जुबिली न्यूज डेस्क
कोरोना संकट काल के बीच बिहार में चुनावी महासंग्राम का आज ऐलान होगा। जानलेवा वायरस आने के बाद किसी राज्य में ये पहले विधानसभा चुनाव होंगे। सूत्रों के मुताबिक अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में बिहार में पहले चरण का मतदान होगा। दरअसल इससे पहले ही चुनाव आयोग ये साफ कर चुका है कि 29 नवंबर तक बिहार विधानसभा चुनाव और सारे उपचुनाव संपन्न करा लिए जाएंगे।
हालांकि, पिछले विधानसभा चुनाव से अलग इस बार सिर्फ मतदान ही नहीं बल्कि राजनीतिक दलों और गठबंधनों में भी काफी कुछ बदला-बदला सा नज़र आएगा। जो पिछले चुनाव में साथ लड़े थे, इस बार आमने-सामने हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और लालू यादव एक साथ चुनावी मैदान में उतरे थे और उनके गठबंधन की सरकार बनी थी। हालांकि इस बार तस्वीर कुछ और है। लालू बीमार हैं और जेल में बंद हैं। वहीं नीतीश कुमार और बीजेपी एक साथ आ गए हैं। जिसके बाद बिहार विधानसभा चुनाव की सियासी बिसात नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए और तेजस्वी यादव की अगुवाई वाले महागठबंधन के बीच बिछाई जा रही है।
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इन दोनों प्रमुख चेहरों के अलावा भी कई ऐसे चेहरे और दल हैं, जो बिहार की सियासत में किंगमेकर बनने का सपना संजोय हुए हैं। ऐसे में देखना है कि इस बार बिहार की सियासी बाजी किसके हाथ में लगेगी।
नीतीश पिछले 15 वर्षों से सत्ता पर काबिज हैं और एक बार फिर से सत्ता में वापसी के लिए बेचैन नजर आ रहे हैं। हालांकि अपने खिलाफ बनते माहौल को देखते हुए उन्होंने इस बार जेडीयू के पोस्टर में अपने साथ पीएम नरेंद्र मोदी की तस्वीर को जगह देने शुरू कर दिया है। जिससे संकेत मिल रहे हैं कि इस बार बिहार विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहर पर लड़ा जा सकता है।
बिहार में दलितों को राजनीतिक विकल्प देने के लिए रामविलास पासवान ने एलजेपी की बुनियाद रखी थी, जिसकी कमान इन दिनों उनके बेटे चिराग पासवान के हाथों में है। चिराग वैसे तो एनडीए का हिस्सा हैं लेकिन साथ होकर भी विरोधी छवि अबतक चिराग ने बरकरार रखी है।
कोरोना संकट में चुनाव कराने की बात हो, प्रवासी मजदूरों का मुद्दा हो, सुशांत केस हो- हर जगह चिराग ने जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। चिराग अपनी अलग छवि के तौर पर बिहार में अपनी पहचान बनाने में जुटे हैं। बिहार के युवाओं को जोड़ने के लिए चिराग पासवान ने बिहार फर्स्ट-बिहारी फर्स्ट का नारा दिया है। ऐसे में देखना है कि चिराग पिता की राजनीतिक विरासत को कहां ले जाते हैं।
वहीं दूसरी ओर उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में चौथी बार एंट्री ले पाएंगे या नहीं इस पर भी सबकी निगाहें बनी हुई हैं। महागठबंधन में खुद को बरकरार रखने को लेकर आरजेडी की उदासीनता को देखते हुए राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने उपेंद्र कुशवाहा को ही पार्टी के भविष्य का फैसला लेने के लिए अधिकृत किया है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, अगले कुछ दिनों में कुशवाहा महागठबंधन से पार्टी के अलग होने को लेकर औपचारिक ऐलान भी कर देंगे।
गौरतलब है कि 2019 लोकसभा चुनाव से पहले उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी एनडीए से बाहर हो गई थी। इसके बाद कुशवाहा आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल हो गए। महागठबंधन में आरजेडी के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़े पर जीत नहीं सके। उपेंद्र कुशवाहा कोइरी जाति से आते हैं, जिनकी जनसंख्या बिहार की कुल आबादी का 8 प्रतिशत है। इसी वोट के दम पर वह सियासी बाजी अपने नाम करना चाहते हैं।
