जुबिली न्यूज डेस्क
बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारियों शुरू हो गईं हैं। इसके साथ ही सूबे में सियासी पारा भी बढ़ने लगा है। राजनीतिक दलों के बीच बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है। लेकिन इस बीच ऐसे कई नेता हैं जो अपनु जुबान पर ताला लगाएं बैठे हैं या चुप्पी साध रखें हैं।
अक्सर अपने बयानों के वजह से विरोधियों पर हावी रहने वाले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह इस बार चुनाव से पहले चुप्पी साध रखे हैं। पिछले साल तक सीएम नीतीश कुमार को सीधे अपने बयानों से टार्गेट करने वाले गिरिराज सिंह फिलहाल शांत हैं।
दरअसल, बिहार में नीतीश कुमार फिलहाल बीजेपी के लिए मजबूरी हैं। बीजेपी ने यह पहले से मान लिया है कि सीटें चाहे जिसको जितनी मिलें, लेकिन एनडीए को बहुमत मिलने की स्थिति में नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री होंगे। इस मजबूरी में पार्टी को अपने ऐसे कई लोगों पर पहरा बैठाना पड़ गया है, जिन्हें नीतीश कुमार पसंद नहीं करते। इनमें एक गिरिराज सिंह भी हैं, जो मोदी सरकार में मंत्री हैं और धार्मिक आधार पर गोलबंदी कराने के ‘मास्टर’ कहे जाते हैं।
अपने बयानों से हमेशा चर्चा में रहते हैं। एक समय उन्हें बिहार बीजेपी का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार कहा जाने लगा था, लेकिन चुनाव आते-आते अचानक उन्होंने खामोशी ओढ़ ली है। कहा जा रहा है कि ऐसा करने के लिए उन्हें केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से आदेश प्राप्त हुआ है।
नीतीश कुमार ने बीजेपी नेतृत्व को बता दिया है कि उन्हें इस चुनाव में ऐसे नेताओं की जरूरत नहीं, जिनकी वजह से अनावश्यक विवाद खड़ा हो और न जाने कब कौन सा विवाद उलटा बैठ जाए, इसलिए गिरिराज सिंह को अनावश्यक बयानबाजी से रोका जाना चाहिए। उसके बाद ही गिरिराज सिंह खामोश करा दिए गए।
बिहार में चुनाव हमेशा जाति के समीकरण से ही जाते रहे हैं। उम्मीदवार चयन में इसका खास ध्यान रखा जाता है कि किस सीट पर किस जाति के वोटरों की बाहुल्यता है। इसके अलावा प्रचारकों और संगठन में भी इस बात का ख्याल रखा जाता है। बीजेपी में गिरिराज सिंह की अहमियत भी जाति आधारित है।
गिरिराज सिंह जाति से भूमिहार हैं। मनोज सिन्हा के चुनाव हार जाने के बाद अब वे ही मोदी मंत्रिमंडल में भूमिहारों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके साथ ही साथ गिरिराज बिहार में बीजेपी के पक्ष में भूमिहार वोटरों को लाने के भी बड़े फैक्टर हैं। गिरिराज सिंह को केंद्र में पद देना बिहार चुनाव में बीजेपी के लिए रणनीतिक रूप से काफी अहम था।
इसी तरह अश्विनी चौबे से भी नीतीश कुमार की नहीं बनती। वे भी मोदी सरकार मंत्री हैं। दंगा भड़काने के आरोप में नीतीश कुमार कुछ साल पहले अश्विनी चौबे के पुत्र के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करा चुके हैं। अब जबकि इस चुनाव में अश्विनी चौबे अपनी पार्टी बीजेपी से अपने पुत्र के लिए टिकट मांग रहे हैं, तो नीतीश कुमार सहमत नहीं हो रहे हैं।
फिलहाल बीजेपी ने भी नीतीश कुमार से सीधे टकराव से मना कर दिया है। नीतीश कुमार को लेकर यह भी कहा जा रहा है कि वे बीजेपी के बहुत सारे नेताओं के साथा साझा वर्चुअल रैलियां करने के हिमायती नहीं हैं। वे मोदी और अमित शाह से ही अपना काम चलता मान रहे हैं।
ऐसे में एक बात तो तय है कि आगामी विधानसभा चुनाव बीजेपी और जेडीयू के लिए विरोधियों के साथ-साथ अपनो पर भी नियंत्रण रखना होगा।