Wednesday - 30 October 2024 - 1:20 PM

बिहार चुनाव: नीतीश के सामने कितने मजबूत तेजस्वी

जुबिली न्‍यूज डेस्‍क

बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी पारा लगातार चढ़ता जा रहा है। इस बार मुख्य मुकाबला सत्ताधारी एनडीए और विपक्षी पार्टियों के महागठबंधन के बीच माना जा रहा है। एनडीए का नेतृत्‍व नीतीश कुमार कर रहे हैं। वहीं तेजस्‍वी यादव को महागठबंधन का नेता बनाया गया है।

हालांकि, राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चा है कि नेता भले ही तेजस्‍वी यादव चुने गए हों लेकिन फैसला लेने का हक अभी भी जेल में बंद लालू प्रसाद यादव के पास ही है। लालू के इशारे पर ही टिकट का बंटवारा हो रहा है।

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नीतीश कुमार के 15 साल के शासन के खिलाफ दम ठोंक रहे महागठबंधन में सीटों का बंटवारा भी हो चुका है। 243 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव में आरजेडी 144 सीटों पर जबकि कांग्रेस 70 और लेफ्ट के दल 29 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे।

यानी कि अब महागठबंधन में आरजेडी और कांग्रेस ही प्रमुख दल बच गए हैं। तेजस्वी के चेहरे के साथ उतरे महागठबंधन को नीतीश की मजबूत शख्सियत के साथ ही एनडीए के ठोस जनाधार को भी चुनौती देनी होगी।

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दूसरे ओर एक-एक करके दूर हुए साथियों से हुई कमजोरी को भी पूरी करनी होगी। पहले जीतन राम मांझी की पार्टी हम, फिर उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा और अब मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी पार्टी महागठबंधन से अलग हो चुकी हैं। हालांकि, वामदलों का साथ महागठबंधन को मिला है लेकिन प्रदेश की सियासत में इनका कितना प्रभाव दिखेगा ये तो वक्त ही बताएगा?

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हालांकि एक बात तो तय है कि बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार महागठबंधन को लालू के करिश्‍माई नेतृत्‍व की कमी खलेगी। साथ ही मैदान में उनके अनुभव का फायदा भी आरजेडी और खास कर तेजस्‍वी यादव को नहीं मिलेगा।

जानकारों के मुताबिक तेजस्वी यादव के अंदर लालू प्रसाद यादव जैसी मजबूत संगठन क्षमता नहीं है। हाल के दिनों में आरजेडी के वरिष्ठ नेताओं और तेजस्वी यादव के बीच अनबन की खबरें भी आईं। पिछले दिनों जब लालू प्रसाद यादव के बेहद करीबी और लंबे समय तक आरजेडी में रहे रघुवंश प्रसाद सिंह ने पार्टी से इस्तीफा दिया तो सीधे तौर पर तेजस्वी की संगठन क्षमता को लेकर सवाल उठाए गए।

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हालांकि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में सत्ता हस्तांतरण के दौरान पार्टी के पुराने नेताओं की नाराजगी अक्सर देखने को मिलती है, लेकिन तेजस्वी के नेतृत्व में आरजेडी पहला विधानसभा चुनाव लड़ने जा रही है और ऐसे में तेजस्वी के सामने अपनी पार्टी को एकजुट रखना एक बड़ी चुनौती है।

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बिहार चुनाव में एनडीए के मुख्यमंत्री पद का चेहरा और मौजूदा सीएम नीतीश कुमार राजनीति के मंझे हुए खिलाडी़ हैं। चुनावी रैलियों में मतदाताओं को अपनी बातों से कैसे लुभाया जाता है, नीतीश इसे बखूबी जानते हैं। वहीं, इस मामले में तेजस्वी यादव अभी नए हैं। आम सभाओं में बोलना और चुनावी रैलियों में अपने भाषण से जनता को बांधना, दोनों अलग-अलग बाते हैं।

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तेजस्वी अभी तक इस मामले में अपनी कोई खास पहचान नहीं बना पाए हैं। एनडीए के पास नीतीश कुमार के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे कुशल वक्ता भी हैं। ऐसे में तेजस्वी के सामने अपनी वाकपटुता के जरिए बिहार की जनता को लुभाने की दोहरी चुनौती है।

बिहार चुनाव में तेजस्वी यादव लगातार अपनी युवा छवि को आगे रख रहे हैं। आरजेडी के चुनावी पोस्टर और बैनर पर इस बात को खास तौर पर लिखा जा रहा है कि नीतीश जैसे उम्रदराज नेता के सामने तेजस्वी यादव एक ऊर्जावान नेतृत्व हैं। पिछले दिनों इस बात को सियासी गलियारों में नोट भी किया गया कि तेजस्वी यादव के पोस्टर में लालू या राबड़ी देवी का फोटो नहीं है।

Seat sharing, CM face haunt NDA and Opposition in Bihar ahead of Assembly  polls- The New Indian Express

मतलब, साफ है कि तेजस्वी यादव बिहार चुनाव में अपनी उस छवि को भुनाना चाहते हैं, जिसका जवाब एनडीए के पास भी नहीं है। आरजेडी के वरिष्ठ नेता भी इस बात को खुले तौर पर कह रहे हैं कि अब युवा ब्रिगेड के हाथ में बिहार की सत्ता सौंपने का वक्त आ गया है।

लालू प्रसाद यादव के भ्रष्टाचार के मामलों के बावजूद गरीब और पिछड़े वर्ग में उनकी लोकप्रियता आज भी कायम है और, इसका सीधा फायदा तेजस्वी यादव को मिल रहा है। लालू यादव के जेल जाने के बाद तेजस्वी ने इस बात को गंभीरता से समझा कि उनकी पार्टी की असली ताकत यही गरीब और पिछड़ा तबका है।

Turncoats have a field day in poll-bound Bihar | Deccan Herald

बिहार की राजनीति में भले ही लालू प्रसाद यादव के भ्रष्टाचार के मामलों की चर्चा होती हो, लेकिन कमजोर, दलित और पिछड़े तबके में लालू की जो जगह है, उसका तोड़ एनडीए के पास भी नहीं है। 2015 का विधानसभा चुनाव इस बात का सबूत है कि लालू की लोकप्रियता जनता के सिर चढ़कर बोलती है। तेजस्वी यादव युवा हैं, नौजवानों के बीच लोकप्रिय भी हैं और साथ में लालू प्रसाद यादव की इसी विरासत के वारिस हैं। बिहार में 15 साल की सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे नीतीश कुमार के सामने ‘लालू के लाल’ तेजस्वी यादव एक बड़ी चुनौती बन सकते हैं।

बिहार में आई बाढ़ के दौरान तेजस्वी लगातार प्रभावित लोगों के बीच गए और उनका दर्द बांटा। इसके अलावा कोरोना वायरस महामारी में लॉकडाउन के दौरान रोजगार खत्म होने से बिहार लौटे 16 लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूर भी बिहार में तेजस्वी की इस लोकप्रियता के चलते समीकरण बदल सकते हैं।

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बता दें कि बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव में जेडीयू-आरजेडी और कांग्रेस एक साथ मिलकर चुनाव लड़े थे जबकि दूसरी ओर बीजेपी-एलजेपी थी। इसमें आरजेडी को 243 सीटों में से 81 सीटों पर जीत मिली थी जबकि 18.4% वोट। वहीं कांग्रेस को 27 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि 6.7% वोट कांग्रेस को हासिल हुए थे। वहीं 4 वामपंथी दलों को मिलाकर 3 फीसदी तक वोट हासिल हुए थे।

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