सुरेंद्र दुबे
दिल्ली विधानसभा का चुनाव खत्म होते ही अब बिहार विधानसभा के नवंबर में होने वाले चुनावों पर सारे देश की निगाहें टिक गई हैं। दिल्ली में जिस तरह पराजय का सामना कर भाजपा को बेआबरू होना पड़ा, उससे लगता था कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा का दामन छोड़ कर लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से दोस्ती गांठ कर एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने का जुगाड़ कर सकते हैं। पर बदली परिस्थितियों में देखना होगा कि नीतीश कुमार कौन सी नई चाल चलते हैं।
दल-बदल के माहिर खिलाड़ी नीतीश कुमार पहले भी लालू यादव की पार्टी के साथ मिलकर सरकार बना चुके हैं, जिसमें लालू यादव के दोनों बेटे तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव उप मुख्यमंत्री थे। पर अब हवा कुछ बदल गई है और बिहार में महागठबंधन से बगैर विचार विमर्श किए तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया गया है। दूसरी ओर इसकी काट के लिए महागठबंधन के नेता शरद यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया गया है। जाहिर है इन परिस्थितियों में महागठबंधन में रार बढ़ गई है और मुख्यमंत्री पद को लेकर तकरार चरम पर है।
शुक्रवार को हुई बैठक में महागठबंधन के तीन दलों के नेता जीतन राम मांझी (HAM), उपेंद्र कुशवाहा (RLSP) और मुकेश साहनी (VIP) ने पटना में लोकतांत्रिक जनता दल प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव को सीएम पद का उम्मीदवार बनाने की मांग की। इस बैठक के लिए कांग्रेस या आरजेडी के किसी नेता को न्योता नहीं दिया गया था।
सूत्रों के मुताबिक, उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश साहनी ने आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के महागठबंधन के नेता होने पर सवाल खड़े कर दिए हैं। महागठबंधन के कई नेता इस बात को लेकर नाराज हैं कि आरजेडी ने एकतरफा फैसला करते हुए तेजस्वी को महागठबंधन का नेता और मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर रखा है। उनका कहना है कि तेजस्वी को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने को लेकर महागठबंधन के किसी भी दल से कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया।
आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि शरद यादव वरिष्ठ नेता हैं और वह तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनने का आशीर्वाद देंगे। मृत्युंजय तिवारी बोले कि महागठबंधन में मुख्यमंत्री का चेहरा तेजस्वी यादव ही हैं और इसको लेकर किसी भी दल को कोई कंफ्यूजन नहीं होना चाहिए।
गौरतलब है कि एक ओर महागठबंधन चुनाव की तैयारियों में जुट गया है तो दूसरी ओर RJD ने भी कैंपेन की रफ्तार बढ़ा दी है। लालू प्रसाद यादव के बेटे तेज प्रताप यादव ने बीते दिनों एक पोस्टर जारी किया था, जिसमें नए कैंपेन को दिखाया गया। RJD ने ‘तेज रफ्तार, तेजस्वी सरकार’ का कैंपेन शुरू किया है, जिसमें तेजस्वी के चेहरे का इस्तेमाल कर सरकार बनाने का दावा पेश किया जा रहा है।
अगर जेडीयू-बीजेपी के खेमे की बात करें तो अभी तक नीतीश कुमार की अगुवाई में एनडीए का चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है। दिल्ली के विधानसभा चुनाव में भी अमित शाह और नीतीश कुमार ने मंच साझा किया था, जिसने गठबंधन में खटपट की सभी अटकलों को दूर किया था।
अब राजनैतिक परिदृश्य बिल्कुल बदल गया है। भाजपा को अजेय मानने वाले नीतीश कुमार के सामने सबसे बड़ी समस्या सीएए कानून को लेकर मुसलमानों व दलितों की नाराजगी है, जिन्हें यह भय सता रहा है कि नागरिकता कानून लागू होने पर उनका इस देश में रहना मुस्किल हो जाएगा। नीतीश कुमार की बिहार के मुस्लिम मतदाताओं में अच्छी पकड़ है इसलिए वह कभी सीएए कानून का समर्थन करते हैं तो कभी विरोध। जदयू के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर तथा महासचिव पवन शर्मा पार्टी से निकाले जा चुके हैं। परंतु यह निर्णय दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की प्रचंड जीत के पहले का है। अब नीतीश कुमार दाएं-बाएं झाकने को मजबूर हैं। दूसरी ओर तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री पद का चेहरा बन जाने के बाद उनके लिए राजद से चुनावी समझौता करने की संभावनाएं न के बराबर रह गईं हैं।
नीतीश कुमार का सबसे बड़ा आधार मुस्लिम अति पिछड़े व महा दलित मतदाताओं का वोट बैंक है, जिसकी संख्या लगभग 15 प्रतिशत है। इसलिए वे जिस पाले में चले जाते हैं उसका पलड़ा भारी हो जाता है। पर इस बार समीकरण बदले हुए हैं। उनके साथ रहने वाले उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी, महागठबंधन के साथी बन गए हैं। नीतीश कुमार की कोशिश होगी कि उनके पूराने साथी फिर उनका दामन थाम लें ताकि एक बार फिर उनका मुख्यमंत्री बनने का सपना पूरा हो सके।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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