प्रमुख संवाददाता
लखनऊ. बिहार में दोपहर तीन बजे तक एक करोड़ 69 लाख वोटों की गिनती के बाद आंकड़े के आधार पर एनडीए महागठबंधन से आगे नज़र आ रहा है लेकिन मतगणना पर नज़र दौड़ाएं तो बड़ी संख्या में बहुत मामूली अंतर से उम्मीदवार आगे-पीछे हैं.
जीतेगा कौन? सरकार कौन बनाएगा? यह अलग मुद्दा है. बिहार के मतदाताओं ने इस चुनाव में एनडीए और महागठबंधन को कांटे की टक्कर में लाकर यह बता दिया कि रोज़गार और सुशासन के मुद्दे पर यह चुनाव हुआ ही नहीं.
बिहार चुनाव की मतगणना में हर घंटे हालात बदलेंगे. क्योंकि मुकाबला बहुत नज़दीक है इसलिए कौन कब आगे हो जाएगा कुछ कहा नहीं जा सकता. बात साफ़ है कि लोगों ने न तो तेजस्वी के रोज़गार के वादे से अभिभूत होकर वोट दे दिया और न ही कहीं यह दिख रहा है कि नीतीश के काम पर वोटों की बारिश हो गई.
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इस चुनाव ने यह बता दिया कि हज़ारों किलोमीटर पैदल चलकर घर पहुँचने वाला मजदूर अपना दर्द भूल चुका है. बेरोजगारी की वजह से महाराष्ट्र जाकर रोजाना ज़लील होने वाला गरीब अपने ही राज्य में रोज़गार की होड़ में नहीं है लेकिन राष्ट्रवाद के मुद्दे उसे उद्वेलित करते हैं. उत्तर प्रदेश में बनने वाला राम मंदिर उन्हें वोट देने के लिए घर से निकलकर वोट देने को मजबूर कर देता है.