट सत्ता परिवर्तन के संकेत होते हैं। साल 2000 से 2005 में मतदान प्रतिशत कम हुआ तो सत्ता बदल गई।

आरजेडी और जदयू के 15-15 सालों के शासन का चुनावी गणित यही बताता है कि जब मतदान प्रतिशत बढ़ता है तो सत्ता पक्ष मजबूत होता है और सत्ता में वापसी करता है, लेकिन अगर मतदान प्रतिशत में गिरावट दर्ज की जाती है तो सत्ता परिवर्तन की उम्मीद बन जाती है और विपक्ष मजबूत होता है।

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बिहार की राजनीति पर लंबे समय से नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुशील वर्मा कहते हैं पिछले रिकार्ड के हिसाब से तो अब तक यही हुआ है कि बिहार में मतदान प्रतिशत कम होने पर सत्ता परिवर्तन हुआ है लेकिन इस बार का चुनाव कुछ अलग है। इस बार

के चुनाव का मुख्य मुद्दा रोजगार है। जातीय समीकरण, पाकिस्तान, चीन, राम मंदिर पर रोजगार, विकास, शिक्षा जैसे मुद्दे भारी पड़े हैं। यदि तेजस्वी यादव की रैली में उमडऩे वाली युवाओं की भीड़ वोटों में तब्दील होती है तो नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ेंगी।

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