सुरेंद्र दुबे
बिहार में इस वर्ष के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं। दिल्ली चुनाव में बीजेपी को मिली करारी हार से बिहार के तीन युवा नेता पूरी तरह उत्साहित हैं और येन-केन-प्रकारेण जनमानस को उद्वेलित कर नई रानजीतिक पटकथा लिखने की तैयारी में जुट गए हैं।
ये तीन नेता हैं राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव, जेएनयू फेम के कन्हैया कुमार और पॉलिटिकल रणनीतिकार प्रशांत किशोर उर्फ पीके। इनमें सबसे पुराने खिलाड़ी हैं तेजस्वी यादव जिनकी बात हम सबसे बाद में करेंगे।
आइए सबसे पहले कन्हैया कुमार की बात करते हैं, जो इन दिनों पूरे बिहार में ‘जन-गण-मन यात्रा’ के जरिए सीएए, एनपीआर और एनआरसी के विरूद्ध माहौल बनाने के लिए यात्राएं व सभाएं कर रहे हैं। इनकी सभाओं में जनसैलाब उमड़ रहा है क्योंकि कन्हैया कुमार व्यंग्यात्मक लेहजे में अपनी बात कहने की कला में प्रवीण हैं।
वैसे इस सिलसिले में उन्होंने देश भर में कई सभाओं को संबोधित किया है, जिसमें बजती तालियां इस बात की गवाह हैं कि जनता उनकी बात को ध्यान से सुन रही हैं। बिहार में ही जन्में कन्हैया कुमार लोकसभा चुनाव में बेगुसराय से कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े थे। परंतु उन्हें भाजपा के गिरिराज सिंह के हाथों शिकस्त खानी पड़ी थी।
कन्हैया ने ‘जन-गण-मन यात्रा’ की शुरुआत 30 जनवरी को बेतिया से की थी। कन्हैया इस यात्रा के दौरान अब तक पूर्वी चंपारण, गोपालगंज और सीवान की यात्रा कर चुके हैं। यह यात्रा 27 फरवरी को पटना के गांधी मैदान में संविधान बचाओ नागरिकता बचाओ जनसभा के रूप में समाप्त होगी। यानी लोकनायक जयप्रकाश नारायाण की तरह संपूर्ण क्रांति का बिगुल फूंकने की तैयारी है।
जाहिर है कि कन्हैया जय प्रकाश तो बनने से रहे पर नीतीश कुमार की नींद जरूर हराम कर सकते हैं। इनकी सभाओं को लेकर भाजपा की भी नींद उड़ी हुई है। इनकी जन सभाओं में आने वाली भीड़ चुनाव में किस पार्टी के काम आएगी यह कह पाना फिलहाल मुश्किल है।
आइए अब प्रशांत किशोर उर्फ पीके की बात कर लेते हैं, जो राजनीतिक रणनीतिकार से अब खुद नेता बनने की राह पर चल पड़े हैं। पीके गुजरात में नरेंद्र मोदी, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी तथा दिल्ली में अरविंद केजरीवाल को चुनाव जिताने में महत्वपूर्ण प्रबंधकीय भूमिका निभा चुके हैं।
अपने इस कौशल को पीके अब सीधे-सीधे नेतागिरी में उतार कर बिहार में आजमाना चाहते हैं। उन्होंने ‘बात बिहार की’ नाम का एक अभियान शुरू किया है, जिसके जरिए वे बिहार के युवाओं को जोड़कर अपनी नेतागिरी चमकाना चाहते हैं।
लगता है वो काफी अर्से नेता बनने का ख्वाब पाले हुए थे, जो जेडीयू में उपाध्यक्ष बनने के बाद भी पूरा नहीं हो सका था। इसलिए उन्होंने नीतीश कुमार को धता बता कर एक नया मंच बना लिया है। उनका कहना है कि जब एक करोड़ लोग उनसे जुड जाएंगे तब वह अपनी भावी रणनीति का खुलासा करेंगे।
जुडनें का काम इंटरनेट से होना है इसलिए उसमें किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं आएगी जैसे भाजपा को करोड़ों सदस्य बनाने में नहीं आई थी। ये बात अलग है कि इसके बाद भी भाजपा राज्यों में लगातार कमजोर होती जा रही है।
आइए अब सबसे अंत में चर्चा करते हैं राष्ट्रीय जनता दल के नेता व बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की, जिन्हें पार्टी ने अभी से मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया है। महागठबंधन शरद यादव को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाना चाहता है। पर उनकी अपनी राजनैतिक जमीन बहुत खोखली हो चुकी है। इसलिए लगता है कि तेजस्वी यादव अंतत: मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनने में बाजी मार ले जाएंगे।
अब सवाल ये है कि कन्हैया कुमार और प्रशांत किशोर की रणनीति से प्रभावित युवा किसके साथ जाएंगे। तेजस्वी यादव के पास लालू प्रसाद यादव की जमी-जमाई राजनैतिक पृष्ठभूमि है। भले ही वह दागी हो। राष्ट्रीय जनता दल पर यह आरोप भी सही है कि वह पिछड़ो व मुसलमानों की राजनीति करती रही है।
पर बिहार का एक कटु सत्य यह भी है कि यहां जातिवाद राजनीति पर बुरी तरह हावी है। इसी जातिवाद के बल पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिधर झुकते हैं उधर सरकार बन जाती है। क्योंकि उन्हें कुर्मी, अति पिछड़े व अति दलितों का समर्थन हासिल है।
दल-बदल में माहिर नीतीश कुमार इस समय कौन सी खिचड़ी पका रहे हैं यह कहना मुश्किल है और भाजपा इसी को लेकर चिंतित है। नीतीश पहले भी लालू यादव के समर्थन से सत्ता के रथ पर बैठ चुके हैं और इस बार वह ऐसा क्यों नहीं कर सकते हैं क्योंकि उन्हें मालुम है कि बिहार का मुसलमान नागरिकता कानून के कारण भाजपा के साथ उनके कहने पर भी आसानी से नहीं जाएगा।
कन्हैया कुमार भी नागरिकता कानून पर ही प्रहार कर रहे हैं। उनके भाषण से प्रभावित मतदाता के पास गैर भाजपा गठबंधन में जाने का ही अकेला विकल्प है। उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ेगा कि मुख्यमंत्री कौन बनता है। उसे तो सिर्फ भाजपा से दूरी बनानी है। ये एक बहुत बड़ा कारण है जो नीतीश कुमार को लालू यादव की शरण में जाने को मजबूर कर सकता है।
रही बात प्रशांत किशोर की तो हो सकता है वो बिहार में अरविंद केजरीवाल बनने का सपना देख रहे हो। पर अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में बहुत कुछ कर दिखाया इसलिए जनता को उनपर विश्वास हुआ। पीके अभी कुछ करने का भरोसा जरूर दे सकते हैं।
पर जरूरी नहीं कि युवक उनके वादों पर भरोसा ही कर ले। पर पूरे बिहार में पीके एक नई किस्म की राजनीति का सूत्रपात तो कर ही सकते हैं। अब इस बीजारोपण से उगने वाले पौधे के फल कौन खाएगा ये तो भविष्य के गर्त में ही छुपा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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