जुबिली न्यूज डेस्क
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नेताओं का पाला बदलने का सिलसिला जारी है। कई नेता इधर से उधर जा रहे हैं। हालांकि, इस बार एक चौंकाने वाली बात सामने आई है। पाला बदलने वाले ज्यादातर नेताओं की पहली पसंद लोक जनशक्ति पार्टी है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक की पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाले बीजेपी के कई कद्दावर नेता लोजपा में शामिल हो चुके हैं। कई और नेता अभी शामिल होने की कतार में हैं।
हर चुनाव में कई नेता पुरानी पार्टी छोड़कर दूसरे दल में शामिल होते हैं। पर लोजपा में शामिल होने वाले नेताओं का कद और उनका आरएसएस से जुड़ाव बिहार विधानसभा चुनाव को पुराने चुनावों से अलग करता है। क्योकि, लंबे समय तक आरएसएस संगठन में काम कर चुके नेता भी बीजेपी छोड़कर लोजपा में शामिल होकर विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी छोड़कर लोजपा में शामिल होने वाले नेताओं की सीट जदयू के हिस्से में आई हैं। बीजेपी सीधे तौर पर जदयू के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतार सकती। लोजपा जदयू के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है। इसलिए बीजेपी नेता लोजपा के चुनाव चिन्ह पर मैदान में उतर रहे हैं।
बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं में शामिल रहे राजेंद्र सिंह और पूर्व विधायक उषा विद्यार्थी की सीट बंटवारे में जदयू के हिस्से में आई है। बिहार बीजेपी के उपाध्यक्ष रहे राजेंद्र सिह का आरएसएस से बहुत पुराना जुड़ाव है। वह भाजपा में भी कई अहम पदों पर रहे। 2015 के चुनाव में उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था। पर वह जदयू के जयकुमार सिंह से एक फीसदी वोट से चुनाव हार गए थे। उस वक्त जदयू ने राजद के साथ मिल कर चुनाव लड़ा था, पर अब जदयू एनडीए का हिस्सा है। इसलिए, एनडीए गठबंधन में दिनारा विधानसभा चुनाव सीट जदयू के हिस्से में आई।
लोजपा में शामिल होने वाली उषा विद्यार्थी भी 2010 में पालीगंज से विधायक रह चुकी हैं। 2015 में बीजेपी ने उन्हें इसी सीट से अपना उम्मीदवार बनाया था, पर वह राजद उम्मीदवार जयवर्धन यादव से चुनाव हार गई। बाद में जयवर्धन यादव राजद छोड़कर जदयू में शामिल हो गए। इसलिए, यह सीट भी बीजेपी के हाथ से निकल गई। लिहाजा, उषा विद्यार्थी भी लोजपा में शामिल हो गई और पार्टी अध्यक्ष ने उन्हें टिकट देने का भी ऐलान कर दिया।
ऐसा सिर्फ एक या दो सीट पर नहीं हुआ है। चार बार के विधायक और उत्तर प्रदेश बीजेपी के सह प्रभारी रहे रामेश्वर चौरसिया भी बुधवार को लोजपा में शामिल हो गए। वह 2015 में नोखा सीट से चुनाव हार गए थे। सीट बंटवारे में उनकी सीट जदयू के हिस्से में चली गई। इसलिए, रामेश्वर चौरसिया भी लोजपा में शामिल हो गए। इसके साथ कई और भाजपा नेता लोजपा में शामिल होकर जदयू के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।
बिहार की राजनीतिक को अच्छे से समझने वाले राजनीतिक विश्लेषक कुमार भावेश चंद्र की माने तो बीजेपी नेताओं के लोजपा में शामिल होकर जदयू के खिलाफ चुनाव लड़ने की पीछे बीजेपी की सोच समझी रणनीति हो सकती है। उनका मानना है कि जिन नेताओं ने बीजेपी से बगावत कर लोजपा का दामन थामा है, वह आरएसएस से जुड़े है और उनकी गिनती पुराने नेताओं में होती है। ऐसे में वह सिर्फ चुनाव जीतने के लिए पार्टी से बगावत नहीं कर सकते।
कई जानकार मानते हैं कि इन नेताओं के लोजपा में शामिल होने में पार्टी के बड़े नेताओं की मौन स्वीकृति हो सकती है। क्योंकि, बिहार में बीजेपी काफी दिनों से खुद सत्ता तक पहुंचने की कोशिश कर रही है। वर्ष 2015 में जदयू के अलग होने के बाद उम्मीद जगी थी, पर हालात फिर बदल गए। ऐसे में बीजेपी को लोजपा के तौर पर एक उम्मीद नजर आई है।
दूसरी ओर बिहार बीजेपी अजीब उलझन में है। एक तरफ चिराग पासवान की एलजेपी में रोज बीजेपी के बड़े-बड़े नेता शामिल हो रहे हैं तो दूसरी और वह दावे के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को भुनाने के लिए कमर भी कस चुकी है। तथ्य यह भी है कि भले ही बिहार में एलजेपी एनडीए से बाहर हो गई हो, लेकिन केंद्र में अभी भी रामविलास पासवान कैबिनेट मंत्री हैं।
एलजेपी ने घोषणा की है कि वह 243 में से उन 122 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी जहां एनडीए की ओर से जेडीयू के प्रत्याशी होंगे। यह ऐसी स्थिति है कि अगर जेडीयू और एलजेपी दोनों के प्रत्याशी पीएम मोदी के नाम पर ही वोट मांगेंगे तो मतदाताओं में कंफ्यूजन बढ़ना तय है। नीतीश कुमार और उनकी पार्टी इसी से परेशान हैं।