वहीं, लालू यादव की उंगली पकड़कर राजनीति सीखने वाले राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव किंगमेकर बनने की जुगत में हैं। पप्पू यादव जन अधिकार पार्टी बनाकर अपना सियासी वजूद पाना चाहते हैं। वो पांच बार सांसद रह चुके हैं। वो 1991, 1996, 1999, 2004 और 2014 में सांसद चुने गए थे। लेकिन साल 2019 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
इससे पहले 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी 40 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। उनकी पार्टी को तब सिर्फ 2 फीसदी वोट मिला था। इस बार के चुनाव में भी उनकी पार्टी अकेले ही चुनाव लड़ सकती है। क्योंकि पप्पू यादव न तो एनडीए के और न ही महागठबंधन के साथ हैं।
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दरअसल, आरजेडी ने एकतरफा फैसला लेते हुए विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव को बिहार चुनाव में महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश किया है। आरएलएसपी नेताओं ने ‘एकतरफा’ फैसले को लेकर विरोध जताया है। साथ ही महागठबंधन के टूट की कगार पर लाने के लिए उसे दोषी ठहराया। आरएलएसपी नेताओं का कहना है कि पार्टी जेडीयू के साथ लगातार संपर्क में हैं। उसके महागठबंधन से बाहर निकलने और एनडीए में वापसी की एक ‘औपचारिकता’ मात्र रह गई है।
इस बार के विधानसभा चुनाव में इस बार एनडीए और महागठबंधन के अलावा एक तीसरे मोर्चे की भी संभावना बन रही है। इस मोर्च में हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने आसन्न बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर पूर्व सांसद देवेन्द्र प्रसाद यादव की पार्टी समाजवादी जनता दल (डी) के साथ संयुक्त जनतांत्रिक सेकुलर गठबंधन नामक नया गठबंधन बनाया है।
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इस साल के विधानसभा चुनाव में बिहार में क्या नया है?
- कोरोना संकट काल में होने वाला देश का पहला विधानसभा चुनाव. प्रचार और प्रसार पूरी तरह से डिजिटल प्लेटफॉर्म पर निर्भर.
- राजनीतिक दलों को सिर्फ छोटे कार्यक्रम करने की इजाजत, जिसमें सौ लोग तक शामिल हो सकें। इसके अलावा जनसंपर्क में सोशल डिस्टेंसिंग और अन्य नियमों का पालन जरूरी।
- 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में जनता दल (यू) और राष्ट्रीय जनता दल एक साथ थे. लालू-नीतीश की जोड़ी ने भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाले एनडीए को हरा दिया था।
- दो साल में ही नीतीश का साथ राजद से छूट गया और उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली। 2020 में अब मुकाबला भाजपा-जदयू बनाम राजद-कांग्रेस के बीच है।
- 2015 में महागठबंधन के साथ रहने वाले जीतेंद्र मांझी ने भी इस बार एनडीए का दामन थाम लिया है। RLSP के उपेंद्र कुशवाहा पिछले चुनाव में एनडीए के साथ थे, लेकिन इस बार महागठबंधन का हिस्सा हैं।
- महागठबंधन में इस बार राजद, कांग्रेस, लेफ्ट, RLSP समेत कुछ अन्य छोटी पार्टियां हैं। राजद ने तेजस्वी यादव को सीएम पद का उम्मीदवार बनाया है. 2015 का चुनाव जीतकर तेजस्वी राज्य के डिप्टी सीएम बने थे।
- 2015 का बिहार चुनाव पांच चरणों में हुआ था, लेकिन इस बार कोरोना संकट के कारण चुनाव कम चरणों में हो सकता है। ऐसे में मतदान के प्रतिशत पर इसका असर देखने को मिल सकता है।
- राजनीतिक तौर पर देखें तो इस बार बिहार चुनाव में लालू प्रसाद यादव नहीं दिखेंगे। वो बीमार हैं, जेल में हैं और ऐसे में चुनाव के दौरान उनकी झलक मुश्किल ही देखने को मिलेगी। राजद के पोस्टरों से भी वो पूरी तरह गायब हैं। ऐसे में लंबे वक्त के बाद बिहार में कोई विधानसभा चुनाव हो रहा है जहां लालू की छाप नहीं है।