- अब नई बिसात पर होगी तोलमोल की राजनीति
- सीट बंटवारे के फॉर्मूले पर असर तय
जुबिली न्यूज डेस्क
बिहार में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी बढ़ गई है। सियासी बिसात पर हर दिन नई-नई चालें चली जा रही हैं। गठबंधन की राजनीति में तो नए माहौल में नए तरीके से नई बिसात बिछाई जा रही है। यह कहें कि बिहार में नूरा-कुश्ती जारी है तो गलत नहीं होगा।
पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी और श्याम रजक के पाला बदलते ही बिहार की राजनीति में उथल-पुथल का एक प्रतीक्षित दौर पूरा हो गया। अब दूसरे दौर का इंतजार है। फिलहाल, गठबंधन की राजनीति में दोनों ओर के नए माहौल में नए तरीके से नई बिसात बिछाने की तैयारी है।
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बिहार की राजनीति में सबकी निगाहे गठबंधन पर टिकी हुई हैं। जीतनराम मांझी और लोक जनशक्ति पार्टी के अगले कदम पर सबकी निगाहे टिकी हुई हैं। मांझी और पासवान के कदम से गठबंधन और महागठबंधन में सीट बंटवारे के फॉर्मूले पर असर पडऩा तय है।
जीतनराम मांझी लोकसभा चुनाव से पहले ही पाला बदलकर महागठबंधन में शामिल हुए हैं। अब विधानसभा चुनाव से पहले मांझी के महागठबंधन से नाता तोडऩे से कांग्रेस समेत अन्य घटक दलों को थोड़ा सुकून महसूस होगा। सीटों की सूची और अपेक्षाएं थोड़ी लंबी हो जाएंगी।
वहीं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) भी बेअसर नहीं रहेगा। अगर मांझी शामिल हो जाते हैं तो नए सहयोगी के जुड़ जाने से राजग में भी सीटों का फार्मूला प्रभावित होगा। लोक जनशक्ति पार्टी के अगले कदम पर भी सबकी नजर रहेगी।
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अपने खेमे की संभावनाओं में जान डालने की कोशिश में लगे हैं दल
फिलहाल बिहार में चुनाव टालने और समय पर कराने की लड़ाई अब खत्म हो चुकी है। विधानसभा चुनाव अब तय समय पर होगा ऐसा चुनाव आयोग ने अपनी तैयारियों से साफ कर दिया है।
इसका एहसास अब राजनीतिक दलों को भी हो गया है कि चुनाव समय पर होगा। इसलिए सबने अपने खेमे की संभावनाओं में जान डालने की कोशिश शुरू कर दी है। ताजा दल-बदल और पाला बदल के खेल को इसी का हिस्सा माना जा सकता है।
जीतनराम मांझी महागठबंधन और सबसे बड़े घटक दल राष्ट्रीय जनता दल के लिए अप्रासंगिक हो गए थे। तभी उनकी मांगों और जिद को तेजस्वी यादव ने तरजीह नहीं दी। वह लगातार उन्हें नजरअंदाज करते रहे। कांग्रेस का अडऩा भी काम नहीं आया। जाहिर है, मांझी से स्वतंत्र होकर तेजस्वी अब महागठबंधन के विस्तार एवं सीट बंटवारे के काम को आगे बढ़ा सकते हैं।
वामदलों के लिए आसान हुआ रास्ता
मांझी के महागठबंधन छोड़कर जाने से बिहार की राजनीति पर तात्कालिक असर की पड़ताल शुरू कर दी गई है। मांझी के हटने से महागठबंधन के सहयोगी दलों की संख्या अब चार रह गई है। इसमें आरजेडी, कांग्रेस, राष्ट्रीय लोक समजा पार्टी (RLSP) और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी है।
महागठबंधन में लोकसभा चुनाव की हार से सबक लेते हुए इस बार वामदलों (Left Parties) को भी साथ लाने की कवायद चल रही है। मांझी ने उनके रास्ते को सीधा और आसान कर दिया है।
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) के हिस्से की संभावित सीटों को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी व मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और माले की झोली में डालकर उन्हें साधा जा सकता है। माले के पक्ष में आरजेडी तो पहले से ही है। इसीलिए लोकसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने आरजेडी के कोटे की 20 सीटों में से एक माले को समर्पित कर दिया था। अबकी सीपीआइ-सीपीएम को भी साथ लाना है।
एनडीए में भी हो रहा है आंकलन
मांझी के अगले कदम पर सबकी निगाहे बनी हुई हैं। मांझी अगर एनडीए में जाते हैं तो घटक दलों की संख्या यहां भी तीन से बढ़कर चार हो जाएगी। मांझी एनडीए को कितना फायदा पहुंचा सकते हैं इसका आंकलन किया जा रहा है। तो वहीं एलजेपी संस्थापक रामविलास पासवान को भी एनडीए आंक रही है।
पासवान बड़े कद-पद के नेता हैं, पर मांझी को भी कम करके नहीं आंका जा सकता। नीतीश कुमार ने उन्हें बिहार में सियासत के शीर्ष पर पहुंचाकर एक ऊंचाई तो दे ही दी है। अपनी बिरादरी का वोट अगर ट्रांसफर करा सके तो मांझी अपनी नाव को मंझधार से बाहर निकालने में सफल भी हो सकते हैं।-